Maha Shivratri 2020: जानें क्या है शश योग, शिव-कोप से बचने के लिए इन बातों से बचें
शिवजी की पूजा में तुलसी की पत्ती नहीं रखना चाहिए (Photo Credits: Pixabay)

Maha Shivratri 2020: शिव मंदिरों में महाशिवरात्रि की पूजा की तैयारियां शुरू हो गयी हैं. कई सालों बाद महत्वपूर्ण एवं प्रभावशाली योग बनने के कारण इस बार की महाशिवरात्रि की महिमा बढ़ गई है. इन विशेष योगों में शिवजी का व्रत, पूजा-अर्चना आदि करने के पश्चात ब्राह्मणों, साधु-संतों को वस्त्र दान करने, गायों को हरा चारा, पक्षियों को दाना खिलाने, पीपल को जल चढ़ाने से अक्षुण्य पुण्य की प्राप्ति होती है.

आइये ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश महाराज जी से जानें कि इस बार कितने साल बाद कौन-कौन से योग महाशिवरात्रि को विशेष बना रहे हैं. इन योगों का क्या असर पड़नेवाला है आम जनजीवन पर.

शश योग और संयोग साधना:

ज्योतिषियों के मुताबिक इस महाशिवरात्रि पर लगभग 59 साल बाद एक विशेष योग बन रहा है, जो साधना-सिद्धि के लिए खास रहता है. यह योग है शश योग (Shash Yog). इस दिन पांच ग्रहों की राशि पुनरावृत्ति भी होगी. शनि व चंद्र मकर राशि में, गुरु धनु राशि में, बुध कुंभ राशि में तथा शुक्र मीन राशि में विराजमान होंगे. इससे पूर्व 1961 में ऐसी स्थिति बनी थी. सामान्यतया श्रवण नक्षत्र में पड़नेवाली महाशिवरात्रि पर मकर राशि के चंद्रमा का योग ही बनता है. जबकि, इस बार शनि के मकर राशि में होने तथा चंद्र का संचार अनुक्रम में शनि के वर्गोत्तम अवस्था में शश योग का संयोग बन रहा है चूंकि चंद्रमा मन और शनि ऊर्जा का कारक ग्रह माना जाता है, इसलिए यह संयोग साधना की सिद्धि के लिए विशेष महत्व रखता है.

पंडित योगेश महाराज के अनुसार इस बार महाशिवरात्रि पर चंद्र शनि की मकर में युति के साथ शश योग बन रहा है. इस योग में शिव-पार्वती की पूजा-अर्चना को श्रेष्ठ माना गया है. इस विशेष योग में महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण और महामृत्युंजय मंत्र का जाप श्रेष्ठ फलदायक बताया जा रहा है.

शिवजी के व्रत एवं पूजन में इन चीजों का प्रयोग हरगिज न करें:

शिवजी को भोलेनाथ भी कहा जाता है. अनजाने में भी उनकी पूजा या ध्यान हो जाये तो वे भक्तों पर तुरंत प्रसन्न हो जाते हैं, लेकिन ऐसी भी मान्यता है कि वे जितनी जल्दी प्रसन्न होते हैं, रुष्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगता. उनका क्रोधित होना किसी भी जातक के लिए अत्यंत भयावह हो सकता है. ऐसे में शिवजी का पूजन अथवा व्रत रखते हुए उन बातों का जानना आवश्यक है, जो गलती से भी नहीं होनी चाहिए.

* शिवजी की पूजा में तुलसी की पत्ती नहीं रखना चाहिए. मान्यता है कि जलंधर नामक राक्षस की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी का जन्म हुआ था, जिसे श्रीहरि ने पत्नी के रूप में स्वीकारा था.

* शिव पूजन में करताल नहीं बजाना चाहिए, क्योंकि शिवजी का प्रिय वाद्य डमरू है.

* शिव जी के पूजन में खुशबूवाले ये पुष्प केसर, मालती, चंपा, चमेली, कुंद, जूही और दुपहरिका नाम पुष्प नहीं चढ़ाना चाहिए.

* हिंदू धर्म में मान्यता है कि तिल की उत्पत्ति भगवान विष्णु के मैले से हुआ था, इसिलिए शिव जी की पूजा में तिल नहीं चढ़ाना चाहिए.

* शिवजी ने शंखचूड़ नामक राक्षस का संहार किया था, और शंख को उसी राक्षश का प्रतीक माना जाता है, इसलिए शिवजी की पूजा आदि में शंख का प्रयोग नहीं करना चाहिए.

* शिव जी को टूटे हुए चावल अर्पित नहीं करना चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में वर्णित है कि टूटे चावल पूजा के दृष्टिकोण से अशुद्ध एवं अपूर्ण होते हैं.

* शिवजी को कुमकुम नहीं चंदन चढ़ाना चाहिए क्योंकि शिवजी वैरागी हैं, और कुमकुम को सौभाग्य का प्रतीक माना गया है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.