नयी दिल्ली, 14 फरवरी : उच्चतम न्यायालय को बताया गया है कि पिछले चार वर्षों में पश्चिम बंगाल की जेलों में 62 बच्चों का जन्म हुआ और उन्हें जन्म देने वाली ज्यादातर महिला कैदियों को जब कारावास लाया गया था तो उस वक्त वे गर्भवती थीं. शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल की जेलों में हिरासत में रखे जाने के दौरान कई महिला कैदियों के गर्भवती होने के आरोपों का पिछले हफ्ते संज्ञान लिया था. ‘1,382 जेलों में अमानवीय स्थितियां’ शीर्षक वाले मामले में अदालत की सहायता के लिए ‘न्याय मित्र’ नियुक्त किये गए वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने न्यायालय को बताया कि हिरासत में रहने के दौरान महिला कैदियों द्वारा बच्चों को जन्म देने के बारे में उन्हें अतिरिक्त महानिदेशक (एडीजी) एवं महानिरीक्षक (सुधार सेवाएं, पश्चिम बंगाल) से सूचना मिली है.
अग्रवाल ने कहा, ‘‘उन्हें पश्चिम बंगाल की सुधार सेवाओं के एडीजी और महानिरीक्षक से 10 फरवरी 2024 को राज्य की जेलों में पिछले चार वर्षों में जन्म लेने वाले बच्चों की कुल संख्या की जानकारी मिली, जिससे संकेत मिलता है कि पिछले चार वर्षों में राज्य की जेलों में 62 बच्चों का जन्म हुआ.’’
उन्होंने न्यायालय में दी गई एक अर्जी में कहा कि ऐसा लगता है कि ज्यादातर महिला कैदी जेल लाये जाने के समय गर्भवती थीं. कुछ मामलों में, महिला कैदी पैरोल पर बाहर गई थीं और जब लौटीं तो वे गर्भवती थीं.’’ यह भी पढ़ें : कांग्रेस के दो विधायक असम ‘सरकार में हुए शामिल’, लेकिन विपक्षी दल में बने रहेंगे : हिमंत
अग्रवाल ने जेलों में कथित अमानवीय दशाएं होने से जुड़े एक विषय में अर्जी दायर की और शीर्ष अदालत से रिपोर्ट के आलोक में निर्देश का अनुरोध किया. रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल में कुछ महिला कैदी हिरासत में रहने के दौरान गर्भवती हुईं. उन्होंने कहा कि जेलों में या महिलाओं की बैरकों में सुरक्षा उपायों को समझने के लिए उन्होंने राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के कारागार अधिकारियों के साथ बातचीत की. अर्जी में कहा गया है कि इसके आधार पर ऐसा लगता है कि दिल्ली की तिहाड़ जेल सहित कुछ स्थानों पर महिलाओं के लिए अलग जेल है. इसमें कहा गया है कि इन जेलों में केवल महिला अधिकारी हैं और इनके अंदर किसी पुरुष कर्मी को जाने की इजाजत नहीं है. अर्जी में कहा गया है, ‘‘जब कभी पुरुष चिकित्सक या पुरुष अधिकारी वहां का दौरा करते हैं तब एक महिला अधिकारी हमेशा उनके साथ होती हैं.’’ उन्होंने कहा कि अन्य स्थानों पर जेल परिसरों में महिलाओं की बैरक है, वहां भी इन प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है.
न्याय मित्र ने कहा, ‘‘देश में महिला जेलों और महिला बैरकों का पूर्ण सुरक्षा ऑडिट कराने की जरूरत है. साथ ही, महिला जेलों में चिकित्सा सुविधाओं की पड़ताल करने की भी जरूरत है ताकि उन्हें जेल में डाले जाने के समय और नियमित अंतराल पर उनकी उपयुक्त मेडिकल जांच हो सके.’’ उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी के अपने आदेश में जेलों में उनकी क्षमता से अधिक संख्या में कैदियों को रखे जाने से जुड़े कुछ पहलुओं की पड़ताल के लिए एक समिति गठित करने का निर्देश दिया है. अर्जी में कहा गया है, ‘‘जेलों में, जहां बच्चे हैं, यह सलाह दी जा सकती है कि जिले की बाल कल्याण समिति की एक महिला सदस्य को वहां उनकी माताओं के साथ रखे गए बच्चों के लिए क्रेच, स्कूली शिक्षा और अन्य सुविधाओं की उपलब्धता की जांच करने के लिए भेजा जाए….’’