Ramazan Eid 2021: खुशी एक जज्बा है. इस्लाम ने हर जज्बे की कद्र की और उसे पूरा करने की तालीम दी है. इसीलिए मोहसिन-ए-इंसानियत पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammed SAW) जब मक्का से मदीना आए तो उन्होंने देखा कि यहां के लोगों ने साल में दो दिन खेलने ओर आनंद के लिए रखे हुए हैं. उन्होंने पूछा यह दोनों दिन कैसे हैं? लोगों ने बताया कि इस्लाम से पहले हम लोग इन दिनों खेलते और खुशियां मनाते थे. हज़रत अनस कहते हैं, पैगम्बर मोहम्मद ने फ़रमाया, -अल्लाह ने तुम्हारे इन दो दिनों को बेहतर दिनों से बदल दिया है. एक ईद-उल-फितर का दिन और दूसरा ईद-उल-अजहा का दिन.’ -(अबू दाऊद)
ईद के रोज जायज हद हुदूद के अंदर खुशी मनाना
ईद के दिन जायज हुदूद के अंदर खाना-पीना और खुशी मनाने को कहा है. हजरत आयशा (पैगंबर मोहम्मद की पत्नी) की रिवायत (कहती) है, -‘एक ईद के रोज हब्शी लोग नबी पैगम्बर मोहम्मद के घर के पास खेल रहे थे, मैं हुजूर के कंधे के ऊपर से झांककर देखने लगी तो उन्होंने अपने कंधे को नीचे कर लिया. मेरा जी भर गया और मैं पलट गई.’ यह भी पढ़ें : Eid Mubarak 2021 Songs: भर दो झोली मेरी, अर्जियां समेत इन दिल छू लेने वाले सूफी गीतों के साथ मनाएं ईद का त्योहार
ईद के दिन गुसल करना, खुशबू लगाना और नये कपड़े पहनना
जाफर बिन मोहम्मद अपने पिता से रिवायत करते हैं कि ‘नबी मोहम्मद ईद के दिन अपनी सबसे बढ़िया यमनी चादर ओढ़ते थे’.
ईद के पहले खजूर खाना
हजरत अनस से रिवायत है कि ईद-उल-फितर के दिन जब तक रसूल अल्लाह मोहम्मद कुछ खजूर ना खा लेते थे, ईदगाह की ओर तशरीफ नहीं ले जाते थे. और आप ताक खजूर खाते यानी 3 या 5 या 7 (मुसनाद अहमद, बुखारी) हजरत अबू सईद खद्री से रिवायत है कि पैगम्बर मोहम्मद ईद-उल-फितर के दिन जब ईदगाह तशरीफ ले जाते तो सबसे पहले जो काम आप करते, वह यह कि नमाज-ए-ईद पढ़ाते और फिर लोगों के सामने खड़े होकर खूतबा (भाषण) देते. लोग सफो की शक्ल (एक लाइन) में बैठते, आप खुतबे (भाषण) में नसीहत करते, और अल्लाह के अहसनात बताते. तबलीग (प्रचार) के लिए कहीं ग्रुप भेजना होता तो लोगों को तैयार करके रवाना करते. इसी तरह वक्त के लिहाज से कोई खास हुकुम देना होता तो वह भी देते और तभी घर तशरीफ लाते. -(बुखारी वह मुस्लिम)
खुतबे ईद-उल-फितर
हजरत अनस से रिवायत है कि पैगम्बर मोहम्मद ने फरमाया है, ‘जब उन मुसलमानों की ईद-उल-फितर का दिन होता है, जिन्होंने माह-ए-रमजान के महीने भर रोज़े रखे, रातों को इबादत करते रहे और आज नमाज-ए-ईद के लिए एक जगह इकट्ठा हुए तो अल्लाह ताला उन पर गर्व करते हुए अपने फरिश्तों को फरमाते (कहते) हैं, -‘ऐ मेरे फरिश्तों! यह बताओ कि जिस मजदूर ने अपना काम पूरा किया है क्या उसका मुआवजा (मजदूरी) होना चाहिए? फरिश्ते जवाब में कहते हैं,- ‘हमारे परवर दिगार, उसकी मजदूरी पूरी-पूरी दी जाए’. फिर अल्लाह फरमाते हैं, -‘ए मेरे फरिश्तों! तुम पर वाजह हो कि मेरे बंदों और बंदियों ने इस अजीम (सबसे बड़े) फर्ज को अदा किया, जो मैंने उन पर आयद किया था और आज बा-आवाज-बुलंद (जोर से) तकबीर कहते हुए और दुआएं मांगते हुए नमाज-ए-ईद के लिए निकले. मुझे अपने बुजुर्गों की कसम कि मैं उनकी पुकार का जवाब दूंगा और उनकी दुआएं जरूर कबूल कर लूंगा.’ अल्लाह ताला अपने बंदों को मुखातिब करते हुए फरमाते हैं, तुम अपने घरों को लौटो, मैंने तुम्हारे गुनाह बख्श (माफ) दिए और तुम्हारी बुराइयों को अच्छाइयों तथा नेकियों से बदल दिया है, इसलिए जब वह अपने घरों को वापस लौटते हैं तो बख्शे (माफ किये) हुए होते हैं.
