शरणार्थी बच्चे सिर्फ युद्ध अथवा हिंसा से ही नहीं भागते हैं. कठोर यात्रा और विषम परिस्थितियां कई बार पुराने सदमे पर भारी पड़ जाती हैंयदि हमें सब कुछ आसानी से मिल रहा है, हमारी मूलभूत जरूरतें पूरी हो रही हैं और हमारे मानवाधिकारों का सम्मान हो रहा है तो ऐसे स्थायी, शांत और सुरक्षित जीवन में कुछ बातों को नजरअंदाज किया जा सकता है.
लेकिन दुनिया भर में रह रहे करीब 11 करोड़ लोगों के मामले में ऐसा नहीं है जो कि विस्थापित जीवन जी रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग के मुताबिक 2022 के अंत तक दुनिया भर में विस्थापितों की संख्या 10.8 करोड़ थी. ऐसे लोगों को उत्पीड़न, संघर्ष, हिंसा, मानवाधिकार उल्लंघन या फिर ऐसी ही दूसरी वजहों से अपना देश छोड़ना पड़ा है.
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इन विस्थापितों में अन्य लोगों के अलावा आंतरिक रूप से विस्थापित, शरणार्थी और शरण चाहने वाले भी शामिल हैं. जबरन विस्थापित किए गए इन करीब 11 करोड़ लोगों में करीब 3.5 करोड़ लोग शरणार्थी हैं जो कि अपनी सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा पार करके किसी दूसरे देश में पहुंचे हैं.
मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं
लिन जोन्स बाल और किशोर मनोचिकित्सक हैं और एक राहत शिविरों में काम करने वाली सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं. साल 2018 में उन्होंने एक लेख में लिखा था, "जब आप भागते हैं, तो आप वह सब कुछ छोड़ देते हैं जिसने आपकी दुनिया बनाई और जिसने आपको दुनिया से जोड़े रखा.”
जोन्स ने इस लेख में युद्ध और आपदा क्षेत्र में रह रहे बच्चों के साथ बिताए अपने 25 वर्षों के अनुभव से मिले करीब दस सबक साझा किए थे.
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उनके भागने की वजह सिर्फ युद्ध, हिंसा, जीवन अथवा स्वतंत्रता को खतरा भर नहीं था. खुद से भागना, और इससे जुड़ी हर चीज, शरणार्थियों के मानसिक स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी हो सकती है. इसके परिणामस्वरूप गंभीर चिंता, ज्यादा तनाव, पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी), अवसाद और आत्महत्या तक की स्थिति आ सकती है.
ब्रिटेन में बाल मनोचिकित्सक और बाल मानसिक स्वास्थ्य के प्रोफेसर पेनोस वोस्टानिस ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "यह काफी हद तक सही शरणार्थियों में सामान्य लोगों की तुलना में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की दर ज्यादा है, कम से कम चार या पांच गुना ज्यादा.”
वोस्टानिस उन कमजोर बच्चों के बारे में खासतौर पर बात कर रहे हैं जिन्होंने दर्दनाक घटनाओं का अनुभव किया है.
शरणार्थी बच्चे खासतौर पर असुरक्षित
जॉन हेकन शुल्त्ज नॉर्वेजियन सेंटर फॉर वॉयलेंस एंड ट्रॉमेटिक स्ट्रेस स्टडीज में सीनियर रिसर्चर हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, "शरणार्थी बच्चे खासतौर पर असुरक्षित हैं. क्योंकि उनके पास यह समझ नहीं है कि क्या हो रहा है और बच्चों के लिए यह सोचना काफी आसान है कि यह जितना खतरनाक दिख रहा है, उससे कहीं ज्यादा खतरनाक है.”
शुल्त्ज कहते हैं कि बच्चों के पास अक्सर अनुभव भी नहीं होता कि ऐसी स्थितियों का सामना कैसे करें.
