नाटो के सम्मेलन में क्या कर रहे हैं आईपी-4 देश
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

वॉशिंगटन में जारी नाटो सदस्य देशों के नेताओं की बैठक में शामिल आईपी-4 कहे जाने वाले ये देश, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया, नाटो के लिए लगातार अहम होते जा रहे हैं.जापान के प्रधानमंत्री फूमियो किशिदा, दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति युन सक-योल, न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लक्सन और ऑस्ट्रेलिया के उप प्रधानमंत्री व रक्षा मंत्री रिचर्ड मार्लेस नाटो की बैठक में हिस्सा लेने के लिए अमेरिका में हैं.

यह इन देशों के लिए तीसरा लगातार नाटो शिखर सम्मेलन है, जिन्हें इंडो-पैसिफिक फोर (आईपी-4) कहा जाता है. ये सभी देश नाटो और ईयू नेताओं के साथ गुरुवार को एक सत्र में शामिल होंगे. चीन द्वारा ताइवान पर हमले की संभावना और रूस के साथ चीन के बढ़ते सुरक्षा संबंधों और परमाणु-शक्ति संपन्न उत्तर कोरिया की चिंताओं के कारण यह विशेष सत्र हो रहा है.

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका अत्यधिक सक्रिय रहा है. इसे चीन को घेरने की रणनीति के तौर पर देखा जाता है, जिसमें एक तरफ तो अमेरिका ने भारत के साथ संबंध मजबूत किए हैं और दूसरी तरफ प्रशांत महासागर में ऑस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड को अपनी सामरिक रणनीति का अहम हिस्सा बनाया है. इसके अलावा जापान व दक्षिण कोरिया के साथ भी रक्षा व तकनीकी क्षेत्र में सहयोग बढ़ाया गया है.

इंडो-पैसिफिक में नाटो की दिलचस्पी

नाटो सम्मेलन में अमेरिका के सहयोगी देश रूस के यूक्रेन में युद्ध और चीन के साथ रूस की "कोई सीमा नहीं" के नारे के साथ बढ़ रही साझेदारी का विरोध करने के लिए तेजी से एकजुट हो रहे हैं. इन देशों का मानना है कि चीन यूक्रेन के खिलाफ रूस की मदद कर रहा है.

2022 में नाटो सदस्यों ने पहली बार कहा था कि चीन एक संभावित खतरा है. 2023 के नाटो शिखर सम्मेलन में, उन्होंने चीन और रूस की "नियम-आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को कमजोर करने के उनके पारस्परिक प्रयासों" के लिए निंदा की और बीजिंग की "धमकाने वाली रणनीतियों" के बारे में चेतावनी दी.

वॉशिंगटन शिखर सम्मेलन के बयान के मसौदे में चीन को रूस के यूक्रेन युद्ध के प्रयासों का "निर्णायक समर्थक" कहा गया और इस बात पर जोर दिया गया कि यूरोप और बाकी पश्चिम की सुरक्षा के लिए चीन एक बड़ी चुनौती है.

इस रणनीतिक बदलाव ने नाटो के लिए इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की अहमियत को बढ़ाया. नाटो ने माना कि इस क्षेत्र में हो रहीं घटनाएं सीधे यूरो-अटलांटिक सुरक्षा को प्रभावित करती हैं. उसने यूक्रेन का समर्थन करने के लिए एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ बढ़े सहयोग का स्वागत किया.

अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलिवन ने कहा कि नाटो सहयोगी और इंडो-पैसिफिक साझेदार यूक्रेन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, फेक न्यूज और साइबर सुरक्षा पर चार नई संयुक्त परियोजनाएं शुरू करेंगे.

इंडो-पैसिफिक में नाटो की सक्रियता

2021 में पद संभालने के बाद बाइडेन ने यूरोपीय सहयोगियों से इंडो-पैसिफिक पर अधिक ध्यान देने का आग्रह किया था. उन्होंने इंडो-पैसिफिक में भी नाटो जैसा संगठन बनाने की इच्छा भी जाहिर की थी. लेकिन इस बार इंडो-पैसिफिक देशों के साथ बातचीत में ज्यादा जोर इस बात पर रह सकता है कि वे युद्ध में यूक्रेन की कैसे मदद कर सकते हैं.

हाल के वर्षों में इंडो-पैसिफिक में यूरोप ने भी अपनी सक्रियता और संवाद बढ़ाया है. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर ब्रिटेन ने आकुस (AUKUS) गठबंधन बनाया जिसके तहत ऑस्ट्रेलिया को परमाणु-संचालित पनडुब्बी देने का समझौता हुआ.

यूरोप और एशिया के बीच रक्षा संबंधों का यह नया दौर है क्योंकि इस क्षेत्र के साथ अब तक यूरोपीय रक्षा संबंध अस्थायी और मामूली रहे हैं, जिनमें छोटे दौरे, और सेनाओं द्वारा कभी-कभी गश्त या अभ्यास शामिल हैं. दरअसल, कई नाटो सहयोगी और इंडो-पैसिफिक देश गठबंधन को उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र के बाहर अपना दायरा बढ़ाते हुए नहीं देखना चाहते. हाल ही में जब नाटो ने जापान में अपना दफ्तर खोलने का प्रस्ताव रखा तो फ्रांस ने उसे रोक दिया था. चीन इस प्रस्ताव से काफी नाराज हुआ था.

क्या कर सकता है यूरोप

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यूरोप के नाटो सदस्यों को अपनी यूरोपीय सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की क्षमता बढ़ानी चाहिए ताकि अमेरिका का बोझ कुछ कम हो और वह चीन की ओर से संभावित खतरों पर ज्यादा ध्यान दे सके.

बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में पूर्व वरिष्ठ अधिकारी क्रिस्टोफर जॉनस्टोन कहते हैं कि यूरोप का सबसे बड़ा योगदान "यह सुनिश्चित करना होगा कि अगर ताइवान या इंडो-पैसिफिक में कोई खतरा खड़ा होता है तो वह रूस के खतरे के खिलाफ निरोधक के बोझ को उठाने लिए तैयार हो."

नाटो ने सदस्यों द्वारा जीडीपी के दो फीसदी के रक्षा खर्च लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयासों को सराहा है, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि ये देश कई दशकों से रक्षा पर बहुत कम खर्च कर रहे हैं, इसलिएअधिकतर देश इंडो-पैसिफिक में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम नहीं हैं.

पूर्व पेंटागन अधिकारी एल्ब्रिज कोल्बी कहते हैं, "असल में (नाटो देश) ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते जो इंडो-पैसिफिक में (संभावित) संघर्ष में कोई बड़ा असर डाल सके. ज्यादातर यूरोपीय सेनाएं बुनियादी रसद के लिए अमेरिका पर निर्भर होंगी. यह पूरी तरह से संभव है कि उनका योगदान नकारात्मक होगा."

वीके/एए (रॉयटर्स)