हमारे नागरिकों के खून से सने हैं एप्पल के प्रॉडक्ट: कॉन्गो
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

कॉन्गो की तरफ से एक लॉ फर्म ने एप्पल कंपनी पर आरोप लगाया है कि वह ऐसे सप्लायर से खनिज खरीद रही है, जो कॉन्गो में हो रहे मानवाधिकार हनन की एक बड़ी वजह है.कॉन्गो ने अंतरराष्ट्रीय कंपनी एप्पल पर आरोप लगाए हैं कि वह सालों से अवैध तरीके से दोहन कर निकाले गए खनिजों का इस्तेमाल अपने प्रॉडक्ट में कर रही है. समाचार एजेंसी एएफपी के मुताबिक कॉन्गो का प्रतिनिधित्व कर रहे अंतरराष्ट्रीय लॉ फर्म ‘एमस्टर्डम एंड पार्टनर्स' ने एप्पलको नोटिस भी भेजा है. साथ ही चेतावनी दी है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो कंपनी को कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.

एप्पल पर कॉन्गो के गंभीर आरोप

एप्पल पर कॉन्गो से तस्करी कर रवांडा लाए गए खनिजों को खरीदने का आरोप है. रवांडा से ये खनिज अंतरराष्ट्रीय बाजार में भेजे जाते हैं. इससे पहले भी एप्पल पर ऐसे आरोप लगे हैं. हालांकि, कंपनी ने 2023 में एक बयान जारी कर कहा था कि उनके सप्लाई चेन में शामिल कोई भी ऐसा चीज नहीं है जिसने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कॉन्गो या उसके पड़ोसी देशों के हथियारबंद गुटों को फायदा पहुंचाया है.

कॉन्गो के खनिज से भरपूर इलाके में 1990 के दशक से ही हिंसा होती रही है. 2021 में फिर से विद्रोहियों ने इस इलाके में हिंसा तेज कर दी थी. कॉन्गो, संयुक्त राष्ट्र और पश्चिमी देशों का आरोप है कि रवांडा इन विद्रोहियों का समर्थन कर रहा है ताकि इस इलाके के संसाधनों पर कब्जा किया जा सके.

सालों से पूर्वी कॉन्गो के इलाके में अलग अलग हथियारबंद गुट अधिक से अधिक खदानों पर कब्जा करने की कोशिश में लगे हुए हैं. इस वक्त उत्तरी कीवू के ज्यादातर इलाकों में एम23 लड़ाकों का कब्जा है. इन इलाकों में आंतरिक संघर्ष से विस्थापित करीब 10 लाख लोग कैंपों में रहने को मजबूर हैं.

"कॉन्गो के लोगों के खून से सने हैं एप्पल के प्रोडक्ट”

कॉन्गो का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों ने नोटिस में लिखा है कि एप्पल का सामान बनाने में इस्तेमाल होने वाले खनिज ऐसी जगह से आते हैं, जहां की आबादी का बड़े स्तर पर मानवाधिकार हनन हो रहा है. उन्होंने यह भी लिखा है कि मैक, आईफोन और एप्पल के दूसरे प्रॉडक्ट कॉन्गो के नागरिकों के खून से सने हैं. इस नोटिस में खनन की साइटों पर हो रही यौन हिंसा, भ्रष्टाचार और सशस्त्र हमलों का भी जिक्र है.

यह नोटिस अमेरिका में एप्पल के मुख्यालय को भेजा गया है. वकीलों ने यह भी लिखा है कि एप्पल रवांडा से खनिज खरीदने वाले सप्लायरों पर निर्भर रहा है. रवांडा में ये खनिज ना के बराबर पाए जाते हैं, लेकिन बड़ी टेक कंपनियां खनिजों की सप्लाई रवांडा से करती हैं.

प्राकृतिक संसाधन बने मानवाधिकार हनन की वजह

कॉन्गो में सोना, टिन, कोबाल्ट और टैनटलम जैसे खनिज भरपूर पाए जाते हैं. इनका इस्तेमाल स्मार्टफोन और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने में होता है. वकीलों ने एएफपी से बातचीत के दौरान कहा कि ये खनिज एप्पलके प्रॉडक्ट में इस्तेमाल होते हैं. वकीलों ने कंपनी को जवाब देने के लिए तीन हफ्ते का समय दिया है.

संयुक्त राष्ट्र ने 2023 में अपनी एक रिपोर्ट में कॉन्गो को बच्चों के लिए दुनिया की सबसे बुरी जगह में से एक कहा था. दुनिया में सबसे अधिक कोबाल्ट भी कॉन्गो में ही पाया जाता है. इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिक बैटरियों में होता है. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कोबाल्ट खदानों में करीब 40,000 से अधिक बच्चे खतरनाक परिस्थितियों में काम कर रहे हैं.

‘टिन सप्लाई चेन इनिशिएटिव' की विवादित भूमिका

बीते दस सालों में कॉन्गो के संघर्षरत इलाकों से खनिज की सप्लाई करने के लिए ‘अंतरराष्ट्रीय टिन सप्लाई चेन इनिशिएटिव प्रोग्राम' की शुरुआत की गई थी. इस कार्यक्रम पर भी बाल मजदूरी और खनिजों की तस्करी के आरोप लगाए गए हैं. ब्रिटेन के गैर सरकारी संगठन ग्लोबल विटनेस की रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ एप्पल ही नहीं बल्कि टेस्ला, सैमसंग, इंटेल जैसी बड़ी कंपनियां भी इस प्रोग्राम पर खनिजों की आपूर्ति के लिए निर्भर हैं. रिपोर्ट में यह बात भी कही गई थी की इस प्रोग्राम के तहत आने वाले 90 फीसदी खनिज अवैध खदानों से ही आए थे.

खनिजों की बढ़ती मांग के साथ क्या बढ़ेंगे मानवाधिकार हनन

क्लीन एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने के लिए इन खनिजों की मांग लगातार बढ़ती जा रही है. वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक 20250 तक इन खनिजों की मांग में 50 फीसदी तक की बढ़त हो सकती है. इस बढ़ती मांग की आपूर्ति के लिए इन खदानों में अधिक से अधिक लोगों की भी जरूरत होगी.

इससे पहले भी पांच बड़ी टेक कंपनियों गूगल, टेस्ला, एपल, डेल और माइक्रोसॉफ्ट पर अमेरिका में एक केस दर्ज हुआ था. इन कंपनियों पर इन सप्लायर का साथ देने का आरोप था जो कॉन्गो में बाल मजदूरों से खनन करवा रहे हैं. हालांकि कोर्ट ने इस साल मामला यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इन सप्लायर से माल खरीदने का मतलब यह नहीं है कि ये कंपनियां भी बाल मजदूरी में सहभागी हैं.

आरआर/एनआर(एएफपी)