
ब्रिटेन के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में कहा कि ट्रांस महिलाओं को जन्मजात महिलाओं की परिभाषा में शामिल नहीं किया जा सकता. इस फैसले को कई महिला अधिकार कार्यकर्ता एक जीत मान रहे हैं."आज जजों ने वही कहा जो सच है कि महिलाओं को सुरक्षा उनके जैविक सेक्स के आधार पर मिली है. सेक्स एक सच्चाई है और अब महिलाएं उन जगहों पर अधिक सुरक्षित महसूस कर पाएंगी जो जगहें उनके लिए बनी हैं.” यह कहना है 'फॉर वुमन स्कॉटलैंड' नाम की संस्था की सहसंस्थापक सुजैन स्मिथ का.
ब्रिटेन की अदालत ने हाल ही में अपने एक फैसले में महिलाओं की परिभाषा रेखांकित करते हुए कहा कि केवल जन्मजात महिलाएं ही, महिलाओं की परिभाषा में आती हैं. इसमें ट्रांस महिलाएं शामिल नहीं हैं.
ट्रांस महिलाएं उन महिलाओं को कहते हैं जो जन्म के समय मिले जेंडर से जुड़ा हुआ महसूस नहीं करतीं. मसलन अगर जन्म के समय उनका लिंग पुरुष था लेकिन वे खुद को एक महिला मानती हैं.
किसी एक समूह की जीत नहीं है यह फैसला: सुप्रीम कोर्ट
ब्रिटेन की अदालत ने अपने फैसले में यह साफ किया की ब्रिटेन में समानता का कानून सिर्फ उन्हीं महिलाओं पर लागू होता है जो जन्मजात महिला हैं. इसमें ट्रांस महिलाएं शामिल नहीं हैं. हालांकि, सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि उनका यह फैसला पूरी तरह समानता के इस कानून की परिभाषा पर आधारित है.
साथ ही कहा कि अदालत इस फैसले को किसी समूह की कीमत पर किसी दूसरे समूह की जीत के तौर पर नहीं देखती. फैसले में इस बात पर भी जोर दिया गया कि ट्रांस समुदाय को कानून के दूसरे प्रावधानों के तहत सुरक्षा पहले ही मिली हुई है.
ब्रिटेन ने 2004 में जेंडर रेकग्निशन एक्ट पास किया था ताकि ट्रांस समुदाय का जीवन कानूनी तौर पर बेहतर हो सके. इस एक्ट के बाद उन्हें सर्टिफिकेट दिया जाने लगा जिससे उनके लिए अपनी पहचान साबित करना आसान हो गया था. इसके बाद 2010 में सेक्स के आधार पर अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए इक्वलिटी एक्ट लाया गया. इन दोनों ही कानूनों का जिक्र अदालत ने अपने फैसले में किया है.
अदालत ने अपने फैसले में भी कहा कि ट्रांस सुमदाय के लिए अलग से प्रावधान मौजूद हैं लेकिन यह देखना भी जरूरी हो जाता है कि क्या उन्हें वे सारे अधिकार भी मिले हुए हैं जो किसी जन्मजात महिला को प्राप्त हैं. समान प्रतिनिधित्व की लड़ाई दोनों ही समुदाय लड़ रहे हैं. हालांकि, तुलनात्मक रूप से आज भी ट्रांस समुदाय, जन्मजात महिलाओं के मुकाबले अधिक हाशिये पर नजर आता है.
इस फैसले को पश्चिमी देशों में मजबूत होते इस नैरेटिव से भी जोड़ा जा रहा है जो सिर्फ दो जेंडरों को ही मानता है. जैसा कि अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रंप के आने के बाद हुआ और जर्मनी के चांसलर इन मेकिंग मैर्त्स भी कह चुके हैं कि उनका भी मानना है कि जेंडर सिर्फ दो होते हैं.
ब्रिटेन के कानूनविदों का कहना है कि इस फैसले के बाद समानता के कानून में बदलाव जरूरी हैं ताकि ट्रांस समुदाय के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके.
कब और कहां शुरू हुआ था यह मामला
हालांकि, अदालत का फैसला आते ही एक पक्ष इस फैसले की जीत का जश्न मनाता जरूर नजर आया. अदालत में यह मामला ‘फॉर वुमन स्कॉटलैंड' (एफडब्ल्यूएस) ही लेकर आई थी. यह संस्था स्कॉटलैंड के ‘जेंडर रिप्रेजेंटेशन ऑन पब्लिक बोर्ड्स एक्ट' में महिलाओं की परिभाषा में ट्रांस महिलाओं को शामिल करने के फैसले के खिलाफ थी.
इस मामले की शुरुआत हुई 2018 में जब स्कॉटलैंड की सरकार ने कहा था कि जेंडर रेकग्निशन सर्टिफिकेट के आधार पर ट्रांस महिलाओं को महिला ही माना जाना चाहिए. तब सरकार का मकसद था इन बदलावों के जरिये लैंगिक समानता और ट्रांस प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देना.
हालांकि एफडब्ल्यूएस ने इसका विरोध किया. तब यह संस्था सरकार के खिलाफ स्कॉटलैंड की अदालतों में गई लेकिन वहां वह केस हार गई. अब ब्रिटेन की अदालत ने इनके पक्ष में यह फैसला सुनाया है.
