उत्तर कोरिया की भव्य सैन्य परेड: दुनिया को दिखाई अपनी ताकत, चीन और रूस के बड़े नेता भी हुए शामिल
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उत्तर कोरिया ने अपनी सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर एक विशाल सैन्य परेड का आयोजन किया. राजधानी प्योंगयांग में 10 अक्टूबर को हुए इस कार्यक्रम में दुनिया को हैरान करने वाले घातक हथियार दिखाए गए और इसमें चीन और रूस के बड़े नेता भी शामिल हुए.

क्या था इस परेड में खास?

सरकारी मीडिया के मुताबिक, प्योंगयांग के किम इल सुंग स्क्वायर पर हुई इस परेड में उत्तर कोरिया ने अपने सबसे ताकतवर हथियारों का प्रदर्शन किया. इनमें सबसे खास थी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM). यह एक ऐसी मिसाइल है जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक परमाणु हमला कर सकती है. इस परेड के ज़रिए तानाशाह किम जोंग उन ने एक बार फिर दुनिया को अपनी सैन्य ताकत का संदेश दिया है.

चीन और रूस का मिला साथ

इस कार्यक्रम को और भी महत्वपूर्ण बना दिया चीन और रूस के उच्च-स्तरीय मेहमानों की मौजूदगी ने. चीन की तरफ से प्रधानमंत्री ली कियांग परेड में शामिल हुए, जबकि रूस से राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के एक प्रमुख सहयोगी और सुरक्षा परिषद के उप प्रमुख दिमित्री मेदवेदेव भी प्योंगयांग पहुंचे.

यह दिखाता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के खिलाफ उत्तर कोरिया, चीन और रूस की दोस्ती कितनी मज़बूत हो रही है. पिछले महीने ही किम जोंग उन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के साथ बीजिंग में एक सैन्य परेड में साथ दिखाई दिए थे.

क्यों बढ़े हैं किम जोंग उन के हौसले?

माना जा रहा है कि यूक्रेन युद्ध के बाद किम जोंग उन के हौसले काफी बुलंद हैं. उन्होंने मॉस्को की सेना के साथ लड़ने के लिए अपने हज़ारों सैनिक भेजकर रूस से महत्वपूर्ण समर्थन हासिल किया है. इसी हफ़्ते रूस की सत्ताधारी पार्टी ने एक बयान में कहा था कि वह उत्तर कोरिया द्वारा अपनी रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करने के लिए उठाए गए कदमों का पूरा समर्थन करती है.

अमेरिका से बातचीत की अटकलें

यह परेड ऐसे समय में हुई है जब दक्षिण कोरिया ने संकेत दिए हैं कि इस साल होने वाले APEC शिखर सम्मेलन में उत्तर कोरिया और अमेरिका के बीच बातचीत की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

हालांकि, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किम जोंग उन से तीन बार मुलाकात की थी, लेकिन उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम पर कोई ठोस समझौता नहीं हो सका था. इसके बाद से प्योंगयांग ने कई बार खुद को एक "अपरिवर्तनीय" परमाणु शक्ति वाला देश घोषित किया है.

कुल मिलाकर, यह सैन्य परेड सिर्फ एक जश्न नहीं, बल्कि दुनिया, खासकर अमेरिका के लिए एक सीधा और शक्तिशाली राजनीतिक संदेश था.