Court on Wrong Arrest: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि "लोगों को अपनी राय/असहमति व्यक्त करने से डराकर परेशान करने के लिए कानून को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है."
बंबई उच्च न्यायालय ने भाजपा नेता और मंत्री चंद्रकांत पाटिल के खिलाफ सोशल मीडिया पर एक पोस्ट डालने वाले एक कांग्रेस कार्यकर्ता के खिलाफ मामले को खारिज करते हुए सोमवार को कहा कि लोगों को अपनी राय व्यक्त करने से डराकर परेशान करने के लिए कानून को उत्पीड़न के एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है.
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और पीके चव्हाण की पीठ ने याचिकाकर्ता संदीप कुडाले की "अनुचित गिरफ्तारी" के लिए राज्य सरकार पर 25,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया. कोर्ट ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 153A (विभिन्न आधारों पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) का इस्तेमाल असहमति को दबाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
Law cannot be used as a tool to harass people by intimidating them from expressing their opinions/dissent: Bombay High Court
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— Bar & Bench (@barandbench) February 28, 2023
कोर्ट ने कहा “कानून को एक उपकरण के रूप में या उत्पीड़न के एक साधन के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, FIR दर्ज करके, लोगों को रोकने / धमकाने के लिए, उनके विचार / राय / असंतोष व्यक्त करने से, जो कि भारत का संविधान उन्हें गारंटी देता है. अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार हमारे लोकतंत्र में एक संरक्षित और पोषित अधिकार है और इसे आईपीसी की धारा 153ए लागू करके और किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करके नहीं छीना जा सकता. धारा 153ए को लोगों को अपने विचार/राय/असहमति व्यक्त करने से चुप कराने के लिए सहारा नहीं लिया जा सकता है.
कोर्ट ने कहा "धारा 153ए के तहत मामले बढ़ रहे हैं और पुलिस और राज्य सरकार पर यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी है कि उक्त प्रावधान का किसी के द्वारा दुरुपयोग नहीं किया जा रहा है, राजनीतिक दलों की तो बात ही छोड़ दें."
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