Pitru Paksha 2018: भारत के इस तीर्थ स्थल पर माता सीता ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान
माता सीता (Photo Credits: Facebook)

पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष के दौरान पिंडदान, तर्पण जैसे श्राद्धकर्म किए जाते हैं. हिंदू धर्म में पिंडदान का खास महत्व बताया गया है. रामायण में पिंडदान से जुड़ी एक रोचक कहानी का जिक्र मिलता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण के 14 साल वनवास गमन के बाद पुत्र वियोग में राजा दशरथ ने प्राण त्याग दिए थे. वाल्मिकी रामायण के मुताबिक, राजा दशरथ मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार भरत और शत्रुघ्न ने किया था, लेकिन कहा जाता है कि उनका पिंडदान श्रीराम ने नहीं बल्कि माता सीता ने किया था.

पिता के पिंडदान का अधिकार वैसे तो पुत्र को होता है, लेकिन ऐसी क्या वजह थी कि श्रीराम के होते हुए माता सीता को राजा दशरथ का पिंडदान करना पड़ा था, चलिए जानते हैं इससे जुड़ी एक दिलचस्प पौराणिक कथा.

सीता जी ने किया था राजा दशरथ का पिंडदान

गया स्थल पुराण के अनुसार, राजा दशरथ की मृत्यु के बाद राम के अयोध्या में न होने पर उनके छोटे भाई भरत और शत्रुघ्न ने विधि-विधान से राजा दशरथ का अंतिम संस्कार किया था, फिर भी उनकी आत्मा को शांति नहीं मिली, क्योंकि उनकी आत्मा तो श्रीराम में बसी थी. इस कथा के अनुसार, जब गया के फाल्गुनी नदी में श्रीराम और लक्ष्मण स्नान कर रहे थे और माता सीता नदी के किनारे बैठी हुई थीं तभी उन्हें रेत पर राजा दशरथ की छवि दिखाई दी. इस दृश्य को देखते ही माता सीता यह समझ गईं कि राजा दशरथ की आत्मा राख के माध्यम से उनसे कुछ कहना चाहती है. माता सीता से राजा दशरथ ने अपने पास समय कम होने की बात कहते हुए उनसे अपने पिंडदान की विनती की. दशरथ जी की बात सुनते ही सीता जी ने पीछे मुड़कर देखा, लेकिन श्रीराम और लक्ष्मण दोनों ही नदी में ध्यान मग्न थे. सीता ने समय न गंवाते हुए राजा दशरथ की इस इच्छा की पूर्ति के लिए फाल्गुनी नदी के तट पर पिंडदान करने का फैसला किया. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2018: गया में श्राद्धकर्म के लिए जाने से पहले जान लें ये जरूरी बातें

ये 5 जीव बने थे पिंडदान के साक्षी

माता सीता ने राजा की राख को रेत के साथ मिलाकर अपने हाथों में उठा लिया. इस दौरान उन्होंने फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को राजा दशरथ के पिंडदान का साक्षी बनाया. जैसे ही माता सीता ने पिंडदान संपन्न किया, वैसे ही स्नान करके श्रीराम और लक्ष्मण सीता जी के पास पहुंचे. दोनों के पास आने पर सीता जी ने राजा दशरथ के पिंडदान की सारी बात बता दी, लेकिन सीता की बातों पर श्रीराम को विश्वास नहीं हुआ. आखिरकार उन्हें भरोसा दिलाने के लिए सीता जी ने उन पांच जीवों को बुलाया, जो राजा दशरथ के पिंडदान के साक्षी थे.

4 जीवों को सीता जी ने दिया श्राप 

हालांकि श्रीराम को क्रोधित देखकर डर के मारे फाल्गुनी नदी, गाय, तुलसी और ब्राह्मण ने सीता द्वारा किए गए पिंडदान की बात को नकार दिया, अक्षय वट ने सत्य का साथ दिया और सीता द्वारा पिंडदान किए जाने की घटना श्रीराम से कही. जिन 4 जीवों ने झूठ बोला था, माता सीता ने उन्हें श्राप दिया. उन्होंने गाय को श्राप दिया कि वो लंबे समय तक पूजी नहीं जाएगी, फाल्गुनी नदी को श्राप दिया कि उसका पानी सूख जाएगा. तुलसी को श्राप देते हुए सीता जी ने कहा कि वो कभी गया में नहीं उग पाएगी और ब्राह्मण से सीता ने कहा कि तुम कभी संतुष्ट नहीं हो पाओगे, जबकि अक्षय वट को वरदान देते हुए सीता जी ने कहा कि तुम हमेशा पूजनीय रहोगे. जो लोग भी गया में पिंडदान के लिए आएंगे वो अक्षय वट की पूजा जरूर करेंगे और तभी उनकी पूजा सफल मानी जाएगी. यह भी पढ़ें: भारत के इन तीर्थ स्थलों पर करें पिंडदान, जन्म-मृत्यु के बंधन से पितरों को मिलेगी मुक्ति