हिंदू धर्म शास्त्रों में श्राद्ध पर्व का विशेष महत्व माना गया है. यह पर्व प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि से आश्विन मास की अमावस्या यानी 16 दिनों तक मनाया जाता है.
हिंदू धर्म में मान्यता है कि माता-पिता की सेवा करने वाले संतान को जीवन में कभी कष्ट नहीं होता. उनके देहावसान के बाद भी उनकी संतानें उनकी आत्मा की शांति के लिए भाद्रपद शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तक उनका श्राद्ध कर्म आदि करते हैं, ब्राह्मणों एवं रीति-रिवाजों के अनुसार गाय, कुत्तों एवं कौवों को भोजन खिलाते हैं. मान्यतानुसार ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं. जो संतानें यह कार्य नियमित रूप से करते हैं, पितर उनसे प्रसन्न होकर उन्हें सुख, शांति, समृद्धि एवं अच्छी सेहत का आशीर्वाद देते हैं. उन पर कभी पितृदोष नहीं लगता. इस वर्ष 20 सितंबर से पितृपक्ष प्रारंभ हो रहा है, और 6 अक्टूबर 2021 को अमावस्या के दिन पितरों की विदाई होगी.
पितृपक्ष का महात्म्य!
बह्म पुराण में उल्लेखित है कि देवों से पहले इंसान को अपने पूर्वजों को प्रसन्न करने की कोशिश करनी चाहिए. हमारे देश में वैसे भी परिवार के वयोवृद्ध लोगों को विशेष महत्व देने की परंपरा है. यहां तक कि उनकी मृत्यु के पश्चात भी उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध कर्म की परंपरा है. ब्रह्म पुराण के अनुसार जब वृद्ध माता-पिता की मृत्यु हो जाती है तो उनकी आत्मा पृथ्वीलोक पर ही भटकती रहती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृपक्ष इसीलिए मनाया जाता है कि संतान को पितृ-दोष से मुक्ति मिले. जो व्यक्ति पितृ दोष से पीड़ित होता है, उसे जीवन में कभी भी सफलता नहीं मिलती. इस दोष से मुक्ति पाने के लिए पितरों की शांति बहुत आवश्यक है. पितरो की आत्मा की शांति के लिए हर साल भाद्रपद शुवल पूणिमा से लेकर अश्विन कृष्ण अमावस्या तक के समय पितृपक्ष श्राद्ध होता है. मान्यता है की पितृपक्ष के दिनों में यमराज भी पितृ को स्वतंत्र कर देते हैं, ताकि वे अपने परिजनो से श्राद्ध प्राप्त कर सकें. पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म एवं तर्पण करने से पितरों को मुक्ति मिलती है. गौरतलब है कि श्राद्ध तीन पीढ़ियों तक का होता है. दरअसल, देवतुल्य स्थिति में तीन पीढ़ियों के पूर्वज गिने जाते हैं. पिता को वासु, दादा को रूद्र और परदादा को आदित्य का दर्जा दिया गया है. श्राद्ध मुख्य तौर से पुत्र, पोता, भतीजा या भांजा करते हैं. जिनके घर में कोई पुरुष सदस्य नहीं है, वहां महिलाएं भी श्राद्ध कर सकती हैं. यह भी पढ़ें : Ganesh Chaturthi 2021: सूरत के आर्टिस्ट ने मोती के शेल और पेंसिल की नोक पर बनाई गणेश प्रतिमा, देखें तस्वीरें
पितृपक्ष 2021 की श्राद्ध की विभिन्न तिथियां
पहले दिन: पूर्णिमा श्राद्ध: 20 सितंबर (सोमवार) 2021
दूसरे दिन: प्रतिपदा श्राद्ध: 21 सितंबर (मंगलवार) 2021
तीसरे दिन: द्वितीय श्राद्ध: 22 सितंबर (बुधवार) 2021
चौथा दिन: तृतीया श्राद्ध: 23 सितंबर (गुरूवार) 2021
पांचवां दिन: चतुर्थी श्राद्ध: 24 सितंबर (शुक्रवार) 2021
महाभरणी श्राद्ध: 24 सितंबर (शुक्रवार) 2021
छठा दिन: पंचमी श्राद्ध: 25 सितंबर (शनिवार) 2021
सातवां दिन: षष्ठी श्राद्ध: 27 सितंबर (सोमवार) 2021
आठवां दिन: सप्तमी श्राद्ध: 28 सितंबर (मंगलवार) 2021
नौवा दिन: अष्टमी श्राद्ध: 29 सितंबर (बुधवार) 2021
दसवां दिन: नवमी श्राद्ध (मातृनवमी): 30 सितंबर (गुरूवार) 2021
ग्यारहवां दिन: दशमी श्राद्ध: 01 अक्टूबर (शुक्रवार) 2021
बारहवां दिन: एकादशी श्राद्ध: 02 अक्टूबर (शनिवार) 2021
तेरहवां दिन: द्वादशी श्राद्ध, संन्यासी, यति, वैष्णवजनों का श्राद्ध: 03 अक्टूबर 2021
चौदहवां दिन: त्रयोदशी श्राद्ध: 04 अक्टूबर (रविवार) 2021
पंद्रहवां दिन: चतुर्दशी श्राद्ध: 05 अक्टूबर (सोमवार) 2021
सोलहवां दिन: अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथिपितृ श्राद्ध, सर्वपितृ अमावस्या, पितृविसर्जन महालय समाप्ति: 06 अक्टूबर (मंगलवार) 2021