
जर्मनी के चांसलर बनने जा रहे फ्रीडरिष मैर्त्स की व्यक्तिगत लोकप्रियता कम है. ये और भी कम होती जा रही है. ज्यादातर जर्मन उन पर भरोसा नहीं करते. आखिर इसकी वजह क्या है?फ्रीडरिष मैर्त्स को जर्मनी का नया चांसलर चुने जाने का रास्ता साफ हो गया है. मौजूदा चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की सोशल डेमोक्रैटिक पार्टी (एसपीडी) ने मैर्त्स की क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन (सीडीयू) के साथ गठबंधन में शामिल होने पर हरी झंडी दे दी है.
जर्मनी: नई सरकार का रास्ता साफ, 6 मई को चुने जाएंगे चांसलर
सीडीयू और उसकी क्षेत्रीय सहयोगी पार्टी सीएसयू ने इस फैसले का स्वागत किया है. 5 मई को घटक दल गठबंधन के समझौते पर दस्तखत करेंगे. इसके बाद 6 मई को बुंडेसटाग, यानी जर्मन संसद के निचले सदन में फ्रीडरिष मैर्त्स को देश का अगला चांसलर चुन लिया जाएगा.
69 वर्षीय मैर्त्स ने भले ही फरवरी में हुए संघीय चुनाव में जीत हासिल की है, लेकिन उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता लगातार कम होती जा रही है. फोरजा शोध संस्थान ने अप्रैल में 'श्टेर्न' पत्रिका के लिए एक सर्वे किया. इसके मुताबिक, सर्वे में शामिल सिर्फ 21 फीसदी लोगों ने मैर्त्स को भरोसेमंद माना है. यह पिछले साल अगस्त की तुलना में नौ फीसदी और इस साल जनवरी की तुलना में तीन फीसदी कम है.
इसी सर्वे में यह भी पाया गया है कि सिर्फ 40 फीसदी लोगों ने मैर्त्स को मजबूत नेता माना. 27 फीसदी प्रतिभागियों ने सोचा कि मैर्त्स "जानते हैं कि लोगों को क्या प्रेरित करता है." यानी, वे "लोगों की नब्ज" जानते हैं. इन दोनों पैमानों पर भी मैर्त्स को जनवरी की तुलना में नौ फीसदी कम अंक मिले हैं. हालांकि, अच्छी बात यह है कि सर्वे में मैर्त्स को नेतृत्व के जिस एक पैमाने में बहुमत मिला है, वह यह है कि करीब 60 फीसदी लोगों को लगता है कि मैर्त्स "आसानी से समझ में आने वाली बातें करते हैं."
बहुत विशाल जनाधार के साथ नहीं आ रहा है गठबंधन
यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मैर्त्स जर्मनी के अब तक के सबसे लोकप्रिय चांसलर-इन-वेटिंग नहीं हैं. बवेरिया में 'टुत्सिंग एकेडमी फॉर पॉलिटिकल एजुकेशन' की निदेशक उर्सुला म्युंश ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह पूरी तरह से मैर्त्स की गलती नहीं है. वह कहती हैं, "परिस्थितियां पहले से बहुत अलग हैं. हमारे पास एक ऐसी सरकार है, जिसे मतदाताओं का अपेक्षाकृत कम समर्थन मिला है."
मैर्त्स ने इतिहास के सबसे अच्छे समय में शुरुआत नहीं की है. पारंपरिक राजनीति की आम भाषा में, सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी के गठबंधन को 'महागठबंधन' कहा जाता है. ये दोनों पार्टियां कई दशकों तक जर्मनी के मतदाताओं के भारी बहुमत (कभी-कभी 80 फीसदी से भी अधिक) का प्रतिनिधित्व करती थीं.
