बेंगलुरु, 28 मार्च : कर्नाटक में मंत्रिमंडल विस्तार के समय को लेकर बार-बार झांसा देकर मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई (Basavaraj Bommai) और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) बड़ी चतुरायी से पार्टी के एक वर्ग के भीतर संभावित असंतोष से बचने में कामयाब रहे. मंत्रिमंडल विस्तार करके नेतृत्व विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति बनाने के बजाय बैकफुट पर आ सकता था. बोम्मई नीत सरकार मई में होने वाले विधानसभा चुनाव में जब उतरेगी तो उनके मंत्रिमंडल में छह पद खाली रहेंगे. विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग कुछ दिन में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर सकता है. बी एस येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के एक सप्ताह बाद सरकार की कमान संभालने वाले बोम्मई ने तीन अगस्त 2021 को 29 मंत्रियों को शामिल कर अपने नए मंत्रिमंडल का विस्तार किया था. इससे मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या मुख्यमंत्री समेत 30 हो गयी थी जबकि मंत्रिमंडल के सदस्यों की स्वीकृत संख्या 34 है. हालांकि, एक ठेकेदार को कथित तौर पर आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में मंत्री के एस ईश्वरप्पा के इस्तीफे और मंत्री उमेश कट्टी के निधन के कारण मौजूदा मंत्रिमंडल की संख्या 28 तक सिमट गयी.
मंत्रिमंडल विस्तार के तुरंत बाद पार्टी के भीतर अंसतोष पैदा होने लगा था और बोम्मई पर पार्टी के पुराने नेताओं या वफादारों या ‘‘अन्य पार्टी से आए नेताओं’’ के बीच चतुरायी से सामंजस्य बनाते हुए स्थिति संभालने का जिम्मा था. पार्टी के कई वफादार पुराने नेताओं ने जनता दल (सेक्यूलर) और कांग्रेस से आए नेताओं को मंत्री बनाने पर नाखुशी जतायी थी. केवल छह सीटें बची रहने और कई दावेदार होने के कारण मुख्यमंत्री पर शुरुआत से ही मंत्रिमंडल विस्तार का दबाव था. बोम्मई ने भी कभी मंत्रिमंडल विस्तार से इनकार नहीं किया बल्कि वह वक्त ज़ाया करते रहे. वह कहते रहे कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व से मंजूरी मिलने के बाद मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे जबकि पार्टी के कर्नाटक मामलों के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह समेत आला कमान के प्रतिनिधि यह कहते रहे कि यह मुख्यमंत्री का फैसला होगा और वह नेतृत्व से चर्चा करके इस पर फैसला लेंगे. जब भी मुख्यमंत्री दिल्ली जाते तो मंत्रिमंडल विस्तार की अटकलें शुरू हो जाती लेकिन वह कभी कोई सकारात्मक खबर लेकर नहीं आए. यह भी पढ़ें : राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा के ओबीसी सांसदों ने संसद से विजय चौक तक किया मार्च
उत्तराखंड तथा गुजरात में विधानसभा चुनाव से पहले उन राज्यों में राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कर्नाटक में मंत्रिमंडल में आमूल-चूल बदलाव की सुगबुगाहट तेज हो गयी लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं. चुनाव नजदीक आने के साथ ही पिछले कुछ महीनों में यह मुद्दा भी ठंडे बस्ते में चला गया. कई उम्मीदवारों का मानना था कि इस वक्त यह कवायद उपयोगी साबित नहीं होगी क्योंकि नए मंत्रियों के पास अपने आप को साबित करने का बहुत कम वक्त बचेगा. पार्टी के अंदरुनी सूत्रों और चुनावी पर्यवेक्षकों का मानना है कि नेतृत्व को मंत्रिमंडल में जगह न बना पाने वाले उम्मीदवारों के संभावित असंतोष की चिंता थी. पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा कि ऐसा लगता है कि यह डर था कि मंत्री पद के दावेदार विधायकों के असंतोष का असर इतना गहर होगा कि यह मुख्यमंत्री बोम्मई के खिलाफ बगावत का रूप ले सकता है क्योंकि वह भी बाहर (जनता परिवार) से आए नेता थे. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के राजनीतिक विश्लेषक ए नारायण ने हाल में ‘पीटीआई-’ से कहा था कि मंत्रिमंडल विस्तार न करना संतुलन बनाए रखने की एक तरह की रणनीति थी.