श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव: विक्रमसिंघे के सामने कई चुनौतियां
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

श्रीलंका में 21 सितंबर को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने हैं. राष्ट्रपति रनिल विक्रमसिंघे को उम्मीद है कि आर्थिक संकट के बाद उन्होंने जो भूमिका निभाई उसके आधार पर मतदाता उनकी किस्मत का फैसला करेंगे.गुरुवार 29 अगस्त को अपने चुनावी अभियान की शुरुआत करते हुए राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि श्रीलंका के पास अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के पैकेज को स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं था और उसके लिए कुछ सख्त कदम उठाए जाने की जरूरत थी.

75 साल के विक्रमसिंघे ने कहा कि आईएमएफ के जिस 2.9 अरब डॉलर के पैकेज पर उन्होंने 2023 में समझौता करवाया था उसके लिए कुछ सुधारों की जरूरत थी और देश को या तो उन सुधारों को लागू करना होगा या उसी कठिन परिस्थिति में फिर से पहुंच जाने के लिए तैयार रहना होगा.

विक्रमसिंघे के प्रतिद्वंदी

अपने मैनिफेस्टो को लॉन्च करते हुए उन्होंने कहा, "आईएमएफ और हमारे द्विपक्षीय करदाताओं से किए गए समझौतों को बदला नहीं जा सकता. कुछ उम्मीदवारों को लगता है कि वो ऐसा कर सकते हैं, लेकिन यह सिर्फ समय की बर्बादी होगी."

विक्रमसिंघे के मुख्य प्रतिद्वंदी हैं विपक्ष के नेता सजिथ प्रेमदासा (उम्र 57 साल) और मार्क्सवादी नेता अनुरा कुमारा दिसानायके (55 साल) और दोनों ने आईएमएफ के साथ इन समझौतों को फिर से करने के लिए नए सिरे से बातचीत करने का वादा किया है.

प्रेमदासा ने यह भी वादा किया है कि वो विक्रमसिंघे द्वारा दोगुना किए गए इनकम टैक्स में भी कटौती करेंगे. दिसानायके की पार्टी ने कहा है कि वो सरकारी कंपनियों के होने वाली निजीकरण को रोकेगी. प्रतिद्वंदियों के इन वादों के बीच विक्रमसिंघे ने कहा कि उनकी आईएमएफ के साथ इस बात पर सहमति बनी है कि अगले साल से मध्यम वर्ग और कम आय वाले वर्गों पर टैक्स के बोझ को कम किया जाएगा. हालांकि उन्होंने इसके बारे में विस्तार से नहीं बताया.

श्रीलंका में भूख और गरीबी की मार

विक्रमसिंघे के दो सालों के कार्यकाल के दौरान महंगाई दर 70 प्रतिशत से नीचे गिर कर पांच प्रतिशत पर आ गई. ब्याज दरें भी नीचे आ गईं, रुपये की स्थिति बेहतर हुई और विदेशी मुद्रा भंडार भी बढ़ा. लेकिन लोग ऊंची टैक्स दरों के खिलाफ शिकायत कर रहे हैं और बढ़े हुए खर्च से सभी प्रभावित हैं.

राह में कई अड़चनें

लेकिन विक्रमसिंघे की चुनौती सिर्फ यहां तक सीमित नहीं है. प्रेमदासा और दिसानायके को मिला कर कुल 38 उम्मीदवार उनके खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं. इनमें पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे भी शामिल हैं. राजपक्षे की पार्टी अभी भी संसद में सबसे बड़ी पार्टी है, जिसे विक्रमसिंघे का राष्ट्रपति पद के लिए समर्थन किया था.

इसके अलावा विक्रमसिंघे की पिछले साल एक स्थानीय चुनाव करवाने से मन करने के लिए भी आलोचना हो रही है. उन्होंने उस समय कहा था कि देश के पास चुनाव करवाने के पैसे नहीं हैं. उनके यह फैसला अदालत में गया और पिछले हफ्ते ही देश के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि वो श्रीलंका मतदाता के मूलभूत अधिकार के उल्लंघन के दोषी हैं. अदालत ने आदेश दिया कि यह चुनाव जल्द से जल्द करवाए जाएं.

कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक दिसानायके के नेतृत्व में नेशनल पीपल्स पावर गठबंधन लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया है. यह गठबंधन मजदूर वर्ग का वोट जीतने की कोशिश कर रहा है और उस बदलाव को लाने का वादा कर रहा है जिसकी आर्थिक संकट के समय लाखों लोगों ने कामना की थी.

दिसानायके ने समाचार एजेंसी एपी को बताया, "हमारे देश के लोगों में बदलाव को लेकर बड़ी उम्मीद है. उन्हें बदलाव चाहिए था और हम वो बदलाव लाने वाले हैं. बाकी सभी उम्मीदवार उसी पुराने, असफल, पारंपरिक सिस्टम के एजेंट हैं."

सीके/आरपी (एपी, एएफपी)