हमारे पड़ोस में म्यामांर है और आप ये जानते होंगे कि 'बर्मा' और 'म्यांमार' कोई दो अलग-अलग मुल्क नहीं बल्कि एक ही देश है। लेकिन क्या आप यह जानते हैं कि बर्मा से आखिर कैसे यह देश म्यांमार बन गया? आइए जानते हैं इस देश के दो नाम पड़ने की कहानी और भारत के साथ इसके सम्बंधों का महत्व...
अगर देश का नाम म्यांमार है तो बर्मा के नाम से पहचाने जाने की वजह क्या है?
इस देश का औपचारिक नाम तो म्यांमार ही है लेकिन आज भी कई देश इसे बर्मा के नाम से पुकारते हैं. अमेरिकी सरकार उसमें से प्रमुख है. तो सवाल यह है कि अगर देश का नाम म्यांमार है तो बर्मा के नाम से पहचाने जाने की वजह क्या है? दरअसल, प्रमुख बर्मन जातिय समूह के कारण पीढ़ियों से इसे बर्मा कहा जाता था। साल 1989 में लोकतंत्र समर्थक विद्रोह को कुचलने के लिए सैन्य सरकार ने देश का नाम अचानक बदलकर म्यांमार कर दिया. बताया जाता है कि देश की छवी बदलने के लिए ऐसा किया गया। नाम जरूर बदला गया लेकिन देश के अंदर कोई बदलाव नहीं दिखाई दिया. धीरे-धीरे म्यांमार शब्द प्रचलन में आ गया. यह भी पढ़े: म्यांमार में नहीं थम रहा बवाल, अब स्वास्थकर्मियों ने सैन्य सरकार के लिए काम करने से किया इनकार
म्यांमार-बर्मा को लेकर क्या कहता है अमेरिका
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने भी कहा था कि यह आधिकारिक नीति है जिसके तहत हम बर्मा कहते हैं लेकिन कई बार हम औपचारिक तौर पर म्यांमार शब्द का भी प्रयोग कर लेते हैं. उदाहरण के तौर पर हमारी वेबसाइट पर बर्मा का जिक्र किया गया है.
म्यांमार का भारत से गहरा रिश्ता
म्यांमार का भारत से गहरा रिश्ता है। पूर्वोत्तर में चार राज्य अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड की सीमा म्यांमार के साथ लगती हैं. म्यांमार में बोद्धों की संख्या सर्वाधिक है. इस नाते भी इस देश से भारत का सांस्कृतिक सम्बंध बनता है.पड़ोसी देश होने के नाते भारत के लिए म्यांमार का आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक खासा महत्व है.
आयरन लेडी आंग सान सू ची ने भारत में रहकर की अपनी पढ़ाई
वहीं आंग सान सू ची से भारत का विशेष रिश्ता है। इस आयरन लेडी ने दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अपनी पढ़ाई पूरी की। आंग सान सू ची को संघंर्ष करने का जज्बा विरासत में मिला था। वह म्यांमार आजादी के नायर रहे जनरल आंग सान की बेटी हैं। साल 1990 के दशक में सू ची को दुनियाभर के मानवाधिकारों को लिए लड़ने वाली महिला के रूप में देखा गया जिन्होंने म्यांमार के सैन्य शासकों को चुनौती देने के लिए अपनी आजादी त्याग दी.
सू ची ने 15 साल नजरबंदी में गुजारे
साल 1989 से साल 2010 तक सू ची ने लगभग 15 साल नजरबंदी में गुजारे। साल 1991 में नजरबंदी के दौरान ही सू ची को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा गया। साल 2015 में नवंबर महीने में सू ची के नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पार्टी ने एकतरफा चुनाव जीता। यह म्यांमार के इतिहास में 25 साल में हुआ पहला चुनाव था जिसमें लोगों ने खुलकर हिस्सा लिया. हालांकि कानूनी दिक्कतों के कारण वो राष्ट्रपति भी बन पाई और उन्हें स्टेट काउंसिलर बनाया गया.
म्यांमार में सैन्य शासन के खिलाफ प्रदर्शन तेज
लेकिन 1 फरवरी 2021 को म्यांमार में सेना ने तख़्तापलट कर आंग सान सू ची को गिरफ़्तार कर लिया है। हालांकि म्यांमार में सत्ता तख्तापलट के बाद सैन्य शासन के खिलाफ प्रदर्शन तेज हो गए हैं. सोमवार को सैकड़ों लोगों ने सड़कों पर उतरकर सेना के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी हाथों में तख्ती लिए और नारे लगाकर सेना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. कुछ प्रदर्शनकारी आंग सान सू ची को रिहा करने की मांग कर रहे थे.