दुनिया में सबसे कम उम्र में किसी देश की प्रधानमंत्री बनकर चर्चित हुईं सना मरीन दूसरा कार्यकाल नहीं जीत पाईं. लोकप्रिय होने और ज्यादा वोट पाने के बावजूद उनकी पार्टी चुनाव हार गई.2019 में सबसे कम उम्र में फिनलैंड की प्रधानमंत्री बनने वालीं सना मरीन दोबारा चुनाव नहीं जीत पाईं. रविवार को आए नतीजों के बाद उन्होंने अपनी हार स्वीकार कर ली है. रूढ़िवादी विचारधारा वाली एनसीपी और अति दक्षिणपंथी फिनिश पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है.
फिलनैंड के दक्षिणपंथी नेता पेटेरी ओरपो ने देश के आम चुनाव में हुए तिकोने कड़े मुकाबले को जीत लिया है. उन्हें वामपंथी सोशल डेमोक्रेट्स और अति दक्षिणपंथी फिनिश पार्टी को मात दी. एनसीपी नेता ओरपो ने जीत का ऐलान करते हुए कहा, "हमें सबसे बड़ा जनादेश मिला है.”
ओरपो को 20.8 फीसदी मत मिले जबकि फिनिश पार्टी रिकॉर्ड 20.1 प्रतशित वोटों के साथ दूसरे नंबर पर रही. सना मरीन के नेतृत्व में एसडीपी की सीटें बढ़ीं और उन्हें 19.9 प्रतिशत मत मिले लेकिन वह तीसरे नंबर पर चली गईं.
ओरपो की जीत
चुनावों के दौरान सना मरीन लगातार लोकप्रिय बनी हुई थीं. फिनलैंड जल्दी ही नाटो सदस्य बनने जा रहा हैऔर इसे भी मरीन के कार्यकाल की उपलब्धि माना गया था. लेकिन कुल मतों में पिछड़ने के बाद मरीन ने हार स्वीकार करते हुए कहा कि यही लोकतंत्र की आवाज है.
मरीन ने अपने समर्थकों को धन्यवाद करते हुए कहा, "इन चुनावों के विजेता को बधाई. नेशनल कोएलिशन पार्टी को बधाई. फिन्स पार्टी को बधाई.”
ओरपो की पार्टी को संसद में सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं. हालांकि सरकार बनाने के लिए उन्हें गठबंधन के दलों का साथ चाहिए होगा. ओरपो ने कहा, "मुझे लगता है फिनलैंड के लोग बदलाव चाहते हैं. अब मैं बातचीत शुरू करूंगा. सभी दलों से बातचीत करूंगा.”
फिन्स पार्टी की नेता रिक्का पुरा ने भी ओरपो को बधाई दी लेकिन वह अपनी पार्टी के प्रदर्शन से बेहद खुश हैं. उन्होंने कहा कि सात अतिरिक्त सीटें एक शानदार नतीजा है.
एसडीपी के साथ गठबंधन में सरकार में रही अन्य तीन पार्टियों को करारी हार का सामना करना पड़ा. सेंटर पार्टी, लेफ्ट अलायंस और ग्रीन्स तीनों को सीटों का भारी नुकसान हुआ.
सना मरीन अब भी लोकप्रिय
अब 37 वर्ष की हो चुकीं सना मरीन 2019 में फिनलैंड की प्रधानमंत्री बनी थीं. तब वह राष्ट्राध्यक्ष के पद पर पहुंचने वाली दुनिया की सबसे युवा नेता थीं. उन्होंने पांच दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और सभी दलों की नेता महिलाएं थीं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि पाने के साथ-साथ रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान उनके सख्त रुख की भी तारीफ हुई थी. हालांकि फिनलैंड में स्थानीय मुद्दे ही चुनावों में हावी रहे. अर्थव्यवस्था और बढ़ता सार्वजनिक कर्ज एक बड़ा मुद्दा था. सना मरीन के कार्यकाल में सार्वजनिक कर्ज देश की जीडीपी का 70 फीसदी पहुंच गया था. उनके दोनों विरोधी दलों ने सार्वजनिक खर्च घटाने की हिमायत की है.
पिछले साल मरीन तब विवादों में घिर गई थीं जब उनका दोस्तों के साथ पार्टी करते एक वीडियो सार्वजनिक हो गया था.वीडियो में उन्हें शराब पीते और नाचते देखा जा सकता था.तब फिनलैंड में बड़ा ध्रुवीकरण हो गया था क्योंकि सना मरीन के समर्थकों का कहना था कि यह विवाद महिलाओं के प्रति नफरत और भेदभाव की सोच के कारण है और एक नेता के पार्टी करने या शराब पीने में कुछ भी गलत नहीं है.
कैसे बनेगी सरकार?
एनसीपी नेता ओरपो 53 वर्ष के हैं. दो साल से वह पार्टी के अध्यक्ष पद हैं और सर्वेक्षणों में लोकप्रियता के मामले में सना मरीन से पीछे ही रहे हैं. लेकिन अब उनकी पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं और वह गठबंधन की सरकार बना सकते हैं.
फिनलैंड की संसद में 200 सीटें और सरकार बनाने के लिए 100 सांसदों का समर्थन चाहिए. उन्हें अति दक्षिणपंथी रिक्की पुरा और सोशल डेमोक्रैट सना मरीन में से किसी एक को सहयोगी के तौर पर चुनना पड़ सकता है. रिक्की पुरा की पार्टी ‘नुकसानदायक इमिग्रेशन' को कम करने के मुद्दे पर चुनाव लड़ी थीं. यह पार्टी अपने इस्लाम और प्रवासी विरोध के लिए चर्चित रही है.
वीके/एए (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)