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बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर युद्ध की विभीषिका और हिंसा जैसी चीजों के अलावा कई और चीजों का प्रभाव भी पड़ता है जिनके कारण उन्हें भागना पड़ा है. इस यात्रा के दौरान कई बार शरणार्थी बच्चों को और भी कई खतरनाक परिस्थितियों और अनुभवों से रूबरू होना पड़ता है. कई बार वो अपने परिवारों से भी अलग हो जाते हैं या फिर कई बार उनके मां-बाप ही उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं और चूंकि उनका मानसिक स्वास्थ्य उनके मां-बाप के अधीन है, इसलिए कई बार इन सब बातों का उन पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ता है.
बच्चों के साथ होने वाली ऐसी तमाम दर्दनाक घटनाएं उनके भीतर मनोवैज्ञानिक, व्यावहारिक और भावनात्मक समस्याएं पैदा कर सकती हैं. अवसाद, चिंता, शोर से डरना, बुरे सपने, बहुत ज्यादा चिल्लाना, अधिक जोखिम लेना, अध्यापकों और मां-बाप की बात न मानना जैसी समस्याएं ऐसे बच्चों को घेर लेती हैं.
कष्टपूर्ण यात्रा
अपना देश छोड़कर भागना और एक नया घर तलाश करना बहुत खतरनाक हो सकता है. और इनके बीच में कई चरण है, हर एक के अपने परिणाम और प्रभाव हैं.
सीरिया के शरणार्थी ग्रीस या इटली जाने के लिए खचाखच भरी नावों में सवार होकर भूमध्य सागर पार करते हैं और कई बार मौत का सामना करते हैं. कोलंबिया से पनामा तक डेरियन गैप को पार करने वाले वेनेजुएला के लोग अमेरिका तक पहुंचने में कई खतरों और दुर्व्यवहार का सामना करते हैं.
यात्रा अपने आप में कष्टदायक होती हैं और सिर्फ बच्चों को ही नहीं बल्कि पूरे परिवार को प्रभावित करती हैं.
परिवार की अहम भूमिका
जोन्स के मुताबिक, प्यार करने वाले माता-पिता का होना बहुत अहम है. जोन्स कहती हैं, "अब यह अच्छी तरह से स्थापित हो गया है कि तनाव के दीर्घकालिक नकारात्मक प्रभावों को कम करने में जो प्रमुख चीजें उत्तरदायी हैं उनमें प्यार करने वाले मां-बाप की मौजूदगी भी एक है. परिवार का पुनर्मिलन प्राथमिकता होनी चाहिए.”
अफसोस की बात है कि सभी मां-बाप प्यार करने वाले नहीं होते हैं और इससे बच्चों को और अधिक आघात लगता है या फिर उनका मानसिक शोषण भी हो सकता है.
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बोस्नियाई युद्ध के दौरान, कई बच्चे अपने मां-बाप से बिछड़ गए थे. जोन्स कहते हैं कि युद्ध के कुछ वर्षों बाद कुछ लोगों को कुछ हद तक पीटीएसडी का अनुभव हुआ क्योंकि वे अपने मां-बाप से अलग हो गए थे.
लेकिन यह और अधिक जटिल हो जाता है. यहां तक कि जब माता-पिता अपने बच्चों के साथ होते हैं और वे खुद भी मानसिक समस्याओं से गुजर रहे होते हैं और यदि उनकी समस्याएं ठीक नहीं हुईं तो वे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को और ज्यादा नुकसान पहुंचा सकते हैं.
जोन्स के मुताबिक, युद्ध और विस्थापन का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पारिवारिक हिंसा की वजह बन सकता है.
वे आगे कहती हैं, "परिवार के अंदर की हिंसा दीर्घकालिक मानसिक स्वास्थ्य के लिए उतनी ही हानिकारक हो सकती है जितनी बाहर की हिंसा.”
रिफ्यूजी होने का दर्द
एक बार जब वे शरणार्थी शिविर में पहुंच जाते हैं या किसी मेजबान देश में उन्हें शरण मिल जाती है, दिक्कतें फिर भी जारी रहती हैं.
