इस वक्त सैकड़ों ऐसे ऐप उपलब्ध हैं जो मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे लोगों से बातचीत करते हैं. लेकिन विशेषज्ञ इन ऐप्स की उपयोगिता को लेकर बहुत संतुष्ट नहीं हैं.ईयरकिक एक चैटबॉट है जो बात करता है. लेकिन यह कोई आम चैटबॉट नहीं है. यह खासतौर पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखकर बात करता है. इसे डाउनलोड करते हैं तो सामने एक पांडा नजर आता है. बच्चों के कार्टून शो जैसा यह किरदार आपसे बात करता है.
आप लिखकर या बोलकर पांडा से बात कर सकते हैं. पांडा के जवाब सहानुभूति से भरे हुए और राहत देने वाले होते हैं, ठीक उसी तरह जैसे कि किसी थेरेपिस्ट का काउंसिलर के होते हैं. पांडा आपको ब्रीदिंग एक्सरसाइज से लेकर तनाव से उबरने या नकारात्मक ख्यालों से बाहर आने के लिए कुछ टिप्स या ट्रिक्स भी बता सकता है.
थेरेपी से कितना अलग
यह पूरी प्रक्रिया उन्हीं स्थापित तौर-तरीकों का हिस्सा है, जिन्हें पेशेवर थेरेपिस्ट इस्तेमाल करते हैं. लेकिन ईयरकिक की सह-संस्थापक कैरिन आंड्रेया स्टीफान जोर देकर कहती हैं कि इसे थेरेपी ना कहा जाए.
पेशे से संगीतकार और आंत्रप्रेन्योर स्टेफान कहती हैं, "लोग हमें थेरेपी का ही एक रूप कहते हैं, तो कोई बात नहीं लेकिन हम अपने आपको ऐसा नहीं कहते.”
ईयरकिक सैकड़ों ऐसे चैटबॉट्स में से एक है जो इंटरनेट पर उपलब्ध हैं और मानसिक स्वास्थ्य संबंधी सलाहें या थेरेपी देते हैं. लेकिन सवाल यह है कि ये आर्टिफिशियल थेरेपिस्ट कितने कारगर हैं. चूंकि ये ऐप किसी तरह के इलाज का दावा नहीं करते इसलिए इन पर किसी तरह का आधिकारिक नियंत्रण नहीं है.
यही वजह है कि कुछ लोग इन्हें संदेह की निगाह से देखते हैं. इस क्षेत्र के लोगों का तर्क है कि ये मुफ्त हैं, दिन-रात किसी भी वक्त उपलब्ध हैं और थेरेपी शब्द के साथ जुड़ी नकारात्कमता से परे हैं. लेकिन फिलहाल इस बारे में बहुत कम डेटा उपलब्ध है कि ये ऐप मानसिक स्वास्थ्य के सुधार में कितने सफल होते हैं.
मान्यता का सवाल
अमेरिका में स्वास्थ्य से जुड़ी हर गतिविधि को फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की मान्यता लेनी होती है. लेकिन अब तक किसी ऐप ने ऐसी मान्यता के लिए अप्लाई नहीं किया है.
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन की टेक्नोलॉजी डायरेक्टर और मनोवैज्ञानिक वेल राइट कहती हैं, "ऐसी कोई नियामक संस्था नहीं है जो इन ऐप्स की निगरानी करे. इसलिए उपभोक्ताओं के पास यह जानने का कोई जरिया नहीं है कि ये असल में प्रभावशाली हैं.”
हालांकि राइट को यह कहने से गुरेज नहीं हैं कि कई कम गंभीर परिस्थितियों या भावनात्मक समस्याओं में ये ऐप मददगार साबित हो सकते हैं.
ईयरकिक की वेबसाइट पर यह बात साफ तौर पर लिखी गई है कि उनकी ऐप "किसी तरह की स्वास्थ्य सेवा, स्वास्थ्य संबंधी राय या इलाज उपलब्ध नहीं कराती."
