हिंदू पंचांग के अनुसार माह में दो चतुर्थी पड़ती है, पहली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी विनायक चतुर्थी और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहलाती है. हर चतुर्थी का अपना महत्व होता है. यह दिन विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश को समर्पित माना गया है, क्योंकि पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को गणेश जी का जन्म हुआ था. मान्यता है कि चतुर्थी को व्रत रखते हुए भगवान श्रीगणेश की विधिवत पूजा करने से जातक के सारे कष्ट कट जाते हैं और घर-परिवार में सुख एवं समृद्धी आती है. इस पौष शुक्ल पक्ष की विनायक चतुर्थी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी 2024 को मनाई जायेगी. आइये जानते हैं पौष विनायक चतुर्थी की पूजा एवं व्रत का संपूर्ण विधान क्या है.
पौष विनायक चतुर्थी का महत्व
विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की दो बार (प्रातःकाल एवं सायंकाल) पूजा की जाती है, तथा चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्ध्य देने का विधान है. सुहागन महिलाओं के लिए पौष विनायक चतुर्थी का विशेष महत्व वर्णित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार विनायक चतुर्थी पर पूरे दिन व्रत रखते हुए भगवान श्रीगणेश के साथ ही भगवान शिव एवं जगतमाता पार्वती की पूजा करने से परिवार में सुख शांति के साथ समृद्धि आती है, और शुभ-मंगल कार्यों में पड़नेवाली बाधाएं दूर होती हैं. यहां स्पष्ट कर दें कि केवल भाद्रपद शुक्ल पक्ष के दिन चंद्र-दर्शन करने से बचना चाहिए, क्योंकि इससे झूठा कलंक लग सकता है. यह भी पढ़ें : क्या राम मंदिर उद्घाटन के बाद अयोध्या बनेगा देश का सबसे बड़ा आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र? जानें क्या कहते हैं संबंधित अधिकारी?
पौष विनायक चतुर्थी का मुहूर्त
पौष मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी प्रारंभः 07.59 AM (14 जनवरी 2024, रविवार)
पौष मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी समाप्तः 04.59 AM (15 जनवरी 2024, सोमवार)
हिंदी पंचांग के अनुसार 14 जनवरी 2024 को विनायक चतुर्थी का व्रत एवं पूजा सम्पन्न किया जाएगा.
पौष विनायक चतुर्थी व्रत एवं पूजा के नियम
विनायक चतुर्थी को सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यक्रिया निवृत्ति के बाद स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र पहनकर विनायक चतुर्थी की पूजा एवं व्रत का संकल्प लें, और यथोचित मनोकामनाएं व्यक्त करें. नये वर्ष की इस पहली चतुर्थी को पूजा शुरू करने से पूर्व मंदिर पर गंगाजल का छिड़काव करें. भगवान श्रीगणेश जी के साथ भगवान शिव एवं माता पार्वती की प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव करें और धूप-दीप प्रज्वलित करें. निम्न मंत्र का 108 जाप करें.
ॐ गं गणपतये नमः
अब गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठ, पान, सुपारी, लाल सिंदूर, अक्षत, लाल पुष्प अर्पित करते हुए निम्न मंत्र का जाप करें.
सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम् ।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ॥
भगवान के समक्ष मोदक एवं मौसमी फल चढ़ाएं. पूजा के अंत में विनायक चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ें और गणेशजी की आरती उतारें. शाम को एक बार पुनः गणेश जी की पूजा करें और चंद्रोदय होने पर उन्हें अर्घ्य देकर पूजा करें. अगले दिन प्रातः व्रत का पारण करें.