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्टों के मुताबिक, शरणार्थी शिविरों की स्थितियां दयनीय हो सकती हैं जैसा कि साल 2015 में उत्तरी फ्रांसीसी तट कैले में हुआ था, जिसे वहां रहने वाले लोग ‘जंगल' कहते हैं. जंगल को 2016 में वहां से हटा दिया गया था.
वोस्टानिस कहते हैं, "बच्चों को शरण देने की प्रक्रिया छह, आठ साल तक खिंच सकती है जब तक कि वे वयस्क न हो जाएं.”
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शरणार्थियों और शरण चाहने वालों को न सिर्फ उन परिस्थितियों का दर्द सहना पड़ता है जिनकी वजह से वो भागकर आते हैं बल्कि अक्सर भयानक परिस्थितियों का भी सामना करना पड़ता है. जिन देशों में उन्हें शरण मिलती है वहां पानी और साफ-सफाई की कमी, भेदभाव, दुर्व्यवहार, बेइज्जती और कई अन्य तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
वोस्टानिस आगे कहते हैं, "तो यह जटिलता है, समस्याओं का अंबार है. यहां यही सबसे बड़ी चुनौती है जिसे कई बार पेशेवर और शोधकर्ता भी नहीं समझ पाते कि इन सबसे कैसे निपटना है.”
जोन्स कहती हैं कि ऐसी परिस्थितियां कई बार बच्चों के लिए उस अवसाद से भी बढ़कर होती हैं जिनके कारण उन्हें भागना पड़ा, "कई तरह के शोध बताते हैं कि बाल दुर्व्यवहार, उपेक्षा और गरीबी जैसी स्थितियों का बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत नकारात्मक और दूरगामी प्रभाव पड़ता है.”
बच्चों की नींद पर असर
शरणार्थी बच्चों को जिन तमाम बुरे अनुभवों से गुजरना पड़ता है उनमें से एक है- भयानक सपने आना.
शुल्त्ज कहते हैं, "ये ऐसे सपने नहीं होते जिन्हें आपने पिछले एक या दो महीने में अनुभव किया है बल्कि आपको लगेगा कि जब आपने इसका अनुभव किया तो आप मरने की स्थिति में आ गए थे या फिर गंभीर रूप से घायल हो गए थे.”
ऐसे सपने देखने पर बच्चे या तो रात में जग सकते हैं और दर्दनाक अनुभव को फिर से याद कर सकते हैं. वो कहते हैं, "इसका मतलब यह है कि मस्तिष्क आपके शरीर में स्ट्रेस हॉर्मोन्स छोड़ता है और आप सतर्क पूरी तरह सतर्क हो जाते हैं.”
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इस तरह के सपने या भयावह अनुभव बच्चों के सोने की आदत पर बहुत बुरा प्रभाव डालते हैं जिसकी वजह से न सिर्फ उनकी सामान्य क्रियाशीलता मसलन स्कूल में उनका प्रदर्शन प्रभावित होता है बल्कि उन्हें कई तरह की मानसिक समस्याएं भी घेर लेती हैं.
शुल्त्ज कहते हैं, "लेकिन अच्छी बात यह है कि आप जब पहली बार ऐसे स्वप्न का अनुभव करते हैं और इसका उपचार कराते हैं तो इससे काफी राहत मिल सकती है, बुरे सपनों से करीब सत्तर फीसद तक छुटकारा मिल सकता है.”
शुल्त्ज नार्वेजियन शरणार्थी काउंसिल के साथ मिलकर इस मामले में ग्रुप सेशन्स कराते हैं जिसमें बच्चे भी शामिल हो सकते हैं. वो कहते हैं, "उन बच्चों को तो इस बात से ही काफी राहत मिलती है कि दूसरे बच्चे भी इस तरह के बुरे सपने देखते हैं. वे अकेले नहीं हैं और न ही वो पागल हो रहे हैं.”