साल 2025 में राजनीतिक परिदृश्य काफी बदल चुका है, क्योंकि पिछले 20 वर्षों में पार्टियां कई बार टूटी हैं. ऐसे में, फरवरी के चुनावी नतीजों को देखें, तो जो दो बड़ी मध्यममार्गी पार्टियां हैं, उन्हें सिर्फ 45 फीसदी मतदाताओं का समर्थन मिला है. इसका मतलब है कि अब पहले जैसी स्थिति नहीं रही, जहां दो बड़ी पार्टियां ही सब कुछ थीं.
मैर्त्स पर क्यों नहीं भरोसा कर रहे लोग
दो स्पष्ट कारण हैं, जिनकी वजह से पिछले कुछ महीनों में लोगों के बीच मैर्त्स की लोकप्रियता कम हुई. जनवरी में मैर्त्स ने तब अपना वादा तोड़ा, जब वे जर्मनी के धुर-दक्षिणपंथी दल 'ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी' (एएफडी) के समर्थन से बुंडेसटाग में एक प्रस्ताव पास कराने वाले पहले सीडीयू नेता बने. जबकि, एएफडी के कई गुटों को खुफिया एजेंसियां जर्मनी की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा मानती हैं.
हालांकि, मैर्त्स ने कुछ हफ्ते बाद जो काम किया वह सीडीयू समर्थकों को इससे भी ज्यादा बुरा लगा. मार्च में, मैर्त्स ने एसपीडी और ग्रीन्स के साथ मिलकर कर्ज पर रोक लगाने वाले नियम (डेट ब्रेक) में बदलाव करने पर सहमति जताई. इससे 1 ट्रिलियन यूरो के नए कर्ज लेने का रास्ता खुल गया. जबकि, चुनाव के दौरान उन्होंने कहा था कि वो ऐसा बिल्कुल नहीं करेंगे.
जिस 'डेट ब्रेक' पर ढही जर्मन सरकार, अब उस पर बनी सहमति
इससे उनके कई मतदाताओं को लगा कि मैर्त्स ने उनके साथ धोखा किया है. उस समय सार्वजनिक प्रसारक 'जेडडीएफ' की ओर से किए गए 'पोलिटबैरोमीटर' सर्वे में लगभग 73 फीसदी जर्मन इस बात से सहमत थे कि उन्होंने (मैर्त्स) मतदाताओं को धोखा दिया है. इनमें सीडीयू/सीएसयू के करीब 44 फीसदी समर्थक भी शामिल थे.
खासतौर पर महिलाओं के बीच अलोकप्रिय हैं मैर्त्स
मैर्त्स की समस्याएं उनके हालिया यू-टर्न से कहीं ज्यादा पुरानी हैं. सर्वेक्षणों से पता चला है कि वे महिलाओं के बीच खासतौर पर अलोकप्रिय हैं. मार्च 2024 के फोरजा सर्वे में पाया गया कि 18 से 29 वर्ष के आयुवर्ग की केवल नौ फीसदी महिलाएं ही मैर्त्स को अपना पसंदीदा चांसलर उम्मीदवार मानती हैं.
मैर्त्स पर महिलाओं के प्रति द्वेष के भी आरोप लगे हैं. अक्सर यह प्रसंग उठाया जाता है कि 1997 में वे बुंडेसटाग के उन सदस्यों में से एक थे, जिन्होंने वैवाहिक बलात्कार (मैरिटल रेप) को अपराध मानने के खिलाफ मतदान किया था.
अक्टूबर 2024 में, लैंगिक तौर पर संतुलित मंत्रिमंडल के विचार को अस्वीकार करने के लिए भी उनकी आलोचना की गई थी. इसके बाद फरवरी में एक तस्वीर जारी की गई, जिसमें सीडीयू/सीएसयू गठबंधन के मुख्य वार्ताकार नजर आ रहे थे. ये सभी लोग मध्यम आयु वर्ग के पुरुष थे. इससे महिलाओं के बीच वे और ज्यादा अलोकप्रिय हो गए.
