नयी दिल्ली, छह अगस्त दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को अपूर्ण विवरण का हवाला देते हुये उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें आरोप लगाया गया है कि सरकार द्वारा दी गई रियायती भूमि पर विभिन्न परमार्थ ट्रस्ट द्वारा चलाए जा रहे निजी अस्पताल कोविड-19 रोगियों से भारी शुल्क वसूल रहे हैं और उनके फॉरेंसिक ऑडिट कराने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और तलवंत सिंह की पीठ ने हालांकि याचिकाकर्ता-वकील को अदालत में फिर से सभी आवश्यक विवरण के साथ एक नई याचिका दायर करने की छूट दी है।
अदालत द्वारा दी गई छूट के अनुसार, याचिकाकर्ता ने नए सिरे से याचिका दायर करने के लिए अपनी याचिका वापस ले ली।
पीठ ने कहा, ‘‘याचिका अधूरी है और इसमें आवश्यक विवरणों का अभाव है। याचिका को सभी जरूरी विवरणों के साथ नए सिरे से दाखिल करने की छूट दिये जाने के साथ ही खारिज किया जाता है।’’
वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान, पीठ ने कहा कि याचिका में कोई जरूरी विवरण नहीं है कि ट्रस्ट और निजी अस्पताल किस तरह से अनुचित तरीकों का इस्तेमाल कर पैसे कमा रहे हैं या मरीजों से गलत ढंग से ज्यादा पैसे वसूल रहे हैं।
अदालत ने कहा, "हम इस तरह के आरोपों की जांच नहीं कर सकते। हम एक जांच एजेंसी नहीं हैं। यदि कोई अपराध किया गया है तो शिकायत दर्ज कराइये।’’
जब याचिकाकर्ता शोभा गुप्ता ने पीठ से मामले को जनवरी 2021 तक स्थगित करने का आग्रह किया ताकि वह सभी आवश्यक विवरण प्राप्त कर सकें और अपनी याचिका में संशोधन कर सकें, तो अदालत ने यह कहते हुए ऐसा करने से मना कर दिया कि उसे अपनी पूरी याचिका में संशोधन या पुनर्लेखन करना होगा। और इसलिए, याचिका को नए सिरे से फाइल करना बेहतर होगा।
गुप्ता ने अपनी याचिका में राष्ट्रीय राजधानी में 11 निजी अस्पतालों का ऑडिट कराने का अनुरोध किया था, जो उनके अनुसार परमार्थ ट्रस्टों द्वारा रियायती सरकारी भूमि पर चलाए जा रहे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि निजी अस्पतालों के सहयोग से ट्रस्ट निजी उद्देश्य के लिए बड़ी मात्रा में धन के हेरफेर में संलिप्त हैं।
गुप्ता ने यह भी दावा किया कि निजी अस्पतालों ने अनुचित ढंग से मरीजों के इलाज के शुल्क में बढ़ोत्तरी की है और बुनियादी दवाओं के लिए भी उनके एमआरपी से अधिक पैसे ले रहे हैं।
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