एक ‘भारी भूल’ के कारण विलुप्त हुआ 10 फुट का वानर
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

धरती पर विचरने वाले सबसे बड़े बंदरों का खात्मा एक गलती के कारण हुआ था. बुधवार को प्रकाशित एक शोध पत्र में वैज्ञानिकों ने कहा है कि 10 फुट लंबे इन बंदरों के विलुप्त होने की वजह पता चल गई है.वैज्ञानिकों का कहना है कि दो लाख साल पहले धरती पर विचरने वाले सबसे बड़े बंदरों के विलुप्त हो जाने के बारे में नई जानकारी हासिल हुई है. ‘जाइगेंटोपिथेकस ब्लैकी' नाम की इस प्रजाति के बंदरों को धरती के सबसे बड़े बंदर माना जाता है. वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि ये बंदर धरती के बदलते वातावरण के अनुसार खुद को ढाल नहीं सके, इसलिए विलुप्त हो गए.

जाइगेंटोपिथेकस ब्लैकी दो लाख साल पहले धरती पर मौजूद थे. इनकी लंबाई दस फुट और वजन 300 किलोग्राम तक होता था. ये दक्षिण एशिया के जंगलों में पाए जाते थे और हजारों साल तक पनपते रहे. 1930 के दशक में एक जर्मन वैज्ञानिक को हॉन्ग कॉन्ग की एक पुरानी दुकान पर उन बंदरों का एक दांत मिला था, जिससे इनके अस्तित्व का पता चला.

कैसे हुआ शोध

ऑस्ट्रेलिया की सदर्न क्रॉस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक रेनॉद जोआनेस-बोया कहते हैं कि यह एक विशाल दांत था और इसे ड्रैगन का दांत बताकर बेचा जा रहा था. उन्होंने कहा, "यह दांत किसी सामान्य बंदर के दांत से तीन से चार गुना ज्यादा बड़ा था.”

इस दांत को देखकर ही जोआनेस बोया को ब्लैकी में दिलचस्पी पैदा हुई और उन्होंने उस पर शोध करना शुरू किया. अब उनका और उनके सहयोगियों का यह शोध पत्र प्रतिष्ठित साइंस पत्रिका नेचर में प्रकाशित हुआ है.

ब्लैकी से जुड़ी बहुत सारी सामग्री उपलब्ध नहीं है. अब तक जो कुछ मिला है उसमें जबड़े के चार टुकड़े और लगभग 2,000 दांत शामिल हैं जिनमें से अधिकतर दक्षिणी चीन के ग्वांजी प्रांत में गुफाओं में मिले थे. चीन के इंस्टिट्यूट ऑफ वर्टबरेट पेलिएंथोलॉजी एंड पेलिएंथ्रोपोलॉजी में काम करने वाले यिंगी जांग कहते हैं कि उस खुदाई के बावजूद यह बात अब तक रहस्य बनी रही कि ब्लैकी खत्म कैसे हुए.

कब विलुप्त हुआ ब्लैकी

यिंगी जांगी ने जाओनेस बोया और अमेरिका के कुछ वैज्ञानिकों के साथ मिलकर शोध किया है. दोनों ने ब्लैकी की विलुप्ति का टाइमलाइन बनाने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने 22 गुफाओं से मिले दांतों को जमा किया.

इन दांतों का छह अलग-अलग तकनीकों से परीक्षण किया गया ताकि पता लगाया जा सके कि वे कितने पुराने हैं. इसमें एक नई तकनीक लुमिनेसेंस डेटिंग का भी इस्तेमाल किया गया. यह एक नई तकनीक है जिससे पता चल जाता है कि किसी जीवाश्म पर आखिरी बार सूर्य का प्रकाश कब पड़ा था.

जांग बताते हैं, "अब शोधकर्ता जाइगेंटोपिथेकस के विलुप्त होने की पूरी कहानी बता सकते हैं.” अपने शोध में इन शोधकर्ताओं ने पाया कि ब्लैकी 2,15,000 से 2,95,000 साल के बीच खत्म हुए, यानी अब तक के अनुमानों से कहीं पहले.

एक भारी भूल

यह वही समय था जब धरती का वातावरण और मौसम बदल रहा था. जिन घने जंगलों में ब्लैकी रहा करते थे, वे कम हो रहे थे और घास के मैदानों में बदल रहे थे. इस कारण ब्लैकी का पसंदीदा खाना, फल कम हो गए।

यह विशाल जीव धरती पर रहता था और फल तोड़ने के लिए पेड़ों पर नहीं चढ़ सकता था. ऑस्ट्रेलिया की मैक्वायरी यूनिवर्सिटी में जियोक्रोनोलॉजिस्टन कीरा वेस्टवे भी इस शोध का हिस्सा रही है हैं. वह कहती हैं कि अपने अंतिम दिनों में फलों के बजाय ब्लैकी "कम पोषक भोजन जैसे टहनियों और छाल खाने लगे.”

जांग कहते हैं कि यह एक ‘भारी भूल' थी जो अंततः उनकी विलुप्ति का कारण बनी. असल में इन बंदरों का आकार इतना बड़ा था कि वे खाने की खोज में बहुत दूर आ-जा भी नहीं सकते थे जबकि उन्हें बहुत ज्यादा मात्रा में खाने की जरूरत थी.

वैसे इस शोध के दौरान एक दिलचस्प बात यह पता चली कि जब ब्लैकी खत्म हो रहे थे, उस दौरान उनका आकार पहले से ज्यादा बड़ा हो गया था. उसके दांतों की जांच से वैज्ञानिकों ने पाया कि अपनी विलुप्ति के दौर में ब्लैकी बहुत तनाव में था.

वीके/सीके (एएफपी)