World Day Against Child Labour 2020: कमजोर बच्चों को बाल श्रम में धकेल सकता है महामारी के बाद का संकट
अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस (Photo Credits: File Photo)

बाल श्रम के दलदल में फंसे मासूमों का बचपन दम तोड़ रहा है. यह समस्या दुनिया के कई देशों में एक विकट समस्या के रूप में मौजूद है. जिसके उन्मूलन के लिए हर साल 12 जून को अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस मनाया जाता है. इस बार कोविड-19 महामारी की वजह से न सिर्फ आर्थिक और श्रम बाजार प्रभावित हुआ है, बल्कि लोगों के जीवन और आजीविका पर भी संकट है. दुर्भाग्य से ऐसे संकट में बच्चे सबसे पहले पीड़ित होते हैं और ये संकट लाखों कमजोर बच्चों को बाल श्रम में धकेल सकता है.

एक रिपोर्ट के अनुसार:

पहले से ही बाल श्रम में अनुमानित 152 मिलियन बच्चे हैं, जिनमें से 72 मिलियन बेहद खतरनाक काम से जुड़े हैं. बाल श्रम के शिकार लगभग आधे (48%) 5-11 वर्ष की आयु के, 28% 12-14 वर्ष के और 24% 15-17 वर्ष के बच्चे हैं. बाल श्रम मुख्य रूप से कृषि (71%) में केन्द्रित है, जिसमें मछली पकड़ना, वानिकी, पशुधन पालन और जलीय कृषि शामिल है. 17% सेवाओं में- और खनन सहित औद्योगिक क्षेत्र में 12% शामिल हैं.

कोविड की वजह से बाल श्रम पर विशेष ध्यान:

कोविड की वजह से इन बच्चों को अब और भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है. इसलिए इस बार अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस पर बच्चों को बाल श्रम से बचाने के लिए पहले से ज्यादा सक्रिय और प्रभावी पहल की योजना है. मौजूदा साल में इस दिवस को एक आभासी अभियान के रूप में आयोजित किया जाना है. यह आयोजन ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर और इंटरनेशनल पार्टनरशिप फॉर कोऑपरेशन इन चाइल्ड लेबर इन एग्रीकल्चर (IPCCLA) के साथ मिलकर किया जा रहा है. कोविड महामारी को देखते हुए साल 2021 को बाल श्रम के उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय वर्ष घोषित किया गया है.

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अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस से फायदा:

दुनियाभर में प्रत्येक दस में से एक बच्चे बाल मजदूरी में हैं. मालूम हो कि साल 2000 के बाद से बाल श्रम में बच्चों की संख्या में 94 मिलियन की कमी आई है, लेकिन हाल के वर्षों में बाल श्रम में गिरावट के दर का कम होना चिन्ताजनक है. संयुक्त राष्ट्र 8.7 के दर से सतत विकास लक्ष्य के साथ 2025 तक सभी तरह के बाल श्रम को समाप्त करने का आह्वान करता है.

विश्व के देशों में बाल श्रम का आंकड़ा:

विकसित देशों में चार बच्चों में एक या उससे अधिक बच्चे (उम्र 5 से 17) बाल श्रम में लगे हुए हैं, जो उनके स्वास्थ्य और विकास के लिए हानिकारक माना जाता है. अफ्रीका बाल श्रम में बच्चों के प्रतिशत में सर्वोच्च स्थान पर है. यहां पर बाल श्रम में बच्चों की संख्या 72 मिलियन है. इसके बाद एशिया और प्रशांत क्षेत्र के दूसरे स्थान हैं, जहां कुल बच्चों का 7% और पूर्ण रूप से 62 मिलियन इस क्षेत्र में बाल श्रम में हैं.

अफ्रीका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र को मिलाकर बात करें तो प्रत्येक 10 बच्चों में 9 बाल श्रम में शामिल हैं. शेष बाल श्रम आबादी अमेरिका (11 मिलियन), यूरोप और मध्य एशिया (6 मिलियन), और अरब राज्यों में (1 मिलियन) के बीच विभाजित है. प्रतिशत में देखें तो 5% बच्चे अमेरिका में, 4% यूरोप और मध्य एशिया में और 3% अरब राज्यों से बाल श्रम में शामिल हैं.

बाल श्रम में बच्चों का प्रतिशत आर्थिक तौर पर कम और मध्यम आय वाले देशों में सबसे अधिक है. गौरतलब है कि मध्यम आय वाले देशों में बाल श्रम की संख्या वास्तव में अधिक पाया गया है. निम्न-मध्यम-आय वाले देशों में बच्चों की कुल आबादी का 9%, और ऊपरी-मध्यम-आय वाले देशों में कुल बच्चों के 7% बच्चे बाल श्रम में शामिल हैं. प्रत्येक राष्ट्र के आय समूह के मुताबिक देखें तो 84 मिलियन बच्चे बाल श्रम में लिप्त हैं, जिसमें से 56 प्रतिशत बच्चे वास्तव में मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं और अतिरिक्त 2 मिलियन बच्चे उच्च आय वाले देशों से आते हैं.

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भारत में बाल श्रम:

अगर भारत की बात करें तो 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 5-14 आयु वर्ग की कुल बाल जनसंख्या 259.6 मिलियन है, जिसमें से 10.1 मिलियन (कुल बाल जनसंख्या का 3.9%) बच्चे किसी न किसी तरह के बाल श्रम में लगे हुए हैं. इसके अलावा भारत में 42.7 मिलियन से अधिक बच्चे स्कूल नहीं जाते है. अच्छी खबर यह है कि 2001 और 2011 के बीच भारत में बाल श्रम के मामलों में 2.6 मिलियन की कमी आई है. यह गिरावट ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखी गई है. बात शहरी क्षेत्रों की करें तो, बाल श्रम के मामले में यहां वृद्धि हुई है. भारत में बाल श्रम को लेकर राष्ट्रीय कानून बनाए गए हैं. भारत का बाल श्रम संशोधन (निषेध और विनियमन) अधिनियम 2016 और शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के अधिनियम तय अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन के मानको को पूरा करते हैं.