नयी दिल्ली, दो जनवरी उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि वह 1991 के उपासना स्थल कानून के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के अलावा मध्य प्रदेश में मध्यकालीन युग की “भोजशाला” के सर्वेक्षण के आदेश के खिलाफ याचिका की सुनवाई करेगा, जिस पर दो समुदायों के लोग दावा करते हैं।
न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि यह मुद्दा शीर्ष अदालत के 12 दिसंबर के आदेश के अंतर्गत आता प्रतीत होता है, जिसमें देश की अदालतों को नये मुकदमों पर विचार करने और धार्मिक ढांचों पर विवादित दावों पर आदेश पारित करने से रोक दिया गया है।
पीठ ने रजिस्ट्री को भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना से निर्देश लेने का निर्देश दिया और मामले को लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया।
संक्षिप्त सुनवाई के दौरान हिंदू पक्ष की तरफ से पेश हुए अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि भोजशाला का मुद्दा 12 दिसंबर के आदेश के अंतर्गत नहीं आएगा क्योंकि इसका संरक्षण और रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है।
पीठ ने कहा कि वह इस मामले को केवल लंबित याचिकाओं के आधार पर निर्णय के लिए संलग्न कर रही है, लेकिन यदि किसी पक्ष को कोई शिकायत है, तो वह सबसे पहले उस स्थल पर उत्खनन का आरोप लगाते हुए दायर की गयी अवमानना याचिका पर विचार करेगी। न्यायालय ने 1 अप्रैल, 2024 को इस पर (उत्खनन पर) रोक लगा दी थी, और कहा था कि कोई भी भौतिक उत्खनन, जिससे इसका स्वरूप बदल सकता है, नहीं किया जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने 12 दिसंबर को अगले निर्देश तक देश की अदालतों पर नए मुकदमों पर विचार करने और धार्मिक स्थलों, विशेषकर मस्जिदों और दरगाहों को पुनः प्राप्त करने के लिए लंबित मामलों में कोई भी प्रभावी अंतरिम या अंतिम आदेश पारित करने पर रोक लगा दी थी।
शीर्ष अदालत ने उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली लगभग छह याचिकाओं पर यह आदेश पारित किया।
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