कार्तिक मास की द्वादशी के दिन तुलसी विवाह का पर्व बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है. सनातन धर्म में तुलसी विवाह की काफी महत्व है, और घर-घर इसका आयोजन होता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इसी दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागृत अवस्था में आते हैं. भागवत पुराण के अनुसार इसी दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम से हुआ था. गौरतलब है कि शालिग्राम भगवान विष्णु का एक स्वरूप हैं. इस दिन शालिग्राम एवं तुलसी विवाह के कारण इस एकादशी को अन्य एकादशियों से ज्यादा प्रभावशाली माना जाता है. मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से चंद्र दोष से छुटकारा मिलता है. आइये जानें तुलसी विवाह से संबंधित आवश्यक बातें...
तुलसी विवाह का महात्म्य!
हिंदू धर्म में तुलसी विवाह के महात्म्य का अहसास इसी से किया जा सकता है, कि इसके बाद ही चातुर्मास के कारण शांत हुई शहनाइयां पुनः गूंजने लगती हैं. मान्यता अनुसार तुलसी और शालिग्राम की पूजा एवं विवाह का आयोजन करने से घर-परिवार में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है, और मृत्योपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है, निसंतानों को संतान प्राप्त होता है. ऐसी भी मान्यता है कि किसी के विवाह में अगर कोई समस्या आ रही है, तो तुलसी विवाह के दिन किसी जरूरतमंद बेटी की शादी में सामर्थ्य अनुसार दान करने से विवाह में आ रही सारी अड़चनें समाप्त हो जाती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार तुलसी माँ लक्ष्मी का और शालिग्राम भगवान विष्णु का स्वरूप ही हैं. यह भी पढ़ें: Amla Navami 2022 Wishes: आंवला एकादशी पर ये विशेज HD Images, GIF Greetings और Wallpapers के जरिए भेजकर दें अक्षय नवमी की शुभकामनाएं
तुलसी विवाह तिथि, शुभ मुहूर्त
कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष तुलसी-शालिग्राम विवाह 05 नवंबर, 2022, शनिवार के दिन सम्पन्न होगा.
कार्तिक द्वादशी प्रारंभः 06.08 PM (5 नवंबर 2022, शनिवार)
कार्तिक द्वादशी समाप्तः 05.06 PM (6 नवंबर 2022, रविवार)
पारण कालः 01.09 PM से 03.18 PM तक
तुलसी विवाह पर ऐसे करें पूजा
तुलसी पूजा के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. अब एक स्वच्छ चौकी पर आसन बिछाएं. इस पर तुलसी का पेड़ गमले सहित रखें. इसके बगल में एक और चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर इस पर शालिग्राम को स्थापित करें. दोनों चौकियों को गन्ने से मंडप बनाएं. एक कलश में जल भरकर उसे आम के पत्तों से सजाएं. तुलसी और शालिग्राम के सामने घी का दीपक प्रज्वलित करें, रोली एवं अक्षत से तिलक करें. मिष्ठान और फल चढ़ाएं. तुलसी जी पर लाल रंग की चुनरी चढाएं. पास में चूड़ी, बिंदी, सिंदूर से तुलसी जी का श्रृंगार करें. इसके बाद शालिग्राम की चौकी को प्रतिमा सहित उठाकर तुलसी जी की सात परिक्रमा कराएं. साथ ही निम्न मंत्र का जाप करें.
‘महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते’
इसके बाद तुलसी एवं शालिग्राम की आरती उतारें, अंत में सभी को प्रसाद वितरित करें.
कौन हैं शालिग्राम जी
जिस तरह शिवजी के निराकार रूप शिवलिंग की पूजा होती है, उसी तरह विष्णु का विग्रह रूप शालिग्राम हैं. वैष्णव संप्रदाय में विष्णु जी के चतुर्भुजी मूर्ति रूप के साथ निराकार एवं विग्रह रूप के पूजा की जाती है. श्री हरि के शालिग्राम रूप का वर्णन पद्म पुराण में मिलता है. पौराणिक कथा के अनुसार तुलसी जी के श्राप के कारण भगवान विष्णु हृदयहीन शिला में बदल गए थे. उनके इसी रूप को शालिग्राम कहा गया है.