Friday Namaz Importance: मुसलमान शुक्रवार को नमाज क्यों अदा करते हैं, जानें क्यों जरूरी होती है जुम्मे की नमाज
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: IANS)

इस्लाम धर्म में नमाज का बहुत महत्व है. अल्लाह को समय पर याद करने और उनकी इबादत को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मुस्लिम धर्म को मानने वाले वैसे तो दिन में 5 बार नमाज पढ़ते हैं. लेकिन किसी कारणवश अगर कोई रोजाना नमाज के लिए वक्त नहीं निकाल पा रहा हो, तो उसे हर जुम्मे को मस्जिद में जाकर अल्लाह की इबादत करना होता है. अब प्रश्न उठता है कि खुदा को याद करने और प्रार्थना के लिए शुक्रवार का दिन क्यों ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है? नमाज क्या है और नमाज की पूर्णता कब और कैसे होती है, आज इसी विषय पर बात करेंगे? जुम्मे के दिन का महत्व! इस्लाम धर्म में शुक्रवार के दिन को जुम्मे का दिन कहा जाता है, और जुम्मे का बहुत महत्व है. जानकारों के अनुसार जुम्मे के दिन को अल्लाह के दरबार में रहम का दिन माना जाता है.

मान्यता है कि इस दिन नमाज ( प्रार्थना) पढ़ने वाले इंसान की पिछले पूरे हफ्ते की गल्तियों को अल्लाह माफ कर देता है, नमाज के लिए एक जगह एकत्र होने की एक वजह यह भी बताई जाती है कि नमाज पढ़ने के लिए लोग एकत्र होकर अपने सुख-दुख और परेशानियों को शेयर करते हैं ताकि संयुक्त रूप से वे सभी बेहतर जीवन जी सकें. इसलिए इस दिन को सौहार्द यानी भाईचारे को समर्पित दिन भी माना जाता है. इसीलिए इसे जुमाया प्रार्थना भी कहा जाता है. नमाज के लिए जुम्मे (शुक्रवार) का दिन ही क्यों? इस्लाम धर्म की मान्यताओं के अनुसार जुम्मे के दिन का चुनाव स्वयं अल्लाह ने किया था, उन्होंने इस दिन को हफ्ते का सर्वश्रेष्ठ दिन बताया था, यही नहीं अल्लाह ने ही साल में एक महीना रमजान के लिए नियुक्त किया था.

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अल्लाह द्वारा जुम्मे के दिन का चुनाव करने के पीछे एक वजह यह भी है कि जुम्मे (शुक्रवार) के दिन ही अल्लाह ने 'आदम' का निर्माण किया था और इसी दिन 'आदम' का इंतकाल भी हुआ था. 'आदम' जन्म के बाद धरती पर आये थे, इसीलिए जुम्मे के दिन उसी एक घंटे में नमाज पढ़नी चाहिए. इस्लाम धर्म के अनुसार जुम्मे के दिन नमाज पढ़ने से नमाजियों की हर मुराद पूरी होती है, लेकिन इसके लिए जरूरी है कि आपकी मुराद इस्लामिक कायदे-कानून के तहत हो. जानें नमाज की पूर्णता के लिए कौन से 3 नियमों का पालन जरूरी है इस्लाम धर्म में जुम्मे की नमाज पढ़ने के 3 नियम 'गुसल', 'इत्र' और 'सिवाक' बनाए गये हैं.

इन नियमों का पालन करना जरूरी होता है

* 'गुसल' यानी नमाजियों को स्नान करने के बाद ही नमाज पढ़ना चाहिए. क्योंकि स्नान करने से शरीर पाक हो जाता है.

* 'इत्र' यानी जुम्मे के दिन इत्र (सुगंध) जरूर लगाना चाहिए, भले ही बाकी दिन आप इत्र का इस्तेमाल न करें

* 'सिवाक' का आशय यह कि दांतों को अच्छी तरह साफ करने के बाद ही नमाज पढ़ना चाहिए.

यानी जुम्मे के दिन इन तीन नियमों का पालन करने के बाद पढ़ी गयी नमाज ही खुदा तक पहुंचती है.