देश की खबरें | अश्वगंधा सुरक्षित, पश्चिमी देशों का प्रतिबंध लगाना अनुचित: विशेषज्ञ

देहरादून, 14 दिसंबर उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में जारी 10वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में विशेषज्ञों ने शनिवार को अश्वगंधा पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों को ‘‘वित्तीय और राजनीतिक रूप से प्रेरित’’ बताया। विशेषज्ञों ने कहा कि भारत में कई बीमारियों के लिए व्यापक रूप से निर्धारित अश्वगंधा एक आयुर्वेद औषधि है और यह जड़ी-बूटी के रूप में दुनियाभर में प्रसिद्ध है।

डेनमार्क ने अश्वगंधा के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस तरह कई अन्य यूरोपीय देशों और अमेरिका ने इस जड़ी-बूटी पर कई प्रतिबंध लगा दिए हैं, जिसमें कुछ तथाकथित गंभीर दुष्प्रभावों का खुलासा करने वाली अनिवार्य ‘लेबलिंग’ भी शामिल है।

‘अश्वगंधा गाथा: सुरक्षा, विज्ञान और साक्ष्य’ विषय पर एक सत्र में विशेषज्ञों ने बताया कि भारत में दवाएं बनाने के लिए केवल जड़ी-बूटी की जड़ का उपयोग किया जाता है, लेकिन पश्चिमी देशों की कंपनियां दवा बनाने के लिए पौधे की पत्तियों के अर्क का आयात कर रही हैं और यह दावा करते हुए ‘फूड सप्लीमेंट’ (पूरक आहार) के रूप में बेच रही हैं कि इससे बल और जीवन शक्ति में इजाफा होता है।

सभी विशेषज्ञ इस बात पर एकमत थे कि अश्वगंधा औषधि हजारों वर्षों से भी अधिक समय से सुरक्षित पाई गई है और इसकी पुष्टि सैकड़ों प्रकाशित शोध पत्रों से हुई है।

इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले आयुर्वेद चिकित्सकों, शिक्षाविदों और उद्योग प्रतिनिधियों ने दावा किया है कि भारत की पारंपरिक आरोग्य प्रणाली साक्ष्य पर आधारित है।

‘साक्ष्य-आधारित आयुर्वेद’ सत्र में भाग लेने वाले विशेषज्ञों ने कहा कि इसके विपरीत गलत धारणा को विशेष रूप से विदेशों में पारंपरिक भारतीय चिकित्सा प्रणाली की व्यापक स्वीकार्यता की राह में एक बड़ी बाधा के रूप में पहचाना गया है।

उन्होंने हालांकि सुझाव दिया कि नई दवाओं और उपचारों का नैदानिक ​​​​परीक्षण करके और इसके परिणामों को अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं और पोर्टलों में प्रकाशित करने के साथ सभी हितधारकों के साथ साझा करके आयुर्वेद की जरूरतों के साक्ष्य-आधार को और मजबूत करने की जरूरत है।

इसके अलावा, आयुर्वेद चिकित्सकों को अपने दस्तावेजीकरण कौशल में सुधार करने और ‘आयुर्वेद क्लिनिकल ई-लर्निंग’ जैसे वेब मंचों पर विभिन्न ‘केस स्टडी’ को अपलोड करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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