गुजरात: मत्स्य माता मंदिर में होती है व्हेल मछली के हड्डियों की पूजा, मछुआरों की आस्था से जुड़ी है यह कहानी
इन्हीं मंदिरों में एक अनोखा मंदिर गुजरात के वलसाड तहसील के मगोद डुंगरी गांव में स्थित है, जिसे मत्स्य माता मंदिर कहा जाता है. करीब 300 साल पुराने इस मत्स्य माता मंदिर में किसी देवी या देवता के प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है, बल्कि यहां व्हेल मछली की हड्डियों को पूजा जाता है.
भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है जहां विभिन्न संस्कृतिओं और परंपराओं का अद्भुत संगम देखने को मिलता है. धार्मिक नजरिए से भी भारत दुनिया के तमाम देशों में खासा महत्व रखता है. यहां सभी धर्मों को समभाव की दृष्टि से देखा जाता है. बात करें हिंदू धर्म की आस्था और विश्वास की, तो यहां कई ऐसे प्राचीन मंदिर मौजूद हैं जो ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. यहां स्थित मंदिरों को लेकर कई तरह की मान्यताएं जुड़ी हैं. इन्हीं मंदिरों में एक अनोखा मंदिर गुजरात (Gujarat) के वलसाड तहसील (Valsad) के मगोद डुंगरी गांव (Magod Dungri Village) में स्थित है, जिसे मत्स्य माता मंदिर (Matsya Mata Mandir) कहा जाता है.
करीब 300 साल पुराने इस मत्स्य माता मंदिर में किसी देवी या देवता के प्रतिमा की पूजा नहीं की जाती है, बल्कि यहां व्हेल मछली (Whale Fish) की हड्डियों (Bones) को पूजा जाता है. आखिर क्या है इसकी वजह चलिए जानते हैं.
मछुआरों ने कराया था मंदिर का निर्माण
बताया जाता है कि 300 साल पहले व्हेल मछली के हड्डियों की पूजा किए जाने वाले इस मंदिर का निर्माण गांव के मछुआरों ने ही करवाया था. यहां के मछुआरे आज भी मछली पकड़ने के लिए समंदर में जाने से पहले इस मंदिर में मत्स्य माता के सामने जाकर माथा टेकते हैं. कहा जाता है कि समंदर में मछली पकड़ने जाने से पहले अगर कोई मछुआरा इस मंदिर में दर्शन नहीं करता है तो उसके साथ कोई न कोई दुर्घटना जरूर घटती है.
क्या कहती है इस मंदिर से जुड़ी मान्यता?
इस मंदिर से जुड़ी मान्यता के अनुसार, करीब 300 साल पहले इसी गांव के प्रभु टंडेल नाम के एक निवासी ने सपना देखा था कि समुद्र तट पर एक विशाल मछली आई है, जो एक देवी का रूप धारण कर तट पर पहुंचती हैं, लेकिन वहां उनकी मृत्यु हो जाती है. इस सपने के बाद अगली सुबह जब प्रभु टंडेल गांव के अन्य लोगों के साथ समुद्री तट पर पहुंचे तो उन्हें सपने में नजर आ चुकी मछली मरी हुई दिखाई दी. उस व्हेल मछली के आकार को देखकर गांव वाले भी हैरान हो गए. यह भी पढ़ें: गुजरात: 800 साल पुराने इस हिंदू मंदिर में होती है मुस्लिम महिला की पूजा, वजह जानकर आप भी रह जाएंगे दंग
व्हेल मछली को मानते हैं देवी का अवतार
बताया जाता है कि प्रभु टंडेल ने लोगों को अपने सपने के बारे में बताया और व्हेल मछली को देवी का स्वरुप मानकर एक मंदिर बनवाया. कहा जाता है कि मंदिर बनाने से पहले उस मछली को समुद्र तट पर ही जमीन के भीतर दबा दिया गया था. जब मंदिर का निर्माण पूरा हो गया तब जमीन के नीचे से उसकी हड्डियों को निकालकर प्रतिमा के स्थान पर रख दिया गया.
कहा जाता है कि कुछ लोगों को देवी के मत्स्य अवतार पर विश्वास नहीं हो रहा था, तो कुछ लोगों ने मंदिर निर्माण से जुड़े किसी भी काम में हिस्सा नहीं लिया. लोगों को अपने अविश्वास का खामियाजा तब भुगतना पड़ा, जब गांव में एक भयंकर बीमारी फैल गई. इस बीमारी से निजात पाने के लिए जब लोगों ने मंदिर में जाकर मत्स्य माता से प्रार्थना की तब जाकर उन्हें इससे छुटकारा मिला. तब से लेकर अब तक यहां के लोग अपने किसी भी काम की शुरुआत से पहले इस मंदिर में माथा जरूर टेकते हैं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.