देश की खबरें | राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी अवैध, महाराष्ट्र सरकार मुआवजा दे : अदालत

मुंबई, 26 नवंबर बंबई उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले की त्रुटिपूर्ण जांच के आरोप में गिरफ्तार राष्ट्रपति पदक से सम्मानित पुलिसकर्मी की गिरफ्तारी को अवैध करार देते हुए महाराष्ट्र सरकार को उसे दो लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया।

संभाजी पाटिल ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सतारा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के खिलाफ जांच का आदेश देने का अनुरोध किया था, जिन्होंने उन्हें गिरफ्तार किया था। पाटिल ने 10 लाख रुपये के मुआवजे की भी मांग की थी।

पाटिल को हत्या के एक मामले में सबूतों को नष्ट करने और जानबूझकर दोषपूर्ण रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में मार्च 2013 में गिरफ्तार किया गया था। हालांकि, गिरफ्तारी के एक दिन बाद उन्हें जमानत दे दी गई थी। पाटिल ने 2009 में इस मामले में जांच की थी।

न्यायमूर्ति एएस चंदुरकर और न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की खंडपीठ ने सोमवार को पारित आदेश में कहा कि गिरफ्तारी की शक्ति का सावधानी से प्रयोग नहीं किया गया और पुलिस अधिकारी को अवैध तरीके से गिरफ्तार किया गया।

खंडपीठ ने कहा कि यह कोई असाधारण मामला नहीं है, जिसमें याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी अनिवार्य थी और अपराध जमानत देने योग्य थे।

उसने कहा, “याचिकाकर्ता ने अपनी अवैध गिरफ्तारी के आधार पर मुआवजे की मांग को लेकर मामला दायर किया है। उसने दलील दी है कि मामले में उसकी गिरफ्तारी भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत उसे हासिल मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।”

खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को उसकी सराहनीय सेवा के लिए जनवरी 2004 में राष्ट्रपति पुलिस पदक और उत्कृष्ट सेवा के लिए उसी वर्ष पुलिस महानिदेशक के प्रतीक चिन्ह से सम्मानित किया गया था।

उसने कहा कि याचिकाकर्ता राज्य सरकार से दो लाख रुपये का मुआवजा पाने का हकदार है।

खंडपीठ ने सरकार को मुआवजा राशि का भुगतान आठ हफ्ते के भीतर करने का निर्देश दिया। उसने कहा कि सरकार कर्तव्यों में लापरवाही के दोषी पाए गए अधिकारी से पैसा वसूलने के लिए स्वतंत्र होगी।

पाटिल 2009 में सतारा जिले के कराड शहर पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी थे, जब उन्होंने हत्या के एक मामले की जांच की थी। उनके तबादले के बाद मामले की जांच दूसरे अधिकारी को सौंप दी गई। 2012 में सतारा के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने याचिकाकर्ता को मामले में उनके द्वारा की गई जांच के तरीके को समझाने के लिए बुलाया था।

मार्च 2013 में याचिकाकर्ता अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक के सामने पेश हुआ। इस दौरान उसे बताया गया कि उसे सबूतों को नष्ट करने और जानबूझकर झूठी रिपोर्ट तैयार करने के आरोप में गिरफ्तार किया जा रहा है।

अगले दिन याचिकाकर्ता को रिमांड के लिए मजिस्ट्रेट की अदालत में पेश किया गया, जिसने उसे जमानत पर रिहा कर दिया।

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसे एक दिन के लिए अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित नहीं किया गया था। उसने मामले में फंसाए जाने का आरोप भी लगाया था।

खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा कि कानून के प्रावधानों के अनुसार, एक बार याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने के बाद उसे पुलिस अधीक्षक के सामने पेश किया जाना चाहिए था, जो वरिष्ठ अधिकारी थे।

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