International Women's Day 2019 Special: भिखारी से जगतमाई तक का सफर, जानिए कैसें अनाथों की माई बनीं सिंधुताई
सिंधुताई सपकाल (Photo Credits: Facebook)

International Women's Day 2019 Special: हर इंसान ऊंची उड़ान के सपने देखता है. लेकिन हालातवश अगर वह घर से सड़क पर आ जाए और भीख (Begging)  मांगकर गुजारा करने को विवश हो जाये, तो उसके सारे सपने भीख के कटोरे तक सिमटकर रह जाते हैं. 20 वर्षीया किशोरी सिंधु के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, मगर सिंधु ने जिंदगी से हार नहीं मानी. अनाथ सिंधु (Sindhu) ने अनाथ बच्चों को नयी जिंदगी देने का संकल्प लिया. आज वह एक हजार से ज्यादा बच्चों की जिंदगी को खुशगवार बना चुकी हैं. कैसे आइये जानते हैं...

10 साल की उम्र में शादी

पुणे (महाराष्ट्र) की सिंधुताई सपकाल (Sindhutai Sapkal) ने अपने दम पर जो हासिल किया, वह कल्पना से परे है. इनका जन्म 14 नवंबर 1948 को वर्धा (महाराष्ट्र) के पिपरी गांव में हुआ था. पिता अभिमान साठे चरवाहा और माँ गृहिणी थीं. पिता को छोड़ सिंधु को कोई पसंद नहीं करता था, क्योंकि वह लड़की थीं. अनपढ़ चरवाहा होते हुए भी अभिमान सिंधु को पढ़ाना चाहते थे, ताकि वह आत्मनिर्भर बन सके. पत्नी के विरोध के बावजूद उन्होंने सिंधु को स्कूल भेजा, मगर आर्थिक कारणों से सिंधु को स्कूल छोड़ना पड़ा. सिंधु जब 10 वर्ष की थीं, उऩकी शादी 30 वर्षीय श्रीहरि से हो गयी. 20 की आयु में वह तीन बेटों की मां बन चुकी थीं. पति की मदद के लिए वह भी मजदूरी करती थीं.

रातें श्मशान में गुजरती थीं

एक दिन गांव के मुखिया ने सिंधु और उनके साथी मजदूरों को मजदूरी नहीं दिया तो सिंधु मजदूरों को लेकर जिलाधिकारी के पास पहुंच गयीं. इससे नाराज मुखिया ने उन पर चरित्रहीनता का आरोप लगाकर गांव से निष्कासित कर दिया. पति ने भी सिंधु का साथ नहीं दिया. उस समय सिंधु गर्भवती थीं. एक रात सिंधु ने एक गौशाले में बेटी को जन्म दिया. प्रसव पीड़ा से कराहते हुए उन्होंने एक पत्थर से नाल को काटकर अलग किया.

सिंधु बच्ची को लेकर मायके गयीं. पिता की मृत्यु हो चुकी थी. मां ने उन्हें घर में रखने से मना कर दिया. सिंधु अपनी नवजात बेटी को लेकर रेलवे स्टेशन चली गयीं. वह बच्ची के साथ स्टेशन पर भीख मांगतीं, और रात श्मशान में गुजारतीं. वह बेटी के लिए श्मशान को ही सबसे सुरक्षित मानती थीं. यह भी पढ़ें: International Women's Day 2019: मेघालय में आज भी चलता है महिलाओं का राज, यहां की नारी नहीं है किसी की मोहताज

सपने सुखद भविष्य के

एक सुबह सिंधु जब उठीं, तो बगल में एक नवजात बच्ची को पड़ा देखा. शायद किसी ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए रात में यहां छोड़ दिया था. सिंधु उसे अपने झोपड़े में ले आईं. अब सिंधु के पास दो बेटियां थीं. इनकी परवरिश आसान नहीं थी, लेकिन जैसे-तैसे समय गुजर रहा था. एक दिन सिंधु के मन में ख्याल आया कि काश वे सभी अनाथ बच्चों को भी संरक्षण के साथ अच्छा भविष्य दे पातीं! फिर वह खुद पर हंसी भी कि खुद की दो जून की रोटी का ठिकाना नहीं और अनाथ बच्चों का भविष्य सुधारने चली हैं.

झोपड़े से आश्रम तक

सिंधु बचपन से द्दढ़ मनोबल वाली महिला थीं. वह स्टेशन से अनाथ-मासूम बच्चों को झोपड़े में लाने लगीं. यद्यपि वह जानती थीं, कि इतने सारे बच्चों की परवरिश आसान नहीं है, उनका भविष्य सुधारना तो दूर की बात थी. अंततः वह अपने बच्चों के लिए गली-मुहल्लों में भाषण देकर पैसे इकट्ठे करने लगीं. अनाथ बच्चों के प्रति उनकी सच्ची निष्ठा देखकर लोगों ने बढ-चढ़ कर उनकी मदद की.

लोगों का सहयोग मिला, तो सिंधु का हौसला बढ़ा. धीरे-धीरे उनके झोपड़े में बच्चों की संख्या बढ़ने लगी. झोपड़ी छोटी पड़ने लगी तो उन्होंने एक आश्रम खोल लिया. बच्चों के खान-पान और शिक्षा को उन्होंने गंभीरता से लिया. बच्चों ने भी पढ़ाई में रुचि दिखलाई. बच्चे बढ़े तो सिंधु की जिम्मेदारियां बढ़ीं, यहीं से वह सिंधु से सिंधुताई बन गयीं. हालांकि बच्चे उन्हें माई (मां) पुकारते थे. बच्चों की संख्या के साथ सिंधुताई को आश्रम की संख्या भी बढानी पड़ी. यह भी पढ़ें: International Women’s Day 2019: ज्यादातर महिलाओं को नहीं पता संविधान में उन्हें मिले हैं ये सभी अधिकार

 1042 बच्चों को ले चुकी हैं गोद 

फिलहाल सिंधुताई के पास चार आश्रम हैं. अब तक 1042 बच्चों को गोद ले चुकी सिंधुताई के परिवार में 200 से ज्यादा दामाद, लगभग 40 बहुएं हैं. एक हजार से ज्यादा पोते-पोतियां हैं. उनकी चौथी बेटी वकील सदा अपनी मां का साया बनकर उनके साथ रहती हैं. सिंधुताई के आश्रम से पढ़-लिखकर निकले बच्चे आज डॉक्टर-इंजीनियर और दूसरे पदों पर कार्यरत हैं. कुछ बच्चे विदेशों में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. ऐसे बच्चे भी हैं, जो प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर ताई के साथ आश्रम के संचालन में मदद करते हैं. सिंधुताई को अब तक 273 राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हो चुके हैं. पुरस्कार में मिली राशि वह आश्रम के बच्चों पर खर्च करती हैं.

उनके दो आश्रम पुणें, एक वर्धा और एक सासवड (महाराष्ट्र) में है. सिंधु के अनुसार एक बार किसी अवॉर्ड फंक्शन में उनके पति उनसे मिले और साथ रहने की इच्छा जाहिर की तो सिंधुताई ने कहा, यहां मैं सभी की माई हूं, तुम भी अगर मुझे माई मानकर मेरे साथ रहना चाहो तो रह सकते हो. पति ने उनकी इस इच्छा का स्वागत करते हुए उनके साथ रहने लगा.