सदके फितर
हजरत अमर बिन शोएब अपने पिता से रिवायत (कहते) करते हैं कि पैगम्बर मोहम्मद ने एक आवाज लगाने वाले को मक्का की गलियों में यह ऐलान करने के लिए भेजा, -लोगों आगाह (होशियार) हो जाओ कि सदके फित्र हर मुसलमान पर वह चाहे मर्द हो या औरत, आजाद हो या गुलाम, बच्चा हो या बूढ़ा वाजिब (फर्ज) है और इसकी मिकदार, अगर गेहूं है तो आधा गेहूं और बाकी दूसरी चीजें जैसे मनुका, पनीर वगैरह एक सा है.
हजरत अब्दुल्लाह बिन अब्बास से मरवी है कि रसूल अल्लाह ने सदके फितर दो मकसद के लिए मुकर्रर किया है. एक तो रोज़े की छोटी-मोटी गलतियों और बेहूदा बातों के असरात से पाक करने के लिए और दूसरा मिस्किनो और गरीबों को अच्छी तरह खिलाने-पिलाने के लिए, ताकि उन्हें ईद के दिन कमी का अहसास ना हो. वे भी दूसरों के साथ ईद की खुशी में शरीक हों, और यह जरूरी है कि वह नमाज-ए-ईद से पहले अदा की जाए, अगर किसी ने नमाज के बाद दिया तो यह सदके फितर नहीं बल्कि आम सदके की तरह होगा.’ हजरत जब्रीर से रिवायत है कि हुजूर मोहम्मद ने फरमाया कि रमजान के रोजे जमीन और आसमान के बीच लटके रहते हैं और आसमान की तरफ उस वक्त तक नहीं जाते जब तक सदके फितर अदा नहीं होता.
ईद की खुशियों में यतीम बच्चे की दास्तान-ए-गम और मोहसिन इंसानियत पैगंबर मोहम्मद का करम!
मदीना की गलियों में हर तरफ चहल-पहल है. मुसलमान बूढ़े, बच्चे, जवान सभी साफ-सुथरे कपड़े पहने खुशबू लगाए ईदगह की ओर जा रहे हैं. मदीने की गलियां और रास्ते तकबीर (अल्लाहु अकबर) की आवाजों से गूंज रही है. एक रास्ते से खुदा के रसूल पैगम्बर मोहम्मद ईद की नमाज पढ़ने के लिए जल्दी-जल्दी ईदगाह जा रहे हैं. चलते-चलते एक जगह बेइख्तियार (अचानक) वे रुक जाते हैं. मदीने के बच्चे बेफिक्री से अच्छे कपड़े पहने खुशी-खुशी खेल रहे हैं. कुछ दूरी पर एक बच्चा सबसे अलग अफसुर्दा और गमगीन बैठा है. मैले-कुचैले कपड़े पहने, खेलने वाले बच्चों को बड़ी हसरत से देख रहा है. खुदा के रसूल पैगम्बर मोहम्मद इस मुसीबतजदा बच्चे के पास पहुंचे और उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा और फरमाया, -‘बेटे! तुम नहीं खेलते? तुमने कपड़े नहीं बदले? तुम इतने अफसुर्दा क्यों हो,?’ बच्चे ने सर उठाकर देखा और तुरंत निगाहें नीचे कर ली. हमदर्दी और प्यार का बर्ताव पाकर बे-इख्तियार उसकी आंखों से आंसू बहने लगे. उसने रोका और टालते हुए जवाब दिया, कोई बात नहीं. बच्चे ने लंबी सांस ली और बोला, -‘मेरी किस्मत में खुशियां और खेल कहां?, मैं तो गम खाने के लिए पैदा हुआ हूं’ यह कहते-कहते वह फूट-फूट कर रोने लगा. बच्चे को रोता देख कर रहमत-ए-आलम पैगम्बर मोहम्मद का दिल भर आया. आंखों में आंसू भर आये, लड़के को गले लगाया और फरमाया (बोले), -‘बेटे तुम्हें क्या दुख है? तुम पर क्या मुसीबत आ पड़ी है? आखिर तुम इतना अफसुर्दा क्यों हो?’ ‘आप मेरी मुसीबत की दास्तान सुनकर क्या करोगे. मैं एक यतीम बच्चा हूं. मेरे बाप नहीं हैं और मेरी मां..’ कहते हुए बच्चे की आवाज हलक में फंसने लगी. वह अपना जुमला पूरा ना कर सका. खुदा के रसूल पैगंबर मोहम्मद ने बच्चे को अपने करीब किया और फिर प्यार से बोले, ‘बेटे!, तुम्हारे मां-बाप का इंतकाल (मृत्य) कब हुआ? और तुम कहां रहते हो?’ यह भी पढ़ें : Eid Moon Sighting 2021 Live Updates: मुंबई-हैदराबाद और साउथ इंडिया में नहीं दिखा शव्वाल का चांद, अब 14 मई को मनाई जाएगी ईद-उल-फित्र
