ज्यों-ज्यों आजादी का महोत्सव करीब आ रहा है, आजादी के मतवालों की शहादत गाथाएं किसी चलचित्र की तरह कौंधने लगी हैं. ब्रिटिश हुकूमत से देश को आजाद करने में क्रांतिकारियों की शहादत को आसानी से भुलाया नहीं जा सकता. ऐसे ही एक अदम्य साहसी क्रांतिकारी थे, खुदीराम बोस. देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजादी दिलाने के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूलने वाले खुदीराम के बारे में कहा कि स्वतंत्रता के इतिहास में वह सबसे नन्हा क्रांतिकारी था. 11 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि पर आइये जानें इस नन्हें क्रांतिकारी की अदम्य साहसिक गाथा.
स्कूल छोड़ क्रांति-पथ की ओर
खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को मिदनापुर (बंगाल) के हबीबपुर गांव में हुआ था. बालपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई. उनकी परवरिश उनकी बड़ी बहन ने की. 19 जुलाई 1905 में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन ने एक षड़यंत्र के तहत हिंदुओं के लिए पश्चिम बंगाल और मुसलमानों के लिए पूर्वी बंगाल के रूप में विभाजन कर दिया. इसके विरुद्ध पश्चिम बंगाल में खूब दंगे और खूनी होली खेली गई. उस समय खुदीराम नौवीं कक्षा में थे. पश्चिम बंगाल के विभाजन स्वरूप हुए दंगों से विक्षिप्त होकर 1905 में खुदीराम स्कूल छोड़कर सत्येंद्र नाथ बोस के नेतृत्व में रिवॉल्यूशनरी पार्टी से जुड़ गये. यह भी पढ़ें : Tulsidas Jayanti 2024 Wishes: तुलसीदास जयंती की बधाई! अपनों संग शेयर करें ये हिंदी WhatsApp Stickers, GIF Greetings, HD Images और Wallpapers
15 बेंत की सजा?
साल 1906 में मिदनापुर में एक मेले का आयोजन किया गया. सत्येंद्र नाथ बोस ने ‘वन्दे मातरम’ शीर्षक से अंग्रेजी शासन का विरोध करते हुए एक पर्चा छपवाया, जिसे आम लोगों को वितरित करने की जिम्मेदारी खुदीराम को दी गई. खुदीराम को पर्चा बांटते हुए अंग्रेजों के पिट्ठू रामचरण सेन ने देख लिया, उसने इसकी सूचना एक अंग्रेज सिपाही को दे दी. एक अंग्रेज सिपाही ने खुदीराम बोस को पकड़ने की कोशिश की, खुदीराम ने उस पर हमला कर दिया, लेकिन तभी दूसरे पुलिस वाले पहुंच गए. खुदीराम बोस पकड़े गये. उन्हें 15 बेंत की सजा दी गई.
खुदीराम ने जज किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की कोशिश!
18 अप्रैल को खुदीराम अपने एक साथी के साथ मुजफ्फरपुर पहुंचे. योजना थी, वहां के जज किंग्सफोर्ड को बम से उड़ाने की. दोनों ने योजना बनाई कि किंग्सफोर्ड जैसे ही बग्घी में बैठकर वापस लौटेगा, उस पर बम से हमला कर देंगे. सब कुछ योजनानुसार हुआ, लेकिन जज किंग्सफोर्ड जैसी एक और बग्घी पहले निकली, जिसमें दो अंग्रेज महिलाएं मिसेज कैनेडी और ग्रेस कैनेडी सवार थे. खुदीराम ने इसी बग्घी पर बम फेंक दिया. इससे दोनों महिलाओं की मृत्यु हो गई. इसके बाद दोनों घटनास्थल से भाग गये, मगर 01 मई 2008 को पुलिस ने खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया. अदालत में केस चला. खुदीराम को फांसी की सजा सुनाई गई.
18 साल 08 माह 08 दिन के खुदीराम को फांसी दी गई!
दुनिया जानती थी कि खुदीराम बोस नाबालिग थे. जब उन्हें जज के सामने लाया गया. तो जज ने पूछा, तुम फांसी का मतलब समझते हो, खुदीराम ने कहा मुझे इस सजा और मेरे वकील की दलील मैं सब जानता हूं. मेरे वकील की यह दलील कि मैं नाबालिग हूं, मैं इस उम्र में बम बना ही नहीं सकता. मगर जज साहब आप मेरे साथ चलिए, मैं आपको भी बम बनाना सिखा सकता हूं. कहा जाता है कि खुदीराम के बेबाक बयान से जज महोदय भी हिल गये थे. जानकार बताते हैं कि फांसी वाले दिन उनके हाथ में गीता थी, व जब फांसी के लिए ले जाये जा रहे थे, तो उनके दोनों तरफ खड़े लोग वंदे मातरम् के नारे लगा रहे थे, और खुदीराम के चेहरे पर बेखौफ मुस्कान थी. 11 अगस्त 1908 को फांसी पर चढ़ा दिये गये.