भारतीय वैज्ञानिकों ने खोज निकाला ऐसा मटेरियल, जो डैमेज होने पर खुद कर लेगा अपनी मरम्मत
भारतीय वैज्ञानिकों ने अपनी मरम्मत खुद करने वाला पदार्थ विकसित किया (Photo Credits: PIB)

जल्द ही नये पदार्थ से ऐसा संभव हो सकता है कि अंतरिक्ष यान आदि में इस्तेमाल होने वाले, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण क्षतिग्रस्त होने पर खुद ही ठीक हो सकें. वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में विकसित पदार्थ यांत्रिक टक्कर से उत्पन्न इलेक्ट्रिकल चार्ज की मदद से अपनी यांत्रिक क्षति की मरम्मत कर सकते हैं. वैज्ञानिकों ने बीज के पौधे तक बदलने के लिए जिम्मेदार जीन का पता लगाया

जिन उपकरणों का हम दैनिक उपयोग करते हैं वे अक्सर यांत्रिक क्षति के कारण खराब हो जाते हैं, जिससे हमें या तो उन्हें सुधारने या बदलने के लिए मजबूर होना पड़ता है. इससे उपकरण का जीवन कम हो जाता है और रखरखाव की लागत बढ़ जाती है. कई मामलों में, जैसे की अंतरिक्ष यान, मरम्मत के लिए इंसानों की मौजूदगी संभव नहीं है.

ऐसी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) कोलकाता के शोधकर्ताओं ने आईआईटी खड़गपुर के साथ मिलकर पीजोइलेक्ट्रिक मॉलिक्यूलर क्रिस्टल विकसित किये हैं जो बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप की मदद के अपनी यांत्रिक क्षति को खुद ही ठीक करते हैं. पीजोइलेक्ट्रिक क्रिस्टल पदार्थों का एक समूह है जो यांत्रिक प्रभाव से गुजरने पर विद्युत उत्पन्न करता है.

वैज्ञानिकों द्वारा विकसित पीजोइलेक्ट्रिक मॉलिक्यूलर को बाइपाइराज़ोल ऑर्गेनिक क्रिस्टल कहा जाता है जो बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के यांत्रिक टूटफूट के बाद क्रिस्टलोग्राफिक परिशुद्धता के साथ मिलीसेकंड में बिना किसी की मदद से स्व-उपचार के द्वारा फिर से जुड़ जाते है.

इन आणविक ठोस में, यांत्रिक प्रभाव की वजह से इलेक्ट्रिक चार्ज को उत्पन्न करने की अनूठी क्षमता के कारण, क्षतिग्रस्त हिस्से से टूटे हुए टुकड़े इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न करते हैं, जिससे क्षतिग्रस्त हिस्सों द्वारा उन्हें वापस अपनी तरफ खींचा जाता है और शुद्धता और स्वायत्तता के साथ मरम्मत हो जाती है. सी एम रेड्डी को स्वर्णजयंती फैलोशिप के माध्यम से विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार और विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) अनुसंधान अनुदान के द्वारा समर्थित यह रिसर्च हाल ही में जर्नल 'साइंस' में प्रकाशित किया गया है.

इस प्रक्रिया को शुरू में आईआईएसईआर कोलकाता टीम द्वारा प्रोफेसर सी मल्ला रेड्डी के नेतृत्व में विकसित किया गया था, जिन्हें विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार द्वारा स्वर्णजयंती फेलोशिप (2015) मिली थी. आईआईएसईआर कोलकाता के प्रो. निर्माल्य घोष, जो ऑप्टिकल पोलराइजेशन में सोसाइटी ऑफ फोटो-ऑप्टिकल इंस्ट्रुमेंटेशन इंजीनियर्स (एसपीआईई) जी.जी. स्टोक्स अवॉर्ड 2021 के विजेता हैं, ने पीजोइलेक्ट्रिक ऑर्गेनिक क्रिस्टल की उत्कृष्टता को जांचने और मापने के लिये विशेष रूप से तैयार अत्याधुनिक पोलराईजेशन माइक्रोस्कोपिक सिस्टम का उपयोग किया.. अणुओं या आयनों की पूर्ण आंतरिक व्यवस्था वाले इन पदार्थों को 'क्रिस्टल' कहा जाता है, जो प्रकृति में प्रचुर मात्रा में होते हैं.

आईआईटी खड़गपुर की टीम, प्रो. भानु भूषण खटुआ और डॉ. सुमंत करण ने यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम उपकरणों के निर्माण के लिए नई पदार्थ के प्रदर्शन का अध्ययन किया. नये पदार्थ का हाई-एंड माइक्रो चिप, ऊंची परिशुद्धता वाले मैकेनिकल सेंसर, एक्चुएटर्स, माइक्रो रोबोटिक्स में इस्तेमाल किया जा सकता है. ऐसे पदार्थों में और शोध से आने वाले समय में ऐसे स्मार्ट गैजेट्स विकसित हो सकते हैं जो खुद ही क्रैक और स्क्रेच को ठीक कर सकें.