हालांकि स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले कुछ कानूनविद मानते हैं कि सिर्फ इतना लिख देना काफी नहीं है. हार्वर्ड लॉ स्कूल के ग्लेन कोहेन कहते हैं, "अगर आप अपने ऐप का इस्तेमाल करने वालों को लेकर वाकई चिंतित हैं तो आपका डिस्क्लेमर ज्यादा स्पष्ट होना चाहिए कि यह बस मजे के लिए है.”
इन तमाम दिक्कतों के बावजूद एक सच यह भी है कि बड़ी संख्या में लोग इन ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां झेलने वाले बढ़ रहे हैंऔर पेशेवरों की उपलब्धता बहुत कम है.
ब्रिटेन की नेशनल हेल्थ सर्विस (एनएचएस) ने तनाव, एंग्जाइटी और डिप्रेशन से जूझ रहे वयस्कों और किशोरों के लिए वाइजा नाम के एक चैटबॉट की शुरुआत की है. यह ऐसे लोगों के लिए खासतौर पर लाभदायक है जो थेरेपिस्ट से समय मिलने का इंतजार कर रहे हैं. अमेरिका में भी कुछ इंश्योरेंस कंपनियां, विश्वविद्यालय और अस्पताल ऐसी सुविधाएं दे रहे हैं.
ऐप के तरीके पर सवाल
न्यू जर्सी में डॉक्टर एंजेला स्करजिंस्की कहती हैं कि जब वह मरीजों को बताती हैं कि थेरेपिस्ट से मिलने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ेगा तो वे चैटबॉट को आजमाने को लेकर झिझकते नहीं हैं. स्करजिंस्की जिस ‘वर्चुआ हेल्थ' नाम की कंपनी के लिए काम करती हैं, वह वूबॉट नाम के एक ऐप से ये सुविधा उपलब्ध कराती है.
डॉ. स्करजिंस्की कहती हैं कि मांग इतनी ज्यादा है कि हमें अहसास हुआ, इतनी बड़ी तादाद में थेरेपिस्ट भर्ती करना संभव नहीं होगा. वह बताती हैं, "यह (ऐप) ना सिर्फ मरीजों के लिए मददगार है बल्कि उन डॉक्टरों के भी काम का है जो अपने परेशान मरीजों को किसी तरह की राहत पहुंचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.”
कंपनी का डेटा बताता है कि मरीज रोजाना औसतन सात मिनट तक ऐप का इस्तेमाल करते हैं और आमतौर पर यह सुबह 3 से 5 बजे तक होता है. वूबॉट को 2017 में स्टैन्फर्ड में पढ़े एक साइकोलॉजिस्ट ने शुरू किया था. चैटजीपीटी या ईयरकिक लैंग्वेज-बेस्ड ऐप हैं यानी वे सवाल का जेनरेटिव एआई से तैयार उत्तर देती हैं, जिनमें तथ्यात्मक गलतियां हो सकती हैं या ये जवाब ऐप के द्वारा अपने आप भी गढ़े जा सकते हैं. लेकिन वूबॉट में पहले से हजारों जवाब तैयार हैं, जो कंपनी के कर्मचारियों और शोधकर्ताओं द्वारा लिखे गए हैं.
कंपनी की संस्थापक एलिसन डार्सी कहती हैं कि स्वास्थ्य के मामले में नियमों पर आधारित रवैया ज्यादा सुरक्षित होता है. डार्सी कहती हैं, "लैंग्वेज-बेस्ड मॉडल को हम अपनी राय घुसेड़ने और लोगों को यह बताने से नहीं रोक सके कि उन्हें क्या सोचना चाहिए.” जबकि थेरेपिस्ट को मरीज की सोचने की प्रक्रिया के तहत ही काम करना होता है.
वीके/एए (एपी)