Mahavir Jayanti 2024: अपने कर्मों से ही ‘परमपद’ प्राप्त होता है! महावीर जयंती पर जानें उन्हीं के रचे ऐसे कुछ प्रेरक विचार!
महावीर जयंती 2024 (Photo Credits: File Image)

जैन धर्म के अनुयायियों के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को भगवान महावीर का जन्म हुआ था. इस उपलक्ष्य में देश भर में महावीर जयंती धूमधाम के साथ मनाई जाती है. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर ने 30 वर्ष की आयु में भौतिक संसार त्यागने के बाद गहन ध्यान का अभ्यास किया. भगवान महावीर ने 12 वर्षों तक कठोर तप करने के बाद अपनी सभी इंद्रियों पर विजय प्राप्त किया था. अपने सत्य एवं साधना के सहारे उन्होंने 72 वर्ष की आयु में मोक्ष अर्थात निर्वाण को प्राप्त कर लिया था. अपने जीवनकाल में उन्होंने अहिंसा, सत्य, शुद्धता, अपरिग्रह, नैतिक एवं सैद्धांतिक जीवन जीने के गुण सिखाए. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 21 अप्रैल 2024, रविवार को महावीर जयंती मनाई जाएगी. महावीर जयंती के पावन पर्व पर उन्हीं के उद्वेलित कुछ विचार यहां लाए हैं, जिन्हें एक दूसरे को शेयर कर आप महावीर जयंती की शुभकामनाएं दे सकते हैं.

भगवान महावीर के जीवन के कुछ प्रेरक उद्धरण

* किसी भी जीवित प्राणी को चोट न पहुंचाएं, दुर्व्यवहार न करें, उन पर अत्याचार न करें, उन्हें गुलाम न बनाएं, उनका अपमान न करें, उन्हें पीड़ा न दें, यातना न दें, और ना ही उनकी हत्या करें.

* क्रोध से अधिक क्रोध उत्पन्न होता है. क्षमा और प्रेम से अधिक क्षमा एवं प्रेम उत्पन्न होता है.

* किसी को उसकी आजीविका से वंचित न करें. यह एक कष्ट एवं पापपूर्ण प्रवृत्ति है.

* सभी सांस लेने वाले, जीवित, संवेदनशील प्राणियों को न तो मारना चाहिए, न ही उनके साथ किसी भी प्रकार की हिंसा की जानी चाहिए. उनके साथ न दुर्व्यवहार किया जाना चाहिए, न ही पीड़ा देनी चाहिए. ना उनका आश्रय छीनना चाहिए.

* राग और द्वेष कर्म का मूल कारण हैं. कर्म की उत्पत्ति मोह से होती है, जन्म और मृत्यु का मूल कारण कर्म है और यही दुःख का स्रोत कहा जाता है. कोई भी अपने पिछले कर्मों के प्रभाव से बच नहीं सकता.

* मारो मत, दर्द मत दो. अहिंसा सबसे बड़ा धर्म है.

* जलते जंगल के बीच एक आदमी एक पेड़ के ऊपर बैठा है. वह सभी जीवित प्राणियों को नष्ट होते देखता है. लेकिन उसे इस बात का एहसास नहीं है कि जल्द ही उसका भी वही भाग्य आने वाला है. वह आदमी मूर्ख है.

* आत्मा का अध्ययन ही सच्ची शिक्षा है.

* अपने स्वार्थ के लिए किसी के प्रति वैराग्य न करें.

* जो भी व्यक्ति अन्य जीवों को कष्ट नहीं पहुंचाता, वही सच्चा संत है.

* व्यक्ति अपने कर्मों से ही परम पद की प्राप्ति करता है.