जर्मनी: हर चार में से एक आप्रवासी देश छोड़ना चाहता है
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी से अप्रवासी क्यों जा रहे हैं? एक नए अध्ययन से पता चलता है कि आर्थिक रूप से सफल विदेशियों को दूसरे देश ज्यादा आकर्षित कर रहे हैं. कुछ लोग भेदभाव के कारण भी जा रहे हैं.कमजोर होती जर्मन अर्थव्यवस्था को इस समय मेडिकल, नर्सिंग, आईटी से लेकर निर्माण जैसे क्षेत्रों में कुशल श्रमिकों की सख्त कमी का सामना करना पड़ रहा है. जर्मनी में शिक्षकों, रसोइयों और ट्रक और बस चलाने वाले लोगों की भी कमी है. 2024 के अंत में, पूरे देश में जर्मन कंपनियों में लगभग 14 लाख पद खाली थे.

वैसे तो जर्मनी में काम करने के लिए लगातार अधिक से अधिक अप्रवासी आ रहे हैं. 2024 में विदेशी कर्मचारियों का हिस्सेदारी 16 फीसदी से थोड़ी अधिक थी. साल 2010 से तुलना करें तो यह अनुपात दोगुने से भी ज्यादा है. मेडिकल फील्ड में तो विदेशियों का हिस्सा बहुत बड़ा है. इस समय हर छह में एक से ज्यादा डॉक्टर विदेशी नागरिक हैं. वहीं नर्सिंग में 2022 से विदेशी कर्मियों के रोजगार में विशेष बढ़ोत्तरी हुई है. इस समय नर्सिंग के क्षेत्र में हर पांच में से एक कर्मचारी आप्रवासी है.

छोड़ने के बारे में क्यों सोच रहे हैं लोग

सवाल ये है कि क्या ये लोग सचमुच लंबे समय तक जर्मनी में रहना चाहते हैं? संघीय रोजगार एजेंसी के रोजगार अनुसंधान संस्थान (आईएबी) ने अब इस मुद्दे पर एक अध्ययन करवाया है. यह विदेश में जन्मे ऐसे 50,000 लोगों के ऑनलाइन सर्वेक्षण पर आधारित है, जो 18 से 65 साल के बीच की किसी उम्र में आकर जर्मनी में बसे हैं. सर्वेक्षण में उन शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया है, जिनके पास अभी तक जर्मनी में मान्यता प्राप्त निवास का दर्जा नहीं मिला है. सर्वेक्षण दिसंबर 2024 से अप्रैल 2025 तक चला.

आईएबी में प्रवासन, एकीकरण और अंतरराष्ट्रीय श्रम बाजार अनुसंधान प्रभाग की प्रमुख यूलिया कोस्याकोवा ने बर्लिन में स्टडी के आंकड़े पेश करते हुए कहा, "छब्बीस प्रतिशत या लगभग 26 लाख लोगों का कहना है कि उन्होंने पिछले साल जर्मनी छोड़ने के बारे में सोचा था.. लगभग 3 प्रतिशत या तीन लाख लोगों ने तो पहले से ही देश छोड़ने की ठोस योजना बना रखी है."

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जर्मनी छोड़ने का इरादा रखने वाले करीब आधे लोग अपने मूल देश वापस लौटना चाहते हैं, जबकि बाकी आधे किसी दूसरे देश में जाना चाहते हैं. ऐसे सबसे ज्यादा लोग पोलैंड और रोमानिया के हैं जो वापस जाना चाहते हैं. वहीं, जो अप्रवासी किसी तीसरे देश में जाना चाहते हैं, उन लोगों में स्विट्जरलैंड, अमेरिका या स्पेन जैसे ठिकाने टॉप पर हैं. आईएबी शोधकर्ता कात्या गालेगोस टॉरेस ने कहा, "हमारे सर्वे का मुख्य निष्कर्ष यह है कि जो लोग काम करने या शिक्षा के लिए जर्मनी गए, जो बेहतर शिक्षित हैं या आर्थिक रूप से अधिक सफल हैं और जिनकी जर्मन भाषा पर बेहतर पकड़ है, उनके देश छोड़ने या कहीं और प्रवास करने की ठोस योजना बनाने की संभावना औसत से ज्यादा है."

जर्मनी का ऊंचा टैक्स सिस्टम और भेदभाव की समस्या

मास्टर्स डिग्री या डॉक्टरेट वाले अप्रवासी और खास तौर पर ऊंची कमाई वाले लोगों ने पिछले बारह महीनों में खासतौर पर जर्मनी छोड़ने के बारे में सोचा है. कात्या टॉरेस ने सर्वे के हवाले से कहा, "आईटी, फाइनेंस और बिजनेस जैसे गहन ज्ञान वाले सेक्टर से जुड़े 30 से 39 फीसदी लोग प्रवास पर विचार कर रहे हैं." हेल्थकेयर, मैन्यूफैक्चरिंग और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में भी "अहम" प्रवासन रुझान हैं. टॉरेस ने बताया, "ये वही लोग हैं जिनकी जर्मनी को अपनी आर्थिक सुरक्षा के लिए फौरन जरूरत है. इस चुनिंदा समूह का प्रवासन जर्मनी के आर्थिक भविष्य के लिए काफी जोखिम पैदा करता है."

