आध्यात्म से लेकर भक्तिकालीन कवियों की रचनाओं तक में सबसे ज्यादा प्रेम प्रसंग की पंक्तियां राधा-कृष्ण के प्रेम से रची-बसी होती हैं. कहते हैं जहां कृष्ण हैं वहीं राधा भी हैं. दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब दोनों के बीच इतना गहरा प्रेम था तो उन्होंने विवाह क्यों नहीं किया. आखिर राधा थीं कौन? उनका अंत कहां, कब और कैसे हुआ? क्या राधा का कोई अस्तित्व था भी या महज कवियों की कल्पना मात्र थीं?
राधा के जन्म का मर्म
ब्रह्मवैवर्त पुराण में राधा के जन्म से जुड़ा एक अद्भुत प्रसंग मिलता है. इस प्रसंग के अनुसार राधा भी श्रीकृष्ण की तरह अनादि और अजन्मी हैं. क्योंकि राधा का जन्म मां के गर्भ से नहीं हुआ था. श्रीकृष्ण के सखा सुदामा के साथ एक घटना क्रम में राधा को वृषभानु और कीर्ति की पुत्री के रूप में जन्म लेना पड़ा. हालांकि उनका जन्म कीर्ति के गर्भ से नहीं हुआ था. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब राजा वृषभानु यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे, तब उन्हें भूमि पर एक कन्या मिली. राजा उसे अपने घर ले आए और उसे अपनी दत्तक पुत्री बना लिया. यह राधा ही थीं, जिन्हें लक्ष्मी जी का अवतार माना जाता है.
राधा-कृष्ण के रहस्यमय रिश्ते
कुछ विद्वानों के अनुसार राधा का जन्म यमुना के निकट रावल गांव में हुआ था, लेकिन बाद में उनके पिता बरसाने में बस गए. यहीं पर पली-बढ़ी राधा लाडली के नाम से लोकप्रिय थीं. बरसाने में राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के (प्रकृति खंड) अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है कि राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह माता यशोदा के भाई रायाण से हुआ था. ब्रह्मवैवर्त पुराण (ब्रह्म खंड) के अनुसार राधा को श्रीकृष्ण की पुत्री के रूप में दर्शाया है. राधा का पति रायाण गोलोक में श्रीकृष्ण का साथी गोप था, इस रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधु हुईं. कुछ जगहों पर राधा को लक्ष्मी का अवतार भी बताया गया है.
राधा-कृष्ण की पहली मुलाकात
मान्यता है कि नंद बाबा अक्सर श्रीकृष्ण को भंडिर ग्राम स्थित बाजार में लेकर जाते थे. एक बार दोनों बाजार में घूम रहे थे, तभी उन्हें एक दिव्य और अलौकिक कन्या दिखी. यह राधा थीं. राधा-कृष्ण दोनों ने ही यहां पहली बार एक दूसरे को देखा और उन्हें प्यार हो गया. इस स्थल को बाद में ‘संकेत तीर्थ’ कहा जाने लगा था, जो नंदगांव और बरसाने के बीच स्थित है. सैकड़ों सालों से यहां भाद्रपद की अष्टमी से अनंत चतुर्दशी तक राधा जी का जन्मदिन मनाया जाता है. इस दिन यहां राधाष्टमी का दिव्य मेला लगता है.
राधा-कृष्ण की प्रेम-गाथा का मूक गवाह वृंदावन
विष्णु पुराण के अनुसार वृंदावन में कृष्ण-लीलाओं की काफी गाथाएं उल्लेखित हैं. कहते हैं कि यहीं पर श्रीकृष्ण और राधा यमुना के एक घाट पर स्नान करते थे. यहीं पर श्रीकृष्ण गोपियों संग हंसी-ठिठोली करते थे. तीज-त्यौहारों पर श्रीकृष्ण गोपियों संग रासलीला करते थे. यहीं पर कदंब के वृक्ष के नीचे कृष्ण की दीवानी राधा उनकी बांसुरी सुनने आती थीं. वृंदावन में यमुना तट से राधा-कृष्ण के प्रेम की कई गाथाएं जुड़ी हैं.
सांकेतिक तीर्थ पर हुआ था राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह!
ब्रह्मवैवर्त पुराण (प्रकृति खंड) के अध्याय 48 के अनुरूप और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि की गर्ग संहिता के कथा के अनुसार कृष्ण और राधा का विवाह बचपन में ही हो गया था. बताया जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण नंद बाबा के साथ भंडिर गांव गए हुए थे कि अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा. अचानक चारों ओर अंधेरा छा गया. इसी अंधेरी रात में एक दिव्य शख्सियत का रूप उभरा. वह राधा ही थीं. राधा को देख श्रीकृष्ण ने भी बाल रूप को छोड़कर किशोर रूप धारण कर लिया. तब इसी सांकेतिक तीर्थ के वन में ब्रह्माजी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया. विवाह के बाद ही जब माहौल सामान्य हुआ तब तक राधा, ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए.
