Shani Jayanti 2020: सूर्यपुत्र शनिदेव (Shani Dev) को लेकर तमाम तरह की भ्रांतियां प्रचलित हैं. विशेषकर यह कि शनिदेव शीघ्र कुपित होकर अनिष्ट कर देते हैं, लेकिन वास्तुशास्त्री इसे मिथ्य मानते है. उनके अनुसार शनि अत्यंत न्यायप्रिय देवता हैं. आज शनि जयंती के अवसर पर हम शनिदेव के मूल पहचान के साथ इनके पूजा-अनुष्ठान पर बात करेंगे.
हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह को अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाई जाती है. इस दिन शनिदेव की विधिवत पूजा-अनुष्ठान की जाती है. जिन लोगों पर 'शनि की साढ़े साती' अथवा 'शनि की ढ़ैय्या' जैसे दोष होते हैं, उनके लिए यह दिवस विशेष मायने रखता है. क्योंकि इस दिन शनि की शांति-पूजा कराने से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.
शनि का महात्म्य
हिंदू धर्म ग्रंथों में शनि को कर्मफलदाता, दंडाधिकारी और न्यायप्रिय बताया गया है, वे अपनी दृष्टि मात्र से राजा को रंक बना सकते हैं. पुराणों में शनि को देवता तो वास्तुशास्त्र में नवग्रहों के प्रमुख ग्रह के रूप में भी पूजा जाता है. शनि को हमारे कर्मों और न्याय का देवता माना जाता है. हमारे अच्छे या बुरे कर्मों पर शनि का नियंत्रण होने से शनि की महत्ता बढ़ जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 22 मई यानी आज मनाई जाएगी शनि जयंती.
कौन हैं शनिदेव
पौराणिक ग्रंथों में शनिदेव को सूर्यदेव तथा छाया (संवर्णा) का पुत्र बताया गया है. मान्यता है कि ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन इनका जन्म हुआ था. इन्हें क्रूर ग्रह भी माना जाता है, इसकी वजह इनकी पत्नी की शाप बताई जाती है. ज्योतिष के अनुसार 9 ग्रहों में शनि का स्थान 7वां है. ये किसी भी एक राशि पर कम से कम तीस महीने (ढैय्या) तक रहते हैं तथा मकर और कुंभ राशि के स्वामी कहे जाते हैं. शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है. ज्योतिषियों के अनुसार शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से 95वें गुणा ज्यादा मानी होती है.
मान्यता है कि इसी गुरुत्व बल के कारण जातक के अच्छे और बुरे कर्म अति शीघ्रता से शनि को प्राप्त होते हैं, और शनि उसी गति से कर्मों का निवारण करते हैं. इसीलिए शनि को न्यायप्रिय राजा कहा जाता है. वास्तुशास्त्री पूरे आत्मविश्वास से कहते हैं कि अगर आप बुरे कर्मों में लिप्त नहीं हैं तो आपको शनि से भयाक्रांत होने की जरूरत नहीं है. अलबत्ता अगर आप शनि को प्रसन्न कर लेते हैं तो आप सारे संकटों से मुक्ति पा सकते हैं. शनि यदि कुंडली में उत्तम अवस्था में है तो इंसान को बहुत कम समय मे बड़ी सफलता दिलाता है. इसलिए शनि को हर संभव प्रयास करके प्रसन्न करना चाहिए.
ऐसे करें शनिदेव को प्रसन्न!
* सदा सत्य बोलें और अनुशासित रहें.
* कमजोर और निर्बल की सेवा करें. उन्हें बताएं नहीं.
* बड़े बुजुर्गों की सेवा सम्मान करें. इनके लिए अपशब्दों का इस्तेमाल न करें.
* फलदार एवं लंबी आयु वाले वृक्ष उगाएं.
* भगवान शिव अथवा कृष्ण की नियमित एवं नियमपूर्वक उपासना करें.
* पक्षियों के लिए को दाना और पानी की व्यवस्था करें.
* शनिदेव के साथ-साथ हनुमान जी की भी पूजा करें.
* शनि जयंती या शनि पूजन के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें.
* गरीब अथवा जरूरतमंदों को काली वस्तुएं दान करें.
कैसे करें शनिदेव का पूजा-अनुष्ठान
हिंदु पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन शनि जयंती मनाई जाती है. इस दिन प्रातःकाल उठें. स्नान-ध्यान के पश्चात एक चौकी पर काले रंग का वस्त्र बिछाएं. इस पर शनि देव की प्रतिमा स्थापित करें. यदि प्रतिमा अथवा तस्वीर उपलब्ध न हो तो प्रतीक स्वरूप एक सुपारी रखकर तेल का दीपक और धूप जलाएं. तत्पश्चात पंचगव्य, पंचामृत, इत्र इत्यादि से स्नान करायें.
अब सिंदूर, कुमकुम, काजल, अबीर, गुलाल, नीले या काले फूल शनिदेव को अर्पित करें. तेल से बने प्रसाद, श्रीफल एवं अन्य फल अर्पित करें. पंचोपचार पूजन की इस प्रक्रिया के बाद शनि-मंत्र का जाप करें. इसके बाद शनि चालीसा पढ़े. पूजा का समापन शनिदेव की आरती उतार कर करें.