फ्रीडरिष मैर्त्स ने नाटो के मौजूदा स्वरूप पर उठाया सवाल
मैर्त्स पूर्वी जर्मनी में भी अलोकप्रिय हैं. चुनाव से पहले वे लगातार एएफडी नेता अलीस वाइडेल और एसपीडी के ओलाफ शॉल्त्स से पीछे चल रहे थे. ऐसा लगता है कि इसका एक कारण रूस के प्रति उनका आक्रामक रवैया भी है.
एएफडी को लेकर मैर्त्स की समस्या
ऐसा लगता मानो मैर्त्स की गणना ये है कि जब दुनियाभर में दक्षिणपंथ की लोकप्रियता बढ़ रही है, तो लोगों को सीधी बात करने वाला नेता चाहिए. लेकिन ऐसा नहीं लगता कि लोक-लुभावननादी बातें उन्हें लोकप्रिय बना रही हों. नवंबर 2018 में जब मैर्त्स ने पहली बार सीडीयू का नेतृत्व फिर से संभालने के लिए अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी, तो उन्होंने एक ट्वीट किया था जो समय के साथ और बदमजा होता जा रहा है.
उन्होंने लिखा था, "हम फिर से 40 फीसदी तक पहुंच सकते हैं और एएफडी को आधा कर सकते हैं. यह संभव है! लेकिन हमें इसके लिए शर्तें बनानी होंगी. यह हमारा काम है."
हालांकि, हुआ तकरीबन उल्टा. जनवरी 2022 में जब से मैर्त्स ने सीडीयू का नेतृत्व फिर से, यानी तीसरी बार संभाला, तो पार्टी की पोल रेटिंग 24 फीसदी पर बनी हुई है. जबकि, एएफडी की रेटिंग आधी नहीं, दोगुनी हो गई और यह 11 से बढ़कर 24 फीसदी पर पहुंच गई है. जर्मनी की धुर-दक्षिणपंथी और सेंटर-राइट पार्टियां अब एक-दूसरे के बराबर हैं.
हालांकि, मैर्त्स को अब तक चांसलर बनने का मौका नहीं मिला है. म्युंश का कहना है कि मैर्त्स अभी भी एएफडी के बारे में की गई अपनी भविष्यवाणी को सच कर सकते हैं. ऐसा उस स्थिति में हो सकता है, जब उनकी सरकार बिना किसी अंदरूनी झगड़े के चलती रहे.
साथ ही, उन्हें कोरोना महामारी या यूक्रेन में बढ़ते युद्ध जैसे बाहरी संकट का सामना न करना पड़े. ऐसी परिस्थितियों में चांसलर को और भी यू-टर्न लेने पड़ सकते हैं और ज्यादा भरोसा भी खोना पड़ सकता है. ये स्थितियां काफी ज्यादा मायने रखेंगी. शॉल्त्स की सरकार को गठबंधन में हो रहे झगड़ों की वजह से काफी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ा था.
म्युंश ने कहा, "एएफडी की लोकप्रियता कम करने का सबसे अच्छा तरीका यह नहीं है कि आप अचानक शरणार्थी नीति में ऐसे बड़े बदलावों की घोषणा करें, जिन्हें आप लागू नहीं कर सकते. यह ठोस कदम है, जो लोगों को भी दिखाई देते हैं. हालांकि, यह ऐसी चीज नहीं है जिसे एक नई सरकार रातोरात बदल सकती है. लोगों को फिर से भरोसा दिलाने की जरूरत है और यह तभी संभव होगा, जब आर्थिक पूर्वानुमान ज्यादा सकारात्मक होगा और शरणार्थियों की संख्या कम होगी."
मैर्त्स कई वर्षों तक निवेश कंपनी 'ब्लैकरॉक' के बोर्ड में थे. इसलिए शुरू में कारोबारी पृष्ठभूमि के कारण उन्हें एक मजबूत उम्मीदवार माना जाता था, जो उनके आर्थिक कौशल का संकेत था. हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में उनके लोकलुभावन बयानों में आप्रवासन प्रमुख मुद्दा रहा है और इसने भी एएफडी का जनाधार कम करने में उनकी मदद नहीं की है.