ग्रहों के राजा सूर्यदेव के पुत्र शनिदेव को दंडाधिकारी के तौर पर जाना जाता है, जो हर इंसान को उसके कर्मों के आधार पर फल देते हैं. वैसे तो देशभर में शनिदेव के अनगिनत मंदिर हैं जहां अपनी हाजिरी लगाकर भक्त उनकी कृपा प्राप्त करने की कामना करते हैं, लेकिन भारत में एक छोटा सा गांव ऐसा भी है जिसकी रक्षा स्वयं शनिदेव करते हैं. इस गांव की सबसे खास बात तो यह है कि यहां किसी भी घर या वाहन पर कोई ताला नहीं लगाता, बावजूद इसके न तो उनके घर में कोई चोरी होती है और न ही उनके मन में असुरक्षा को लेकर कोई चिंता सताती है. आखिर भारत का वो कौन सा गांव है जिसकी रक्षा स्वयं शनिदेव करते हैं और उससे जुड़ी मान्यता क्या है, चलिए जानते हैं.
महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव
महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित शिंगणापुर गांव की यह खासियत है कि आज भी इस गांव के किसी भी घर में ताला या कुंडी नहीं लगाई जाती. यहां तक कि यहां के घरों और दुकानों में दरवाजे भी नहीं हैं. इसके अलावा यहां के लोगों को अपने जेवर, पैसे या कीमती सामानों को तिजोरी में बंद करके रखने की भी जरूरत महसूस नहीं होती. इस गांव के लोगों की मान्यता है कि आज भी स्वयं शनिदेव उनके गांव की रक्षा करते हैं और ऐसे रक्षक के होते हुए भला कोई चोरी कैसे कर सकता है. यहां के लोग कहते हैं कि अगर कोई चोरी करता भी है तो वो इस गांव से बाहर ही नहीं निकल पाता और वो शनिदेव के कोप का शिकार होता है.
यहां है शनिदेव का अद्भुत मंदिर
शिंगणापुर गांव में शनिदेव का एक अद्भुत मंदिर स्थित है, जिसे शनि शिंगणापुर धाम के नाम से जाना जाता है. शिंगणापुर के इस चमत्कारी शनि मंदिर में देश ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी भक्त आकर अपनी हाजिरी लगाते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, शनिदेव का जन्म ज्येठ मास की अमावस्या को इसी गांव में हुआ था. यही वजह है कि शनिवार के दिन और हर अमावस्या को यहां भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. इसके अलावा शनि जयंती और शनिश्चरी अमावस्या पर इस मंदिर में विशेष प्रबंध किए जाते हैं. यह भी पढ़ें: भारत का एक ऐसा गांव जहां कोई नहीं करता हनुमान जी की पूजा, जानें कारण
इस मंदिर से जुड़ी ऐतिहासिक मान्यता
शनि शिंगणापुर में स्थित शनिदेव की काले रंग की पाषाण प्रतिमा स्वयंभू मानी जाती है. इस प्रतिमा को लेकर एक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार पाषाण की यह प्रतिमा एक गड़ेरिए को मिली थी और शनिदेव ने उसे इस शिला को खुले परिसर में रख कर इस पर तेल द्वारा अभिषेक करने का आदेश दिया था. शनिदेव के इस आदेश के बाद उस गड़ेरिए ने इस प्रतिमा को यहां स्थापित किया, तब से यहां खुले में ही शनिदेव के पूजन और तेल से अभिषेक करने की यह परंपरा चली आ रही है.