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आखिर ऐसा होने की वजह क्या है. जानकारों की मानें तो घर लौटने वालों के लिए सबसे बड़ी वजह तो पारिवारिक ही होती है. वहीं दूसरे देश में जाने वाले आप्रवासी ज्यादातर बेहतर करियर और अधिक आय की तलाश में होते हैं. कुछ लोग जर्मनी छोड़ने के कारणों में टैक्स, सामाजिक सुरक्षा के लिए अनिवार्य कटौती और जरूरत से ज्यादा नौकरशाही को गिनाते हैं. इसके अलावा कई लोगों ने भेदभाव झेलने के अनुभव भी गिनाए.

गालेगोस टॉरेस कहती हैं, "लगभग दो-तिहाई अप्रवासी भेदभाव की शिकायत करते हैं, उदाहरण के लिए काम पर, रहने के लिए घर खोजने में, सार्वजनिक स्थानों पर या पुलिस के संपर्क में." टॉरेस के अनुसार, एक तिहाई प्रवासियों को या तो बिल्कुल भी नहीं या फिर बहुत कम वेलकम महसूस होता है. ये ऐसे कारक हैं जो प्रवास की प्रवृत्ति को काफी हद तक बढ़ाते हैं."

राजनीतिक माहौल का असर

अध्ययन से पता चलता है कि जर्मनी के राजनीतिक माहौल ने भी इसमें भूमिका निभाई है. कोस्याकोवा ने कहा, "2024 की बहस में प्रवासन का मुद्दा बहुत ज्यादा हावी रहा और सामाजिक स्वीकृति बहुत ज्यादा नहीं थी." जर्मनी में लगभग एक चौथाई लोगों की पृष्ठभूमि किसी ना किसी तरह के प्रवासी की है. 1950 से अब तक लगभग 2.1 करोड़ लोग या तो खुद जर्मनी आए हैं या उनके माता-पिता जर्मनी आए हैं. अकेले 2015 से ही लगभग 65 लाख लोग जर्मनी आए हैं, जिनमें सबसे बड़ा समूह सीरियाई और यूक्रेनी लोगों का है.

फरवरी में जर्मनी में हुए संघीय चुनावों में जर्मनी की अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी पार्टी (एएफडी) देश में दूसरी सबसे मजबूत राजनीतिक ताकत बन गई. यह पार्टी गैर-जर्मन मूल के लाखों लोगों के निर्वासन की वकालत करती है. इस बीच, रूढ़िवादी सीडीयू ने एक सख्त इमिग्रेशन पॉलिसी का वादा कर चुनाव जीता. अब सेंटर-लेफ्ट सोशल डेमोक्रेटिक दल (एसपीडी) के साथ गठबंधन में, सीडीयू का पहला प्रवासन नीति उपाय सीमा नियंत्रण का विस्तार करना था.

प्रवासन का जोखिम नहीं उठा सकता जर्मनी

विशेषज्ञ लगातार यह अनुमान लगाते रहे हैं कि जर्मनी को हर साल लगभग 400,000 अतिरिक्त आप्रवासियों की आवश्यकता है, जो उसकी श्रम शक्ति को बनाए रखने के लिए स्थायी रूप से वहीं रहें. उनका तर्क है कि जनसांख्यिकीय रुझानों को संतुलित करने का यही एकमात्र तरीका है. जर्मनी असल में बूढ़े लोगों का देश है. यहां पेंशनभोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है और काम करने वाले लोगों की संख्या घटती जा रही है. इससे ना केवल श्रमिकों की कमी होती है, बल्कि पेंशन को वित्तीय रूपसे चलाना भी कठिन होता है. इस बारे में स्टडी दिखाती है कि "ना केवल इमिग्रेशन, बल्कि आप्रवासियों को लंबे समय तक अपने यहां बनाए रखना भी एक प्रमुख चुनौती है."

कुल मिलाकर, ऐसे कई संकेत हैं कि नौकरशाही को कम करने, योग्यता की मान्यता को सरल बनाने, डिजिटलीकरण को बढ़ाने और टैक्स में छूट जैसे सरकारी उपायों से प्रवास की प्रवृत्ति कम हो सकती है. आईएबी शोधकर्ताओं का कहना है कि "व्यापक और ईमानदार" सामाजिक स्वीकृति की भी आवश्यकता है. इस बीच, सीडीयू अब विदेशी मेडिकल छात्रों को ग्रेजुएशन के बाद इतनी आसानी से जाने की अनुमति नहीं देने की तैयारी में है. योजना है कि जर्मनी में पढ़ाई पूरी करने वाले शख्य को कम पांच साल तक जर्मनी के ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टर के रूप में काम करवाया जाए. यहां चिकित्सा पेशेवरों की कमी बढ़ती ही जा रही है.

संसद में सीडीयू गुट के उपाध्यक्ष सेप म्युलर ने कहा, "जो लोग ऐसा नहीं करना चाहते हैं, उन्हें इस उच्च श्रेणी की शिक्षा की लागत चुकानी होगी." जर्मनी के स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस प्रस्ताव का स्वागत किया है. मंत्रालय में राज्य सचिव टीनो सोरगे का कहना है, "हमें युवा डॉक्टरों को जर्मनी में काम करने के लिए आकर्षित करना चाहिए, ना कि उन्हें जाते हुए देखना चाहिए."