क्या कहते हैं पौराणिक ग्रंथ
पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित है कि रुक्मणी का जन्म कृष्णपक्ष की अष्टमी को हुआ था. श्रीकृष्ण का जन्म भी कृष्णपक्ष की अष्टमी को ही हुआ था. उधर राजा वृषभानु के यहां राधा का भूमि से अवतरण भी अष्टमी के दिन हुआ था. फर्क सिर्फ यही है कि रुक्मणी का जन्म कृष्णपक्ष और राधा का शुक्लपक्ष में हुआ था. राधा को महर्षि नारद के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा, जबकि रुक्मणी से कृष्णजी की विधि-विधान से शादी हुई थी. यद्यपि दोनों को ही लक्ष्मी जी का अंश माना जाता है.
कृष्ण ने क्यों की राधा से बेवफाई?
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार राधा-कृष्ण के बीच बालपन में ही प्यार हो गया था. उस समय कृष्ण 8 तथा राधा 12 वर्ष की थीं. राधा-कृष्ण के प्रेम की यह कहानी जब राधा के परिवार तक पहुंची, तो उन्होंने राधा को घर में कैद कर दिया. क्योंकि राधा की मंगनी हो चुकी थी. श्रीकृष्ण को यह बात पता चली तो वह उऩ्हें कैद से छुड़ाकर मां यशोदा के पास ले आए. राधा को देख यशोदा ने कृष्ण को समझाया, लल्ला राधा के साथ तेरा विवाह मेल नहीं खाता. मैं तेरा विवाह उससे भी खूबसूरत कन्या से करवा दूंगा, लेकिन श्रीकृष्ण ने कहा, मैं तो राधा से ही विवाह करूंगा. नंदबाबा कृष्ण को लेकर महर्षि गर्ग के पास लेकर गए. महर्षि ने उन्हें समझाया कि तुम्हारा जन्म किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए हुआ है. इसलिए सारी मोह-माया छोड़ कर अपने उद्देश्य को पूरा करो. उसी समय कृष्ण को मथुरा का बुलावा आ गया. बहुत दुःखी मन से कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए. जाते-जाते उन्होंने राधा से वादा किया कि वे लौटकर जरूर आएंगे, लेकिन मथुरा में कंस को मारने के पश्चात श्रीकृष्ण का जीवन पूरी तरह से बदल चुका था. इस वजह से वह मथुरा से वृंदावन वापस नहीं लौटे.
नारद का श्राप और राधा-कृष्ण का विरह!
रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक घटना क्रम में विष्णुजी ने नारदजी को छल से वानर बना दिया था. इससे उनका उपहास तो उड़ा ही साथ ही लक्ष्मी जी के साथ विवाह करने की उनकी इच्छा लोगों के उपहासों में दबकर रह गई. नारदजी को जब सच्चाई पता चली तो उन्होंने वैकुंठ पहुंच कर श्रीहरि को श्राप देते हुए कहा कि उन्हें 'पत्नी का वियोग सहना पड़ेगा'. इसी वजह से राम अवतार में विष्णु जी को सीता और कृष्ण अवतार में राधा का वियोग सहना पड़ा था.
राधा की मृत्यु के बाद कृष्ण ने बांसुरी तोड़कर फेंक दी
कहते हैं कि कृष्ण के मथुरा जाने के बाद उनकी विरह में राधा एक जंगल में रहने लगी थीं. गुजरते समय के साथ वे नितांत अकेली होती गईं और वे कमजोर भी हो गईं थीं. एक दिन उन्हें श्रीकृष्ण की बहुत याद आ रही थी. श्रीकृष्ण उनके सामने तुरंत प्रकट हुए और कहा कि अपने लिए कुछ भी मांगो, पहले तो राधा ने मना कर दिया, लेकिन कृष्ण द्वारा बार-बार कहने पर राधा ने कहा कि जीवन के आखिरी पलों में वे उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं. श्रीकृष्ण बांसुरी की सुरीली धुन बजाने लगे. कहते हैं, बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा ने अपना देह त्याग दिया. राधा की मृत्यु के पश्चात श्रीकृष्ण उनका वियोग नहीं सह पाए. उन्होंने अपनी बांसुरी तोड़कर फेंक दी. कहते हैं कि इसके पश्चात उन्होंने कभी बांसुरी नहीं बजाई!