Radhashtami 2019: कब मनाया जाएगा बरसाना की राधा रानी का जन्मोत्सव, जानिए राधाष्टमी का महत्व, व्रत और पूजा विधि
राधाष्टमी 2019: Photo Credits (Facebook)

Radhashtami 2019 Date: हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी को ‘राधाष्टमी’ (Radhashtami) के नाम से मनाया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 6 सितंबर 2019 को दिन मनाया जाएगा. इस पर्व विशेष पर मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा-रानी मंदिरों (Radha Rani Temple) में इस उत्सव की भव्यता देखते बनती है. राधाष्टमी के दिन वृन्दावन के 'राधा बल्लभ मंदिर' में गोस्वामी समाज के लोग भक्तिभाव में झूम उठते हैं. मंदिर का परिसर स्थानीय स्त्री-पुरुषों के इस गान ‘राधा प्यारी ने जन्म लिया है, कुंवर किशोरी ने जन्म लिया है’ से गूंजायमान हो उठता है. इस पर्व पर मंदिर में बने हौदों में हल्दी मिली दही भर दिया जाता है. और शुभ मुर्हूत के शुरू होते ही इसे गोस्वामी समाज के युवाओं एवं युवतियों पर डाला जाता है. दही के संपर्क में आते ही गोस्वामी समाज के युवा झूम उठते हैं और राधा-कृष्ण (Radha Krishna) के प्रेम गीत गाकर अपनी प्रसन्नता जताते हैं. इसके बाद राधा जी के भोग के लिए मंदिर के कपाट कुछ देर के लिए बंद कर दिये जाते हैं. थोड़ी देर बाद पट खुलता है तो राधा जी की आरती होती है.

इसके अलावा इस पर्व विशेष पर भक्तगण मथुरा स्थित बरसाने की ऊंची पहाड़ियों के गहवर वन की परिक्रमा भी करते हैं. राधा जी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में जगह-जगह राधा-कृष्ण मंदिरों में सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक कार्यक्रम, कीर्तन-भजन-प्रवचन इत्यादि आयोजित किये जाते हैं. इन कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर के गांव से यहां आते हैं.

राजा वृषभानु को भूमि-कन्या के रूप में मिली राधा

राधाष्टमी कथा वस्तुतः कृष्ण जी की दीवानी राधा जी के जन्म से संबंधित है. पद्म पुराण में भी उल्लेखित है कि राधा महाराज वृषभानु की पुत्री थीं. उनकी माँ का नाम कीर्ति था. पद्म पुराण के ही अनुसार एक दिन जब महाराज वृषभानु विशाल यज्ञ के आयोजन के लिए यज्ञ स्थल की साफ-सफाई करवा रहे थे, तब उन्हें एक नवजात कन्या मिली थीं. वृषभानु इस कन्या को अपने साथ घर ले लाए, और उसका नाम राधा रखा. उन्होंने राधा को अपनी दत्तक पुत्री मानकर उसकी परवरिश की.

लक्ष्मी स्वरूपा थीं राधा रानी !

मान्यता है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लेते समय अपने परिवार के दूसरे सदस्यों से भी पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दिया था. कहा जाता है कि भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी भी राधा के रूप में पृथ्वी पर अवतरित हुईं. ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की सखी थीं, लेकिन उनका विवाह रापाण (रायाण) नामक व्यक्ति के साथ हुआ था. ऐसी मान्यता है कि राधा जी अपने जन्म के समय ही बालिग रूप में परिवर्तित हो गयी थीं. राधा को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है.

राधाष्टमी का महात्म्य

वेद एवं पुराणों में राधा का गुणगान ‘कृष्ण वल्लभा’ के रूप में किया गया है. मान्यता है कि राधा जी के जन्म की कथा सुनने या सुनाने से मनुष्य सुखी, धनी और सर्वगुण संपन्न बनता है एवं मोक्ष को प्राप्त करता है. कहा जाता है कि श्री राधा की पूजा न की जाए तो मनुष्य श्रीकृष्ण की पूजा का अधिकार भी नहीं रखता. क्योंकि राधा श्रीकृष्ण के प्राणों की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं. यह भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2019: कृष्ण जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर कान्हा के जन्म की कथा सुनने और सुनाने का है खास महत्व

कैसे करें राधाष्टमी की पूजा

भाद्रपद के शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन राधा जी के नाम पर उपवास रखा जाता है. प्रातःकाल स्नानादि से फारिग होकर राधा जी की पूजा-अर्चना की जाती है. अपराह्न काल में एक स्वच्छ चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर राधा जी की प्रतिमा को स्थापित करते हैं. उन्हें घी, दूध, दही, शहद एवं शक्कर (पंचामृत) से स्नान कराते हैं. इसके पश्चात उन्हें शुद्ध गंगा जल से स्नान करवाकर उनका साज-श्रृंगार किया जाता है. इसके पश्चात पूरे विधि-विधान से राधा जी की पूजा-अर्चना करते हैं. धूप एवं दीप जलाते हैं, और कपूर से आरती करने के बाद भोग लगाया जाता है. मथुरा एवं इससे जुड़े संभागों में राधा-कृष्ण की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है. नारद पुराण के अनुसार राधाष्टमी का व्रत करने वाले भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य से परिचित हो जाते हैं, तथा जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करता है, वह जाने-अनजान हुए सभी पापों से मुक्त हो जाता है.