Kakori Kand 2022: एक चादर ने 4 क्रांतिकारियों को चढ़ाया फांसी पर! जानें काकोरी कांड के ऐसे ही 10 रोचक तथ्य!
भारत पर ब्रिटिश हुकूमती रवैये को देखते हुए अंग्रेजों से भारत की आजादी छीनकर ही हासिल की जा सकती थी. अहिंसा या अनुनय-विनय करके भारत को आजाद करा पाना किंचित संभव नहीं था.
भारत पर ब्रिटिश हुकूमती रवैये को देखते हुए अंग्रेजों से भारत की आजादी छीनकर ही हासिल की जा सकती थी. अहिंसा या अनुनय-विनय करके भारत को आजाद करा पाना किंचित संभव नहीं था. यही वजह थी कि गुलाम भारत के अधिकांश युवा क्रांतिकारियों ने गांधीजी की अहिंसा को अपनाने के बजाय हिंसा के रास्ते को चुना. 1857 के गदर के हीरो मंगल पांडे के बाद भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव, बटुकेश्वर दत्त, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां जैसे सैकड़ों क्रांतिकारी आये दिन कुछ ना कुछ कांड करते और फरार हो जाते थे. ऐसा ही एक कांड था काकोरी कांड. काकोरी कांड की 97वीं वर्षगांठ के अवसर पर आइये इस संदर्भ में कुछ रोचक तथ्यों की बात करें.
क्रांतिकारी जानते थे कि एक ब्रिटिश हुकूमत से लड़ने के लिए धन और शस्त्र दोनों की जरूरत है. उन्होंने हथियारों की खरीदारी के उद्देश्य 9 अगस्त 1925 को ट्रेन द्वारा ले जाये जा रहे सरकारी खजाने को लूटकर फरार हो गये. चलती ट्रेन में अंग्रेजों के खजाने को उनकी सुरक्षा तंत्र को तोड़कर लूटना क्रांतिकारियों के साहस, पराक्रम, शौर्य और संकल्प के कारण ही संभव हो पाया था. भारत की आजादी के इतिहास में यह घटना किसी सनसनी खेज कहानी से कम रोचक अथवा रोमांचक नहीं है.
* काकोरी ट्रेन षड़यंत्र एक राजनैतिक डकैती थी, जिसे 9 अगस्त 1925 के दिन लखनऊ से 16 किमी पहले काकोरी नामक छोटे से शहर में क्रांतिकारियों की एक छोटी सी टुकड़ी ने अंजाम दिया था.
* कहते हैं कि नोटों के बंडल एवं चांदी के सिक्कों को एक चादर में बांधकर भागने के चक्कर में एक चादर ट्रेन में ही छूट गई. इस कांड की जांच में लगी स्कॉटलैंड पुलिस ने उसे अपने कब्जे में लिया. अंततः यह चादर ही क्रांतिकारियों की काल बन गई, और एक-एक कर सभी को पकड़ लिया गया.
* इस कांड का आयोजन क्रांतिकारी संगठन यानी हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) के राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में किया गया था. इस कृत्य में अशफाकउल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आजाद, सचिंद्र बख्शी, केशब चक्रवर्ती, मन्मथ गुप्ता, मुरारी लाल गुप्ता, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी, चंद्रशेखर आजाद, सचिंद्र बख्शी, केशब चक्रवर्ती, मुकुंदी लाल गुप्ता और बनवारी लाल आदि शामिल थे. यह भी पढ़ें : Ashura 2022: आशुरा पर ये मैसेजेस HD Wallpapers और GIF Images के जरिए भेजकर इमाम हुसैन की कुर्बानी को करें याद
* इस कांड को अंजाम देने से पहले यह निर्णय लिया गया था कि पूरे कांड में किसी यात्री अथवा सुरक्षाकर्मी पर आक्रमण नहीं किया जायेगा, लेकिन ट्रेन में खजाने के बक्से को खोलने के प्रयास में मन्मथनाथ गुप्त का माउजर दब गया, जिसकी गोली पास बैठे यात्री को लग गई. ब्रिटिश हुकूमत को एक बहाना मिल गया.
* दुर्घटना के पश्चात ब्रिटिश अधिकारियों ने गहन तलाशी अभियान शुरू किया और हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) के करीब 40 सदस्यों पर डकैती और हत्या का मामला दर्ज किया गया.
* काकोरी ट्रायल के अंतिम फैसले के बाद राम प्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र नाथ लाहिड़ी और अशफाक उल्लाह खान को मौत की सजा दी गई और शेष को काला पानी (पोर्ट ब्लेयर सेलुलर जेल) की सजा सुनाई गई.
* इस कांड में शामिल रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेंद्र लाहिड़ी और असफाक उल्लाह खान की फांसी की सजा कम करने हेतु मदन मोहन मालवीय ने तत्कालीन वायसराय और गवर्नर ज. एडवर्ड फ्रेडरिक लिंडले वुड को केंद्रीय विधानमंडल के 78 सदस्यों के हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन भेजा, लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया.
* राजेंद्र लाहिड़ी को गोंडा जेल में, रामप्रसाद बिस्मिल को गोरखपुर जेल, अशफाक उल्ला खां को फैजाबाद जेल और रोशन सिंह को इलाहाबाद मलाका जेल) में फांसी दी गई.
* काकोरी कांड के बाद हमेशा की तरह चंद्रशेखर आजाद फिर से पुलिस को चकमा देकर फरार होने में सफल हो गये. लेकिन 27 फरवरी 1931 को वे एक एन्काउंटर में आजाद शहीद हो गये.
* फांसी की सजा सुनने के बाद कहते हैं पं. रामप्रसाद बिस्मिल ने कई कविताएं लिखीं, इसी में एक कविता यह भी थी
मेरा रंग दे बसंती चोला माए रंग दे..