नवरोज पारसी समाज द्वारा मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण उत्सव है, जिसे वह नववर्ष के रूप में मनाते हैं. इस दिन को वे आध्यात्मिक रूप से सेलिब्रेट करते हैं. यहां बता दें कि दुनिया भर में पारसी समाज साल में दो बार नवरोज यानी नया वर्ष मनाते हैं. पहला नवरोज 20 मार्च 2024 को तथा दूसरा 16 अगस्त 2024 को मनाया जाएगा. आइये जानते हैं पारसी समाज साल में दो बार नया साल क्यों मनाते हैं. इस पर्व का क्या महत्व है, और कैसे करते हैं इसका सेलिब्रेशन एवं इससे जुड़े कुछ आवश्यक तथ्य.
पारसी समाज साल में दो बार क्यों मनाता है नववर्ष?
पारसी समाज के लोग साल में दो बार नववर्ष मनाते हैं, उनके प्रवास और विभिन्न समाजों के साथ बातचीत से जुड़े हैं. पहला पारसी नववर्ष वसंत विषुव पर आधारित है, जो अमूमन 21 मार्च के आसपास पड़ता है, हालांकि विश्व स्तर पर यह पर्व मार्च में ही मनाया जाता है. भारत में यह उत्सव अगस्त माह में पड़ता है, क्योंकि भारत में पारसी समाज शहंशाही कैलेंडर का पालन करते हैं. इसलिए भारत में दोनों दिन नया साल मनाया जाता है. पहला ईरानी कैलेंडर के अनुसार और दूसरा शहंशाही कैलेंडर के अनुसार.
नौरोज़ का इतिहास
ऐतिहासिक रूप से, नौरोज़ एशिया के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है. इसकी उत्पत्ति ईरानी धर्म से पारसी धर्म में हुई. पारसी परंपरा के तहत, नौरोज़ सर्दियों की अंधेरी की बुरी आत्मा पर वसंत की प्रभावशाली वापसी को दर्शाता है. कुछ मान्यताओं के अनुसार, नॉरस की उत्पत्ति का श्रेय पौराणिक ईरानी राजा जमशेद को भी दिया जाता है, जिन्होंने मानव जाति को उस ठिठुरती सर्दी से बचाया था, जो सभी जीवित प्राणियों को मारने हेतु निहित थी. एक अन्य मान्यता के अनुसार राजा जमशेद ने रत्नों से जड़ित एक सिंहासन बनवाया था, जिसे राक्षसों ने पृथ्वी से स्वर्ग में पहुंचा दिया, वहीं पर वह चमकते सूरज की तरह बैठता था. बाद में संसार के प्राणी एकत्र हुए और उसके चारों ओर आभूषण बिखेरते हुए घोषणा की कि यह नया दिन (अब रुज़) है. इसे फ़ार्वर्डिन का पहला दिन माना जाता है, जो ईरानी कैलेंडर का पहला महीना है.
नवरोज़ परंपरागत उत्सव
नौरोज़ के दिन पारसी समाज अपने-अपने घरों की सफाई और फूलों से सजावट करते हैं. घर के बाहर रंगोली सजाते हैं. वे अपने पारंपरिक कपड़े पहनते हैं. इसकी शुरुआत अग्नि-यात्रा से की जाती है. नाश्ता आदि के पश्चात वे अपने करीबी मंदिर में आयोजित जशन नामक समारोह में भाग लेते हैं. ईश्वर के प्रति आभार प्रकट करते हुए उन्हें फल, जल, दूध, चंदन और फूल इत्यादि अर्पित करते हुए सुख एवं समृद्धि की प्रार्थना करते हैं, और गलतियों के लिए क्षमा मांगते हैं. इस अवसर पर कई पारसी गरीबों (पारसी) को दान-पुण्य करते हैं. इस अवसर पर घर आये अतिथियों पर गुलाब जल छिड़क कर उनका स्वागत करते हैं. उन्हें फालूदा, शीतल पेय एवं पकवान खिलाते हैं तथा नवरोज की शुभकामनाओं का आदान-प्रदान करते हैं.