
तुर्की में अब किसी ठोस मेडिकल कारण के बिना निजी अस्पतालों में महिलाएं सिजेरियन डिलिवरी का चुनाव नहीं कर पाएंगी. सरकार ने इसपर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है. इस फैसले को महिला अधिकारों के खिलाफ माना जा रहा है.तुर्की की सरकार ने निजी अस्पतालों में 'इलेक्टिव सिजेरियन डिलिवरी' पर रोक लगा दी है. यानी, अपनी मर्जी से सिजेरियन डिलिवरी चुनने वाली महिलाएं अब ऐसा नहीं कर पाएंगी. सरकार के नए आदेश के मुताबिक, बिनी किसी ठोस मेडिकल कारण के सिजेरियन डिलिवरी की इजाजत नहीं दी जाएगी.
तुर्की में हाल ही में एक सुपरलीग फुटबॉल मैच के दौरान सिवासपोर टीम के खिलाड़ी एक पोस्टर लेकर मैदान में उतरे. इस पोस्टर पर लिखा था, "नॉर्मल डिलिवरी से बच्चे को जन्म देना ही प्राकृतिक है."
ये पोस्टर तुर्की के स्वास्थ्य मंत्रालय का था. इसका मकसद था, जन्म देने के सिजेरियन तरीके की जगह प्राकृतिक तरीके को बढ़ावा देना. महिला अधिकार कार्यकर्ताओं, आम लोगों और विपक्षी दल के नेताओं ने इस पोस्टर का विरोध किया.
तुर्की की मुख्य विपक्षी पार्टी सीएचपी गोकचे गोकचन ने एक्स पर लिखा, "ऐसा लगता है जैसे इस देश के पास दूसरी समस्याएं ही नहीं हैं. अब पुरुष फुटबॉल खिलाड़ी महिलाओं को बता रहे हैं कि उन्हें बच्चे कैसे पैदा करने चाहिए." गोकचन ने आगे लिखा, "महिलाओं के मुद्दे में अपनी अज्ञानता मत शामिल कीजिए, अपने हाथ महिलाओं के शरीर से दूर रखिए."
2025 को एर्दोआन ने घोषित किया था "परिवार के नाम"
इस साल की शुरुआत में राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोआन ने कहा था कि 2025 तुर्की में परिवार के नाम रहेगा. कई दूसरे देशों की तरह तुर्की भी घटती प्रजनन दर की समस्या का सामना कर रहा है. एर्दोआन का यह भी मानना है कि तुर्की की हर महिला को कम-से-कम तीन बच्चे पैदा करने चाहिए.
तुर्की की प्रजनन दर 2023 में अब तक के अपने सबसे कम स्तर पर 1.51 पर पहुंच गई. 1960 में यह दर 6.5 थी. घटती प्रजनन दर को बढ़ाना मौजूदा सरकार की कई प्राथमिकताओं में से एक है.
इसके लिए राष्ट्रपति एर्दोआन की सरकार ने युवा जोड़ों को बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने की योजनाएं शुरू की हैं. शादी करने वालों को आर्थिक सहायता भी दी जा रही है. ऐसा दक्षिण कोरिया, जापान समेत कई देशों में देखने को मिल रहा है जहां प्रजनन दर घट रही है.
शुरू से सिजेरियन डिलिवरी के खिलाफ रहे हैं एर्दोआन
फुटबॉल टीम के पोस्टर ले जाने पर जिन लोगों ने विरोध किया, उनके खिलाफ भी राष्ट्रपति एर्दोआन ने नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि देश का एक फुटबॉल क्लब स्वास्थ्य मंत्रालय का पोस्टर लेकर मैदान पर उतरा. इसमें महिलाओं का अपमान, आलोचना या कुछ ऐसा नहीं था, जो महिलाओं को ठेस पहुंचाए. एर्दोआन ने जिज्ञासा जताई कि कुछ लोगों को इस बात से क्या दिक्कत है कि देश का मंत्रालय जन्म देने के प्राकृतिक तरीके की पैरवी कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा, "हमारे पास ऐसी बेवकूफी के लिए समय नहीं है, जब देश की प्रजनन दर और जनसंख्या वृद्धि एक खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है. यह डर किसी युद्ध से भी ज्यादा खतरनाक है."
हालांकि, पहली बार नहीं है जब एर्दोआन के एजेंडे में सिजेरियन का विरोध शामिल हुआ है. वो प्राकृतिक तरीके से जन्म देने के तरीके का समर्थन करते आए हैं. साल 2012 में उन्होंने दावा किया था कि सिजेरियन ऐसी प्रक्रिया है, जिसे तुर्की की जनसंख्या को बढ़ने से रोकने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
सिजेरियन डिलिवरी के खिलाफ कानून लाने वाला पहला देश बना तुर्की
साल 2012 में ही तुर्की पहला देश बना, जहां सिजेरियन डिलिवरी के खिलाफ कड़े कानून लाए गए. इस कानून के मुताबिक, बिना किसी वजह के महिलाओं को 'इलेक्टिव सिजेरियन' की सलाह देने वाले डॉक्टरों पर जुर्माने का प्रावधान था. उस वक्त भी इसे महिला अधिकारों के खिलाफ लिए गए एक फैसले के तौर पर देखा गया था.
