
यूरोप की एक जोड़ी सेटेलाइटों ने दुनिया के पहले कृत्रिम सूर्य ग्रहणों को जन्म दिया है. वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे उन्हें सूरज को और सेमझने में मदद मिलेगी.यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने सोमवार 16 जून को पेरिस एयर शो में कृत्रिम सूर्य ग्रहण की तस्वीरें जारी कीं. ग्रहण को जन्म देने के लिए इन सेटेलाइटों को सटीक और अनोखे तरीके से उड़ना पड़ा. इनके ऐसा करने से घंटों लंबा पूर्ण ग्रहण बन सका और वैज्ञानिकों ने इसका अध्ययन किया.
इन सेटेलाइटों को 2024 में छोड़ा गया था और मार्च 2025 से इन्होंने कई बार सूर्य ग्रहण की नकल की है. ये पृथ्वी से कई हजार किलोमीटर ऊपर एक दूसरे से 492 फुट दूर उड़ रही हैं. कृत्रिम ग्रहण बनाने के समय इनमें से एक चांद की तरह सूर्य को ब्लॉक कर देती है और दूसरी अपने टेलिस्कोप से सूर्य के बाहरी वायुमंडल कोरोना का अध्ययन करती है.
कैसे बनाया जाता है कृत्रिम ग्रहण
ग्रहण के समय कोरोना एक मुकुट या रोशनी के एक प्रभामंडल जैसा बना देता है. पांच फुट से भी छोटी दोनों सेटेलाइटों का यह एक तरह का डांस बेहद सटीक तरह से काम करने पर ही पूरा हो पाता है.
इनके उड़ने की सूक्ष्मता एक मिलीमीटर से कम होनी चाहिए, यानी बस एक नाखून जितनी मोटी. इसके लिए जीपीएस नैविगेशन, स्टार ट्रैकरों, लेजरों और रेडियो लिंक का सहारा लिया जाता है.
21 करोड़ डॉलर के इस मिशन का नाम प्रोबा-तीन रखा गया है और इसने अभी तक 10 सफल सूर्य ग्रहण बना लिए हैं. रॉयल ऑब्जर्वेटरी ऑफ बेलज्यिम के आंद्रे जूकोव ने बताया कि इनमें से सबसे लंबा ग्रहण पांच घंटों तक रहा. जूकोव कोरोना का अध्ययन करने वाले टेलिस्कोप के मुख्य वैज्ञानिक हैं.
इस मिशन के तहत वैज्ञानिक निरीक्षण जुलाई में शुरू होगा. जूकोव और उनकी टीम का लक्ष्य है कि निरीक्षण शुरू होने के बाद उन्हें हर ग्रहण के दौरान छह घंटों तक का पूर्ण ग्रहण मिल सके.
अच्छे संकेत मिल रहे हैं
जुकोव ने बताया कि अभी तक मिले प्राथमिक नतीजों से ही वैज्ञानिक बहुत खुश हैं, जिनमें तस्वीर को बिना खास तरह से प्रोसेस किए हुए कोरोना दिखाई दे रहा है. जूकोव ने एक ईमेल में बताया, "हम अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे. यह पहली कोशिश थी और यह सफल रही. यह काफी अविश्वसनीय था."
उनका अनुमान है कि पूरे मिशन में करीब 200 ग्रहण बनाए जाएंगे, यानी हर हफ्ते औसत दो ग्रहण. इनसे कुल 1,000 घंटों से भी ज्यादा पूर्ण ग्रहण मिल सकता है. यह वैज्ञानिकों के लिए अप्रत्याशित लाभ होगा क्योंकि सूर्य ग्रहण के दौरान सिर्फ कुछ ही मिनटों का पूर्ण ग्रहण मिल पाता है, जब चांद बिलकुल सटीक रूप से धरती और सूर्य के बीच आ जाता है.
सूर्य आज भी वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य है, विशेष रूप से उसका कोरोना, जो सूर्य की सतह से भी ज्यादा गर्म होता है. कोरोना के मास इजेक्शन की वजह से अरबों टन प्लाज्मा और चुम्बकीय क्षेत्र अंतरिक्ष की तरफ फेंके जाते हैं.
इनकी वजह से भू-चुंबकीय तूफान आ सकते हैं जो अप्रत्याशित जगहों पर रात के आसमान में औरोरा बना सकते हैं और साथ में बिजली और संचार व्यवस्था को अस्त-व्यस्त भी कर सकते हैं.
इससे पहले भी सेटेलाइटों ने सूर्य ग्रहण की नकल की है, लेकिन यह मिशन अनूठा है क्योंकि सूर्य को ढकने वाली डिस्क और टेलिस्कोप दो अलग अलग सेटेलाइट पर हैं और इसलिए एक दूसरे से दूर हैं. इन दोनों के बीच की दूरी वैज्ञानिकों को कोरोना का बेहतर अध्ययन करने में मदद करेगी.