रूस के साथ दोस्ती का खुला इजहार कर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने यूरोपीय संघ को नाराज किया है. लेकिन यूरोपीय देश अब भी व्लादिमीर पुतिन के साथ दिख रहे चीन से खुद को अलग करने की इच्छा नहीं दिखा रहे हैं.चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के तीन दिवसीय मॉस्को दौरे और वहां रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से उनकी मुलाकात, इस पर आप क्या सोचते हैं? डीडब्ल्यू के इस सवाल के जवाब में लिथुएनिया के विदेश मंत्री गाब्रिएलियुस लांड्सबेर्गिस ने कहा, अगर शी जिनपिंग "एक युद्ध अपराधी से दोस्ती का चुनाव करते हैं तो चीन को लेकर बहुत गंभीर होना हमारा कर्तव्य है." पुतिन पर युद्ध अपराधों का आरोप लगाते हुए अंतरराष्ट्रीय अपराध अदालत पिछले हफ्ते रूसी राष्ट्रपति के खिलाफ वारंट जारी कर चुकी है.
अब यूरोपीय संघ को कैसे आगे बढ़ना चाहिए, इसका जिक्र करते हुए लांड्सबेर्गिस ने कहा, "पहले कदम हैं जोखिमों को कम करना और आखिरकार चीन से अलग होना. हम जितनी जल्दी इसकी शुरुआत करेंगे, यूरोपीय संघ के लिए ये उतना ही बेहतर होगा."
ताइवान के ऐतिहासिक दौरे पर जर्मन मंत्री
लेकिन ब्रसेल्स में बैठने वाला यूरोपीय संघ का हर अधिकारी, इतने कड़े कदमों का हिमायती नहीं है. डीडब्ल्यू से बातचीत में ईयू के अधिकारियों ने कहा कि हाल के बरसों में शी जिनपिंग और पुतिन 40 से ज्यादा बार मिल चुके हैं. इन मुलाकातों से दोनों नेताओं ने "एकता" का उदाहरण पेश करने को कोशिश की है. आम राय यह है कि चीन रूस की कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है.
चीन उन चुनिंदा देशों में है जिन्होंने यूक्रेन पर रूसी हमले की निंदा नहीं की. संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा करने वाले प्रस्ताव पर वोटिंग से भी वह गायब रहा. चीन, लगातार रूस से गैस और तेल खरीद रहा है. चीन के अधिकारी और मीडिया युद्ध को लेकर रूस जैसी ही भाषा बोल रहे हैं. इस भाषा में आमतौर पर पश्चिमी देशों की आलोचना होती है.
शी जिनपिंग की रूस के साथ नो-लिमिट्स फ्रेंडशिप की दुहाई भी पहले से तनाव झेल रहे चीन-ईयू संबंधों को और खराब कर रहे हैं.
चीन कैसे कर रहा है रूस का समर्थन
कुछ पश्चिमी देशों को चिंता है कि चीन, रूस को हथियार मुहैया कराने की सोच सकता है. हालांकि इसी हफ्ते ब्रसेल्स में नाटो के महासचिव येंस स्टॉल्टेनबर्ग ने कहा कि उन्होंने रूस को घातक मदद देने की चाइनीज तैयारी के कोई सबूत नहीं देखे हैं.
लेकिन इसके बावजूद चीन, रूस के युद्ध का कई अपरोक्ष तरीकों से समर्थन कर रहा है. चीन ने रूस के साथ आर्थिक आदान-प्रदान बढ़ा दिया है. मेरकैटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज के समीक्षक ग्जेगोर्स स्टेक के मुताबिक चीन ने रूस को दोहरे इस्तेमाल वाले उपकरणों का निर्यात भी तेज किया है. मेरकैटर इंस्टीट्यूट फॉर चाइना स्टडीज, एक जर्मन फाउंडेशन है.
शी जिनपिंग को दोस्ती और शांति के बीच चुनाव करना होगा
डीडब्ल्यू से बात करते हुए स्टेक ने कहा कि एक्सपोर्ट की जा रही चीजों में "टायर, ट्रक, कपड़े और ऐसी अन्य चीजें है जिनका इस्तेमाल रूसी सेना भी कर सकती है, हालांकि ये चीजें हथियार नहीं हैं."
स्टेक के मुताबिक अगर पश्चिम को इस बात के ठोस सबूत मिले कि चीन रूस को बड़े स्तर की युद्ध सामग्री भेज रहा है, तो ये यूरोप के लिए एक "लाल लकीर" होगी. स्टेक मानते हैं कि चीन पर रूस को हथियार सप्लाई करने के आरोप लगाने से पहले बहुत सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि इस आरोप के भूराजनीतिक परिणाम काफी बड़े होंगे.
विवाद भरे माहौल में आर्थिक हित
चीन अपनी जीरो कोविड पॉलिसी रद्द कर अर्थव्यवस्था को फिर से तेज रफ्तार देने की कोशिश कर रहा है. स्टेक को लगता है कि आर्थिक हित कूटनीतिक मौका दे सकते हैं और स्थिरता की उम्मीद की जा सकती है. हालांकि वह मानते हैं कि ऐसी स्थिरता बहुत ही कमजोर होगी और तनाव तो बना ही रहेगा.
