
बांग्लादेश के साथ रिश्तों में आई गिरावट के बाद भारत सरकार ने अब कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के जरिए पूर्वोत्तर तक वैकल्पिक संपर्क मार्ग बनाने का काम तेज करने का फैसला किया है.सरकार बांग्लादेश की सीमा से बचते हुए कम समय में पूर्वोत्तर राज्यों तक सामान पहुंचाने के लिए कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट का काम तेज करने का फैसला किया है. बांग्लादेश के साथ आपसी संबंधों में कड़वाहट के बाद फिलहाल सिलीगुड़ी का 'चिकन नेक' कॉरिडोर ही पूर्वोत्तर से संपर्क का एकमात्र रास्ता है.
पहले कोलकाता बंदरगाह से बांग्लादेश होकर भी पूर्वोत्तर तक सामान बहुत कम समय में पहुंच जाता था. अब इस नई परियोजना के तहत शिलांग से असम के सिलचर तक करीब 167 लंबी फोर लेन सड़क बनाई जाएगी. आगे चल कर इसे मिजोरम की राजधानी आइजोल से जोड़ा जाएगा. उसी सड़क को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ा जाएगा. इससे देश के दूसरे बंदरगाहों से आने वाली चीजों को कोलकाता से सीधे म्यांमार और वहां से पूर्वोत्तर भारत में भेजा जा सकेगा.
पड़ोसी बांग्लादेश में बदलते हालात को देखते हुए
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि शेख हसीना सरकार के सत्ता में रहते बांग्लादेश के साथ ट्रांजिट रूट पर समझौते की दिशा में बातचीत में काफी प्रगति हुई थी. लेकिन उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया है. इसी वजह से बंगाल की खाड़ी और म्यांमार के सड़क मार्ग के जरिए पूर्वोत्तर तक वैकल्पिक संपर्क मार्ग तैयार करने का फैसला किया गया है.
इस परियोजना के तहत नेशनल हाइवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन शिलॉन्ग से असम की बराक घाटी में सिलचर के पांच ग्राम तक करीब 167 किमी लंबे हाइवे का निर्माण करेगा.
इस परियोजना की लंबाई मेघालय में 144.8 किमी और असम में 22 किमी होगी. इसके तैयार होने के बाद इस सफर में लगने वाला समय बी मौजूदा साढ़े आठ घंटे से घटकर पांच घंटे रह जाएगा. केंद्र सरकार ने हाल में कलादान परियोजना के लिए 22,864 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है. अधिकारियों का कहना है कि इससे सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता भी कम हो जाएगी.
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, दोनों देशों ने कलादान परियोजना के लिए वर्ष 2008 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. लेकिन उसके बाद विभिन्न वजहों से इसमें देरी होती रही. अब खासकर बांग्लादेश के साथ संबंधों में आने वाली गिरावट और पूर्वोत्तर के प्रति वहां की अंतरिम सरकार के नजरिए के कारण इसे तेजी से लागू करने का फैसला किया गया है.
इस परियोजना के वर्ष 2030 तक पूरी हो जाने की उम्मीद है. सीमा पार म्यांमार में कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत सड़क म्यांमार के रखाइन स्टेट में कलादान नदी पर स्थित सितवे बंदरगाह को जल मार्ग से पलेतवा से जोड़ा जाएगा. उसके बाद उसे सड़क मार्ग से मिजोरम के जोरिनपुई से जोड़ने की योजना है. आगे चल कर जोरिनपुई से लांगथलाई होकर इसी सड़क को मिजोरम की राजधानी आइजल तक बढ़ाया जाएगा.
पूर्वोत्तर से पश्चिम बंगाल को जोड़ने वाला अहम वैकल्पिक मार्ग
इस परियोजना से जुड़े एक अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू को बताया, "यह परियोजना पूरे पूर्वोत्तर के लिए एक अहम वैकल्पिक मार्ग बन जाएगी. इससे भारत की लुक ईस्ट नीति को भी बढ़ावा मिलेगा. मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए सिलचर एक प्रवेशद्वार की भूमिका में है.
इस परियोजना के पूरा होने के बाद विशाखापत्तनम और कोलकाता से तमाम सामान सीधे पूर्वोत्तर तक पहुंच जाएगा और इससे बांग्लादेश पर निर्भरता खत्म हो जाएगी. पूर्वोत्तर के लिए सिलीगुड़ी के चिकन नेक कॉरिडोर के अलावा बांग्लादेश और म्यांमार होकर ही पूर्वोत्तर तक सामान भेजा जा सकता था. लेकिन अब कलादान परियोजना एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरेगी."
पूर्वोत्तर भारत में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भी सुरक्षा बढ़ी, सेना तैयार
राजनीतिक विश्लेषक और करीब चार दशकों से पूर्वोत्तर के मामलों पर करीबी निगाह रखने वाली वरिष्ठ पत्रकार शिखा मुखर्जी डीडब्ल्यू से कहती हैं, "यह परियोजना पूर्वोत्तर राज्यों से संपर्क के लिहाज से काफी अहम है. इसके तहत शिलांग से सिलचर तक प्रस्तावित फोर लेन हाइवे की वजह से यात्रा में लगने वाला समय कम हो जाने के कारण सामान की ढुलाई के साथ ही सीमावर्ती इलाको में सेना और सुरक्षाबलों की आवाजाही भी आसान हो जाएगी.यह बांग्लादेश को हमारा जवाब होगा. लेकिन इसमें अब औऱ देरी किए बिना इसका काम तेज करने की जरूरत है."
लेकिन कलादान परियोजना पर सवाल भी उठने लगे हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि इस परियोजना को वर्ष 2030 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. लेकिन म्यांमार की मौजूदा राजनीतिक औऱ जमीनी परिस्थिति को देखते हुए इस पर संशय है.
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अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ प्रोफेसर जीवेश कुमार सान्याल डीडब्ल्यू से कहते हैं, "यह परियोजना सैद्धांतिक तौर पर तो बेहतर नजर आती है. लेकिन म्यांमार की जमीनी परिस्थिति इसके लिए मुफीद नहीं है. इसकी वजह यह है कि जिस रखाइन स्टेट के जल और थल मार्ग के इस्तेमाल से यह संपर्क मार्ग तैयार होना है उसका करीब 80 फीसदी हिस्सा अराकान आर्मी नामक हथियारबंद विद्रोही गुट के कब्जे में है. वहां रोहिंग्या मुसलमानो के भी कई उग्रवादी गुट सक्रिय हैं."
उनका कहना था कि भारत और म्यांमार सरकार ने कलादान परियोजना पर चर्चा करने से पहले इन पहलुओं को ध्यान में जरूर रखा होगा. अब देखना यह है कि सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है.