देश की खबरें | ‘भोजशाला’ के वैज्ञानिक सर्वेक्षण के खिलाफ याचिका सूचीबद्ध करने पर विचार करने को लेकर सहमत न्यायालय

नयी दिल्ली, 15 जुलाई उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मध्य प्रदेश के धार जिले में मध्ययुगीन ‘भोजशाला’ के ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ के खिलाफ याचिका सूचीबद्ध करने पर विचार करने को लेकर सोमवार को सहमति जताई।

भोजशाला पर हिंदू और मुसलमान दोनों अपना दावा करते हैं।

‘मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसाइटी’ ने शीर्ष अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिसमें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के 11 मार्च के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें पूजा स्थल का "वैज्ञानिक सर्वेक्षण" करने का आदेश दिया गया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह किस समुदाय का है।

उच्च न्यायालय ने अपने 11 मार्च के आदेश में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को छह सप्ताह के भीतर भोजशाला परिसर का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था।

न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने हिंदू याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की इन दलीलों का संज्ञान लेने के बाद मामले को सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सहमति व्यक्त की कि एएसआई ने पहले ही अपनी रिपोर्ट दाखिल कर दी है।

उन्होंने पीठ को यह भी बताया कि हिंदू पक्ष ने लंबित याचिका पर अपना जवाब दाखिल कर दिया है।

सात अप्रैल, 2003 को एएसआई द्वारा तैयार की गई व्यवस्था के तहत हिंदू भोजशाला परिसर में मंगलवार को पूजा करते हैं, जबकि मुस्लिम शुक्रवार को परिसर में नमाज अदा करते हैं।

शीर्ष अदालत ने एक अप्रैल को एएसआई द्वारा संरक्षित 11वीं सदी की धरोहर (भोजशाला) के वैज्ञानिक सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।

हिंदू ‘भोजशाला’ को वाग्देवी (देवी सरस्वती) को समर्पित मंदिर मानते हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय इसे ‘कमाल मौला’ मस्जिद कहते हैं।

शीर्ष अदालत ने याचिका पर जवाब मांगते हुए कहा था कि विवादित सर्वेक्षण के नतीजों पर उसकी अनुमति के बिना कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए।

पीठ ने कहा था, ‘‘यह स्पष्ट किया जाता है कि कोई भी भौतिक खुदाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे संबंधित परिसर का चरित्र बदल जाए।"

उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को अपने 30 पृष्ठ के आदेश में कहा था, ‘‘एएसआई के महानिदेशक/अतिरिक्त महानिदेशक की अध्यक्षता में एएसआई के कम से कम पांच वरिष्ठतम अधिकारियों की एक विशेषज्ञ समिति द्वारा व्यापक रूप से तैयार उचित दस्तावेजी रिपोर्ट इस आदेश की प्रमाणित प्रति प्राप्त होने की तिथि से छह सप्ताह की अवधि के भीतर इस अदालत के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए।"

उच्च न्यायालय का यह आदेश ‘हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’ (एचएफजे) नामक एक संगठन द्वारा दायर एक अर्जी पर आया था।

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