Valmiki Jayanti 2025: वाल्मीकि और श्रीराम से जुड़े कुछ रोचक एवं अनछुए प्रसंग! जानें कैसे लिखी वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण!

महर्षि वाल्मीकि रामायण (रामकथा) के रचयिता ही नहीं थे, वे उस युग के नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक आदर्शों के संरक्षक भी थे. उनके और श्रीराम के बीच का संबंध केवल पात्र और लेखक का नहीं, बल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक संवाद जैसा था, जहां एक महर्षि ने ईश्वर को मानव रूप में देखा, और फिर उस कथा को अमर कर दिया.

   महर्षि वाल्मीकि रामायण (रामकथा) के रचयिता ही नहीं थेवे उस युग के नैतिकसामाजिक और आध्यात्मिक आदर्शों के संरक्षक भी थे. उनके और श्रीराम के बीच का संबंध केवल पात्र और लेखक का नहींबल्कि एक गूढ़ आध्यात्मिक संवाद जैसा थाजहां एक महर्षि ने ईश्वर को मानव रूप में देखाऔर फिर उस कथा को अमर कर दिया. वाल्मीकि और श्रीराम के संबंध में कुछ ऐसे प्रसंग हैं जो आमतौर पर मुख्य रामायण कथा में उतने लोकप्रिय नहीं हैंलेकिन वे अत्यंत भावनात्मकगूढ़ और गहराई से भरे हैं. महर्षि वाल्मीकि जयंती (07 अक्टूबर 2025) के अवसर पर आइये जानते हैं प्रभु श्रीराम और महर्षि वाल्मीकि से जुड़े कुछ अंतरंग एवं अनछुए प्रसंगों के बारे में..

वाल्मीकि और श्रीराम का प्रत्यक्ष मिलन

संस्कृत रामायण के उत्तरकांड के एक प्रसंग अनुसार श्रीराम ने जब माता सीता को वनवास दियातब देवी सीता ने वाल्मीकि के आश्रम में शरण लिया था. वहीं वह लव-कुश को जन्म देती हैं. लव-कुश वाल्मीकि के संरक्षण में बड़े होते हैं. श्रीराम जब अश्वमेध यज्ञ करते हैं, लव-कुश यज्ञ के घोड़े को रोक लेते हैं, तत्पश्चात वाल्मीकि लव-कुश को श्रीराम के पास लेकर जाते हैं. श्रीराम उन्हें आदरपूर्वक प्रणाम करते हुए उनकी विद्वत्ता का सम्मान करते हैं. यहां वाल्मीकि महज महर्षि नहींबल्कि सीता और राम के बच्चों के गुरु और अभिभावक भी थे. यह भी पढ़ें : Sharad Purnima 2025: शरद पूर्णिमा कब मनाई जाएगी 6 या 7 अक्टूबर को? जानें इसकी सही तिथि, मुहूर्त, महत्व एवं पूजा-विधि!

वाल्मीकि ने कब की थी रामायण की रचना

माना जाता है कि वाल्मीकि ने रामायण की रचना श्रीराम के जीवनकाल में ही की थी. वस्तुतः जब वाल्मीकि लव-कुश को लेकर श्रीराम के दरबार में पहुंचे, तो दोनों बच्चों ने श्रीराम कथा का गान शुरु किया. भगवान श्रीराम अपनी ही कथा दो अनजान बच्चों से सुनकर विस्मित रह गए थे, क्योंकि उस समय तक उन्हें नहीं पता था कि उन्होंने जिस लव-कुश को बालपन से ज्ञान और शस्त्र शिक्षा दी वे रघुकुल के तिलक थे. कहते हैं कि लवकुश के उन्हीं गान को वाल्मीकि ने रामायण का आधार बनाते हुए रामायण लिखी.

डाकू से महर्षि बनने की यात्रा

वाल्मीकि का मूल नाम रत्नाकर था. माता-पिता की परवरिश के लिए वह लोगों को लूटते थे. एक बार नारद मुनि से मिलने के बाद उन्होंने आत्मचिंतन किया और कठोर तपस्या की. यहीं वह रत्नाकर से वाल्मीकि बने. गए. माना जाता है कि यदि नारद मुनि उन्हें मार्ग न दिखातेतो वह रत्नाकर से वाल्मीकि नहीं बन पाते और ना ही रामायण नहीं लिख पाते. इस तरह अप्रत्यक्ष रूप से नारदश्रीराम और वाल्मीकि के जीवन में सेतु बने.

श्रीराम के प्रति वाल्मीकि का आध्यात्मिक दृष्टिकोण

 महर्षि वाल्मीकि ने राम को महज एक राजा नहींबल्कि मर्यादा पुरुषोत्तम और आदर्श मानव के रूप में प्रस्तुत कियावाल्मीकि ने अपने रामायण में राम को एक मानव रूप में ईश्वरीय गुणों से युक्त बताया है, वहीं तुलसीदास ने रामचरितमानस में श्रीराम को भगवान के रूप में प्रस्तुत किया है. यह अंतर श्रीराम के स्वरूप को व्यापक बनाता है.

सीता का धरती में समा जाना

श्रीराम ने सीता की अग्निपरीक्षा के बाद उन्हें पुनः स्वीकारना चाहातब सीता ने धरती माता से उन्हें स्वीकारने की प्रार्थना की, और तब पृथ्वी ने उन्हें अपने गर्भ में समा लिया. मान्यता है कि यह विलक्षण घटना वाल्मीकि के सामने घटित हुई. वाल्मीकि का यह कहना कि सीता पवित्र है, ही उसकी अंतिम गवाही बनता है. वाल्मीकि ही सही मायने में माता सीता के संरक्षक और न्याय के प्रहरी थे.

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