इस तनाव में अमेरिका और चीन के लगातार खराब होते रिश्ते भी शामिल हैं. ताइवान का मुद्दा, शिनजियांग में मुस्लिम उइगुरों का दमन और ईयू के सदस्य देश लिथुएनिया पर चीन के कारोबारी प्रतिबंध, ये मुद्दे खास तौर पर तनाव को जिंदा रखेंगे. स्टेक कहते हैं, "यूरोपीय संघ और ज्यादा आर्थिक अस्थिरता नहीं देखना चाहता है. वह अभी रिश्तों को स्थिर करने में दिलचस्पी रखता है."
अमेरिका और चीन के बीच यूरोपीय संघ
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन, यूरोपीय संघ और उसके सदस्यों को चीन से टकराव के लिए तैयार करने की कोशिश कर रहा है. ये कोशिशें अब तक आंशिक रूप से सफल भी हुई हैं. मार्च में नीदरलैंड्स ने चीन को एंडवांस्ड माइक्रोचिप तकनीक बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया. जर्मनी ने अपने मोबाइल नेटवर्कों के क्रिटिकल ढांचे में चीनी कंपनियों हुआवे और जेडटीई के उपकरणों की समीक्षा का एलान कर दिया.
लेकिन इसके बावजूद कई यूरोपीय देश, चीन जैसे मुनाफेदार बाजार से बाहर नहीं आना चाहते हैं. इन देशों में सबसे आगे हैं जर्मनी, जिसका चीन सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. यूरोपीय आयोग की प्रेसीडेंट उर्सुला फॉन डेय लाएन ने जनवरी में दावोस के वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम में कहा कि ईयू चीन के साथ "जोखिम को घटाना" चाहता है, लेकिन पूरी तरह "अलग" नहीं होना चाहता है.
ईयू के नेताओं पर चीन की पाबंदियां
ईयू भले ही असमंजस में हो, लेकिन यह तो तय है कि कई दशकों बाद चीन के प्रति यूरोप का रुख बहुत सारी आशंकाओं से भरा है. राइनहार्ड बुइटिकोफर, यूरोपीय संसद के चाइना डेलिगेशन के प्रमुख हैं. वह कहते हैं, "यूरोपियनों के साथ काम करने में हाल के समय में चीनियों को बहुत सफलता नहीं मिली है."
अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच चीन ने तेज की कूटनीति
कई अन्य यूरोपीय नेताओं की तरह बुइटिकोफर को भी चीन ने मार्च 2021 में ब्लैकलिस्ट कर दिया. ईयू ने उइगुरों के मामले में मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपी कई चीनी नेताओं पर प्रतिबंध लगाए, जिसके जवाब में चीन ने भी यूरोपीय नेताओं को ब्लैकलिस्ट किया. इस विवाद का नतीजा ये हुआ कि ईयू-चीन कॉम्प्रिहेंसिव इंवेस्टमेंट एग्रीमेंट ठंडे बस्ते में चला गया.
डीडब्ल्यू से बात करते हुए बुइटिकोफर ने बताया कि इसके बाद से ही चीनी अधिकारी उनसे और ईयू के कई नेताओं से संपर्क कर रहे हैं. यूरोपीय संघ में चीन के नए राजदूत फू कोनगिन लगातार दोनों तरफ के प्रतिबंधों को खत्म कराने की कोशिश कर रहे हैं. फू चाहते हैं कि ईयू-चीन कॉम्प्रिहेंसिव इंवेस्टमेंट एग्रीमेंट आगे बढ़े. लेकिन जर्मन नेता ब्यूटिकोफर की इसकी संभावना बहुत कम दिखती है.
नो लिमिट्स फ्रेंडशिप का दुष्परिणाम
चीन को लेकर यूरोपीय संघ के रुख को लेकर नई बहस की संभावना कम दिख रही है. यूरोपीय संघ के सदस्य चीन को लेकर अलग अलग राय रखते हैं. कुछ चीन के साथ सिर्फ कारोबारी रिश्तों पर ध्यान देना चाहते हैं, तो कुछ अमेरिकी नीतियों के पक्षधर हैं.
यही वजह है कि 23-24 मार्च को होने वाले यूरोपीय शिखर सम्मेलन में इस बार आधिकारिक रूप से चीन एजेंडे में ही नहीं है. बुइटिकोफर कहते हैं, "चीनी दो असंगत लक्ष्यों के बीच संतुलन साधने की कोशिश कर रहे हैं. एक समय में ही पुतिन के जिगरी यार भी और यूरोपीय संघ के अच्छे दोस्त भी." यूरोपीय नेता को नहीं लगता कि चीन इसमें सफल हो सकेगा.
ग्रीन सांसद बुइटिकोफर कहते हैं, "अब्राहम लिंकन ने कहा है, आप कुछ लोगों को हमेशा बेवकूफ बना सकते हैं या सबको एक बार ही बेवकूफ बना सकते हैं." बुइटिकोफर इसे समझाते हुए कहते हैं कि रूसियों के साथ नो लिमिट्स फ्रेंडशिप पर जोर देकर तो वे इसमें नाकाम ही होंगे.