एशियन गेम्स: वुशु में भारत को मिले चार ब्रॉन्ज मेडल, जानिए क्या है वुशु खेल

एशियन गेम्स भारत के चार खिलाड़ियों ने वुशु स्पर्धा में चार कांस्य पदक जीते. पहले 60 किग्रा में नाओरेम रोशिबिनी देवी का मुकाबला चीन की काइ यिंगयिंग से हुआ. रोशिबिनी को 1-0 से हार मिली और उन्हें कांस्य से संतोष करना पड़ा.

वुशू में भारत को मिले चार ब्रॉन्ज मेडल (Photo Credit-SAIMedia Twitter)

नई दिल्ली: इंडोनेशिया के जकार्ता में आयोजित 18वें एशियन गेम्स भारत के चार खिलाड़ियों ने वुशु स्पर्धा में चार कांस्य पदक जीते. पहले 60 किग्रा में नाओरेम रोशिबिनी देवी का मुकाबला चीन की काइ यिंगयिंग से हुआ. रोशिबिनी को 1-0 से हार मिली और उन्हें कांस्य (ब्रॉन्ज) से संतोष करना पड़ा. वहीं संतोष कुमार को वियतनाम के जियांग बुई से, नरेंद्र ग्रेवाल को सेमीफाइनल में ईरान के सेम फोरोद जफारी से 2-0 से और वहीं सूर्य भानु प्रताप सिंह को 60 किग्रा वर्ग में ईरान के इरफान अहनगारियान से हारकर कांस्य  (ब्रॉन्ज) जीतने में कामयाब रहे. इसी तरह भारत के खाते में अब 15 पदक हो गए हैं. वुशु के इस विमेन कैटगरी में चीन की एक खिलाड़ी को गोल्ड मिला है. बता दें कि रोशिबिना मूल रूप से मणिपुर की रहने वाली हैं और इनकी उम्र सिर्फ 17 साल है.

बता दें कि संतोष को सेमीफाइनल मुकाबले में वियतनाम के ट्रोयोंग गियांग ने 2-0 से हार का सामना करना पड़ा. फाइनल में जगह नहीं बना पाने के संतोष कुमार को ब्रॉन्ज मेडल ही मिला. यह भी पढ़े-एशियन गेम्स: भारतीय हॉकी टीम की हांगकांग पर ऐतिहासिक जीत, तोड़ा 86 साल पुराना रिकॉर्ड

जानिए क्या है वुशु खेल?

वुशु, एक पारंपरिक चीनी मार्शल आर्ट खेल है. वुशु एक लोकप्रिय खेल है जिसकी जड़े चीन में पायी जाती है. इस खेल को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है. ताओलू और संसौ. ताओलू पूर्व निर्धारित, एक्रोबेटिक आंदोलनों से संबंधित है जहां प्रतियोगी काल्पनिक हमलावरों के खिलाफ उनकी तकनीकियों पर महारथ हासिल की जाती है. साथ ही संसौ एक पूर्ण संपर्क खेल है, प्राचीन प्रथाओं और आधुनिक खेल सिद्धांतों का संयोजन है, जो कि कुश्ती या किक-मुक्केबाजी जैसा दिखता है. यह भी पढ़े- Asian Games 2018: भारत की शूटर बेटी सरनोबत ने लगाया गोल्ड पर निशाना, देश के खाते में हुए 11 मेडल

बता दें कि भारत के वुशु एसोसिएशन ने इसे एक ऐसे गेम के रूप में वर्णित किया है जो लड़ाई की गतिविधियों के साथ आंतरिक और बाहरी दोनों अभ्यासों पर ध्यान देता है. सन 1989 में यह खेल पहली बार भारत आया था.

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