अदालत भले ही इस फैसले को एक समूह की जीत के तौर पर ना देखती हो लेकिन एफडब्ल्यूएस ट्रांस महिलाओं को महिला अधिकारों में शामिल करने के हमेशा खिलाफ रहा है. उदाहरण के तौर पर इनकी आधिकारिक साइट पर लिखा है, "संस्था मानती है कि केवल दो सेक्स ही होते हैं. सेक्स वैकल्पिक नहीं है ना ही उसे बदला जा सकता है. महिलाओं को सम्मान, सुरक्षा और निष्पक्षता का अधिकार है.” इससे यह नजर आता है कि संस्था महिला अधिकारों के समर्थन से अधिक ट्रांस अधिकारों के विरोध में काम कर रही है.
महिला अधिकार बनाम ट्रांस अधिकार
ब्रिटेन की मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक कोर्ट के फैसले के बाद एफडब्ल्यूएस ने फंड इकट्ठा करने के लिए बड़े स्तर पर अभियान चलाएं. संस्था को हैरी पॉटर की लेखिका जेके रोलिंग से भी आर्थिक मदद मिली. रोलिंग अपने ट्रांस विरोधी विचारों के लिए सोशल मीडिया पर जानी जाती हैं. ब्रिटेन की अदालत के फैसले के बाद सोशल मीडिया पर वह लिखती हैं कि ट्रांस अधिकार कार्यकर्ता जो इस फैसले को अन्याय के रूप में देख रहे हैं, सच्चाई ये है कि उन्होंने वे अधिकार खोए हैं जो उनके कभी थे ही नहीं.
इस फैसले ने कार्यकर्ताओं को दो खेमों में बांट दिया है. एक वह जो शुरू से यह मानता आया है कि ट्रांस महिलाओं को महिला अधिकारों में जगह नहीं मिलनी चाहिए. उनके लिए अलग से प्रावधान होने चाहिए. वहीं, दूसरा खेमा वह जो मानता है कि पूरी बहस ही इस बात पर टिकी है कि ट्रांस महिलाएं भी महिलाएं हैं. उन्हें जन्मजात महिलाओं से अलग करके नहीं देखा जा सकता. ब्रिटेन की सांसद नादिया व्हिटोम इस फैसले के विरोध में लिखती हैं एक शोषित समूह के अधिकारों पर हमला करना नारीवाद की जीत नहीं है.
शुरुआत से ही कई महिला अधिकार संगठन ट्रांस महिलाओं को महिला मानने से इनकार करते आए हैं. खासकर यूके में हाल के कुछ सालों में ऐसे महिला अधिकार संगठन फ्रंट पर आकर इस बात की पैरवी अधिक करने लगे हैं कि महिला अधिकार सिर्फ जन्म के आधार पर मिले जेंडर तक ही सीमित होने चाहिए. लॉ फर्म शेक्सपियर मार्टिन्यू के कर्मचारी फिलिफ पेप्पर कहते हैं कि यह फैसला दो समुदायों के बीच पहले से मौजूद खाई को और गहरा कर देगा.
ट्रांस अधिकारों के खिलाफ इस्तेमाल किया जा सकता है यह फैसला?
हालांकि, इस फैसले का वास्ता सिर्फ पब्लिक सेक्टर के बोर्ड में महिलाओं के प्रतिनिधित्व तक ही नहीं है. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का जो धड़ा जो ट्रांस महिलाओं को महिला मानने का विरोध करता आया है, उनकी दलील यह होती है कि ट्रांस महिलाएं अपना जेंडर बदलकर उन अधिकारों का फायदा उठाती हैं जो सिर्फ जन्मजात महिलाओं के लिए बने हैं.
क्वीयर अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था स्टोनवॉल ने इस फैसले पर चिंता जाहिर करते हुए कहा है कि वे चिंतित हैं कि इस फैसले को किस तरीके से ट्रांस समुदाय के खिलाफ लागू किया जाएगा.
ब्रिटेन की सरकार ने भी कहा है कि इस फैसले से कई मामलों में पार्दरशिता आएगी. खासकर स्वास्थ्य, शरणार्थी जैसे मामलों. उदाहरण के तौर पर कई स्वास्थ्य सुविधाएं केवल महिलाओं के लिए मौजूद हैं, अब उन स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ जेंडर रेकग्निशन सर्टिफिकेट के आधार पर ट्रांस महिलाओं को नहीं मिलेगा. इन बुनियादी सुविधाओं की गैरमौजूदगी ट्रांस समुदाय को अधिक हाशिये पर धकेल सकती है.
यह फैसला छोटे स्तर पर एक नजीर की तरह भी काम कर सकता है. मसलन ट्रांस महिलाएं, महिलाओं के लिए बने शौचालय या चेंजिंग रूम का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगी. अगर उनके लिए अलग से सुविधाएं मौजूद ना हो जो अक्सर होता है तो इस सूरत में उनके विकल्प क्या होंगे. इसलिए, ब्रिटेन के एक ट्रांस समूह ‘ट्रांसएक्चुअल' ने बयान जारी कर कहा कि इस फैसले का मकसद साफ है, ट्रांस समुदाय को ब्रिटेन के सामाजिक जीवन में शामिल होने से रोकना.