नई दिल्ली: इतिहास में 29 फरवरी के दिन की बात करें तो पहले इस दिन के इतिहास के बारे में जान लेना जरूरी है. साल में 365 दिन होते हैं और हर गुजरते दिन के साथ साल का एक एक दिन कम होता जाता है, लेकिन 29 फरवरी साल का एक ऐसा दिन है जो 4 साल में एक बार ही आ पाता है. दरअसल इसकी भी एक वजह है। पृथ्वी को सूर्य का एक चक्कर लगाने में 365.25 दिन लगते हैं. अब एक चौथाई दिन यानी छह घंटे का दिन तो हो नहीं सकता इसलिए चार साल के छह छह घंटों को जोड़कर 24 घंटे का एक दिन फरवरी के महीने में जोड़ दिया जाता है. जिस साल में फरवरी 29 दिन की होती है उसे लीप वर्ष कहा जाता है और 29 फरवरी को लीप दिवस कहा जाता है.
29 फरवरी का खगोलीय इतिहास दिलचस्प है, लेकिन इस दिन जन्म लेने वालों को हर साल जन्मदिन न मना पाने का मलाल सालता रहता है. उनकी उम्र तो हर साल बढ़ती जाती है, लेकिन जन्मदिन तो वह हर चार साल में एक ही बार मना पाते हें. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरार जी देसाई अकेले भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जिनका जन्म लीप दिवस में हुआ था. उनके अलावा कोई राजनीतिज्ञ लीप वर्ष में पैदा नहीं हुआ. यह भी पढ़ें:- Leap Year 2020: जानें पूर्व पीएम मोरारजी देसाई के अलावा और किन देशी-विदेशी हस्तियों ने लीप ईयर में जन्म लिया.
क्या है लीप ईयर का इतिहास?
माना जाता है कि ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुआत से ही लोग लीप ईयर मनाते आ रहे हैं. सबसे खास बात तो यह है कि प्रभु यीशु के जन्म वर्ष से ही ग्रेगोरियन कैलेंडर को अपनाया गया है. कहा जाता है कि तभी से लीप ईयर मनाने का सिलसिला शुरु हुआ है. लीप ईयर मनाने के पीछे भी बेहद खास वजह है. (भाषा इनपुट)