-मेरे बाप शहीद हो गए, खुदा का शुक्र है कि मेरी मां जिंदा है लेकिन उन्होंने दूसरी शादी कर ली है, और मेरे बाप का छोड़ा हुआ सारा सामान लेकर नए घर चली गई, मैं भी खुशी-खुशी मां के साथ चला गया, मगर कुछ ही दिन वहां रहा था कि मेरे दूसरे बाप ने मुझे घर से निकाल दिया. अब मेरा ना कोई घर है, और ना वली, ना ही कोई सरपरस्त (घर का प्रमुख). मुझ पर तरस खाने वाला कोई भी नहीं है, मेरा कोई भी नहीं है. लड़के की हिचकी बंध गई. मेरी अम्मी भी कुछ नहीं कर सकती, वे मुझसे बहुत प्यार करती हैं, लेकिन वे मजबूर हैं, वे अब कुछ नहीं कर सकतीं.
-बच्चे का हाल सुनकर, पैगंबर मोहम्मद की आंखें बेइख्तियार बहने लगी. वे कुछ देर आंसू बहाते रहे, यतीम बच्चे के सर पर हाथ फेरकर अपनी हालत पर काबू पाया, फिर निहायत मोहब्बत से कहा, ‘बेटे! क्या यह तुम पसंद करोगे कि पैगम्बर मोहम्मद तुम्हारे अब्बा हों!, आयशा तुम्हारी मां हो!, फातिमा तुम्हारी बहन हो! और हसन हुसैन तुम्हारे भांजे हों? मोहम्मद और फातिमा का नाम सुनकर बच्चा संभला, -उसने हैरत और अकीदत से आपके नूरानी चेहरे को देखा और फिर निहायत एहतराम से निगाहें नीचे कर ली. कुछ देर खामोश रहकर, निहायत अदब से बोला या रसूल अल्लाह! माफ फरमाइए मैं आपको पहचान ना सका, और पहली बार मैंने आपको लापरवाही से जवाब दिया.’ -‘नहीं बेटे कोई बात नहीं’, खुदा के रसूल पैगम्बर मोहम्मद ने बच्चे को तसल्ली दी. ‘या रसूल अल्लाह! मेरे मां-बाप हजार बार कुर्बान हैं, खुदा के रसूल पैगम्बर मोहम्मद और हजरत आयशा जैसी मां कहां मिलेगी? फातिमा से अच्छी बहन और हसन हुसैन से अच्छे भांजे कहां मयस्सर (मिलेंगे) होंगे? मुझसे ज्यादा खुशनसीब कौन होगा कि मुझे खुदा के रसूल का खानदान मिल रहा है? या रसूल अल्लाह (पैगम्बर मोहम्मद) मैं दिल और जान से आप की खिदमत करूंगा. लड़का कहता रहा और उसकी आंखों से खुशी के आंसू बहते रहे. यतीमों के वली पैगम्बर मोहम्मद ने उसका हाथ पकड़ा, अपने घर लाए और हजरत आयशा से फरमाया, ‘लो आयशा खुदा ने ईद के दिन तुम्हें एक बेटा दिया है. अपने बेटे को नहला-धुला कर कपड़े पहनाओ, और खिलाओ. आयशा का चेहरा खुशी से खिल उठा.लड़का आखिरी वक्त तक पैगम्बर मोहम्मद की खिदमत में रहा. आखिर, रसूल की रुखसत (जाने) का वक्त आ पहुंचा. आप दुनिया से पर्दा फरमा गए. लड़के का रो-रो कर बुरा हाल था. वह कह रहा था, ‘आज मैं यतीम हो गया’ पैगम्बर के दोस्त अबू बकर ने जब लड़के की हालत देखी तो उन पर भी रीक्कत तारी हो गई, बड़े प्यार से लड़के का हाथ पकड़ा और फरमाया (कहा), ‘आज से तुम हमारे साथ रहोगे’ वह लड़का अबूबकर सिद्दीक की सरपरस्ती (नेतृत्व) में चला गया.’
यह लेख Munazza Shaikh ने लिखा है जो पेशे से ऑडियोलॉजिस्ट और स्पीच थेरेपिस्ट हैं.
नोट: यह लेख लेखक के विचार और रिसर्च पर आधारित है. LatestLY इसकी पुष्टि नहीं करता है.