सिजेरियन बर्थ के पीछे कई वजहें होती हैं. जैसे कि बच्चे के जन्म के दौरान जटिलताएं, जन्म के दौरान होने वाले लेबर पेन का डर, स्वास्थ्य संबंधी दूसरी दिक्कतें. हर गर्भवती महिला की सिजेरियन चुनने के पीछे अलग वजह हो सकती है. इसलिए कई विशेषज्ञ कहते हैं कि सिजेरियन डिलिवरी को पूरी तरह प्रतिबंधित करना समाधान नहीं हो सकता.
प्रजनन दर क्या सिजेरियन से प्रभावित होती है?
एर्दोआन सरकार का तर्क है कि सिजेरियन तरीके से बच्चे पैदा करने के बाद महिलाओं को ठीक होने में ज्यादा वक्त लगता है. यह पहले से ही घटती प्रजनन दर को और प्रभावित करता है. तथ्यात्मक रूप से यह सही है कि सिजेरियन डिलिवरी के बाद ठीक होने में लंबा वक्त लगता है.
हालांकि, वैज्ञानिक आधार पर सिजेरियन और घटती प्रजनन दर का कोई सीधा संबंध स्थापित होता नहीं दिखता. वैश्विक अर्थव्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती महंगाई, महिला अधिकारों को लेकर जागरूकता जैसे तमाम कारण इसके पीछे हैं.
सिर्फ तुर्की ही नहीं, बल्कि सिजेरियन डिलिवरी अब दुनियाभर में प्रचलित है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, हर पांच में से एक बच्चे का जन्म सिजेरियन तरीके से होता है. अनुमान है कि साल 2030 तक दुनिया के 29 फीसदी बच्चों का जन्म सिजेरियन तरीके से ही होगा.
मेडिकल कारणों के बिना सी-सेक्शन हानिकारक
स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं के बीच ये एक जीवनरक्षक तरीका जरूर है, लेकिन अगर बेवजह किया जाए तो इससे मां और बच्चे दोनों को ही आगे चलकर स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं.
डब्ल्यूएचओ के यौन एवं प्रजनन विभाग के निदेशक डॉ. इयन अस्क्यू कहते हैं, "उन स्थितियों में, जिनमें नॉर्मल डिलिवरी जानलेवा हो सकती है, वहां महिलाओं को सिजेरियन की सुविधा देना बेहद जरूरी है. लेकिन फिलहाल सारे सी-सेक्शन मेडिकल कारणों से नहीं किए जा रहे हैं, जो मां-बच्चे दोनों की सेहत के लिए हानिकारक है."
निजी मेडिकल अस्पतालों पर यह आरोप भी लगते आए हैं कि वे अधिक फीस वसूलने और वक्त बचाने के लिए जब जरूरी ना भी हो, तब भी सी-सेक्शन की सलाह देते हैं. तुर्की के मामले में भी यह देखा जा सकता है. 'मेडिकल सेंटर तुर्की' के मुताबिक, एक निजी अस्पताल में नॉर्मल डिलिवरी की फीस जहां 20 से 25 हजार रुपये है वहीं, सी- सेक्शन की फीस 25 हजार से शुरू ही होती है. हालांकि यह फीस स्थिति, इलाके और दूसरे कारणों पर भी निर्भर करती है.
सिजेरियन पर प्रतिबंध की आलोचनाएं क्या हैं
सिजेरियन डिलिवरी की अपनी सीमाएं और आलोचनाएं हैं, लेकिन विशेषज्ञ इसपर पूरी तरह प्रतिबंध लगाना सही नहीं मानते हैं. कई महिलाएं इसे अपनी स्वेच्छा से चुनती हैं. इसीलिए यह फैसला महिलाओं की शारीरिक स्वायत्तता का हनन है.
विशेषज्ञों की राय में सरकार, प्रतिबंध की जगह जागरूकता अभियान चला सकती है, गर्भावस्था में बेहतर देखभाल की सुविधाएं सुनिश्चित कर सकती है. सही दिशानिर्देशों और नियमित जांच सिजेरियन की संख्या को घटाने के काम आ सकती है.
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का आरोप है कि तुर्की में लगाया गया बैन महिलाओं से उनके अधिकार छीनने की कोशिश है, ताकि देश के प्रजनन दर को फिर से बेहतर किया जा सके. महिला अधिकार समर्थक रेखांकित करते हैं कि ऐसी नीतियों के तहत महिलाओं की भूमिका को फिर से सिर्फ बच्चे पैदा करने तक सीमित किया जा रहा है.