
होम्योपैथी उपचार की खोज वैज्ञानिक डॉक्टर सैमुअल हैनीमैन ने की थी. उनके प्रयास को सम्मान देने हेतु उनके जन्मदिन 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिवस वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवा में होम्योपैथी की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने का कार्य करता है, जो उपचार हेतु इसके व्यक्तिगत और बिना किसी साइड इफेक्ट्स वाले दृष्टिकोण पर प्रकाश डालता है. इस अवसर पर सेमिनार, वर्कशॉप और जागरूकता अभियान आयोजित किये जाते हैं, जिनका उद्देश्य जनता और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों को होम्योपैथिक उपचारों में लाभ और प्रगति के बारे में बताना है. आज जानेंगे इसकी उपयोगिता, इसके इतिहास एवं भारत में होम्योपैथी उपचार की उपयोगिता के बारे में, साथ ही जानेंगे कौन हैं डॉ. सैमुअल हैनीमैन..
होम्योपैथी का इतिहास
ग्रीक चिकित्सक हिप्पोक्रेट्स जिन्हें आधुनिक चिकित्सा के पिता के रूप में भी जाना जाता है, ने अपनी शोध के संदर्भ में लिखा है, 'सामान्य चीजों से एक बीमारी उत्पन्न होती है और सामान्य चीजों के प्रयोग से ही ठीक हो जाती है'. उन्होंने बीमारी की समझ और उसके प्रति आम व्यक्ति की प्रतिक्रिया पर शोध किया, न कि उसके उपचार पर. डॉ. हैनिमैन का काम इस सिद्धांत का विस्तार था. पारंपरिक चिकित्सा की क्रूरता और तत्काल प्रभावी दवाओं के दुष्प्रभावों से निराश होकर, हैनीमैन ने इस प्राचीन और अनदेखी चिकित्सा पद्धति को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया. कुनैन के लक्षणों के साथ उनके स्वयं के प्रयोग ने व्यक्तिगत उपचार की नींव रखी. उन्होंने इसके लक्षणों और प्रतिक्रियाओं का सावधानीपूर्वक दस्तावेजीकरण करके, एक समग्र दृष्टिकोण विकसित किया, जिसने आधुनिक होम्योपैथी की आधारशिला रखी, जबकि आज होम्योपैथी की लोकप्रियता कई देशों में एक वैकल्पिक चिकित्सा के रूप में बढ़ी है. यह भी पढ़ें : World Health Day: वर्ल्ड हेल्थ डे पर स्वास्थ मंत्रालय का संदेश.. अच्छी सेहत के लिए अच्छा खाना, भरपूर नींद और थोड़ी एक्सरसाइज है बहुत ज
कौन हैं डॉ. सैम्युल हैनिमैन?
जर्मन चिकित्सक डॉ. सैम्युल हैनिमैन का जन्म पोर्सिलीन पेंटर पिता के घर 10 अप्रैल 1755 को हुआ था. आर्थिक संकटों के चलते उनका बचपन अभावों और गरीबी में गुजरा. उनके बालपन के समय रोगियों के इलाज का तरीका अत्यधिक कठोर और निर्दयात्मक होता था. नसों को काटकर अशुद्ध रक्त निकाला जाता था, विषैले रक्त निकालने में जोंक की मदद ली जाती थी. चिकित्सा क्षेत्र में उचित दिशा और वैज्ञानिक सिद्धांतों का अभाव था. हैनीमैन ने 1767 से प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ की. 16 वर्ष की आयु तक पहुंचते-पहुंचते प्रिंसिपल मुलर के पसंदीदा छात्र बन गये. साल 1777 में वह लिपजिंग छोड़ वियना चले गये. वहां उन्हें ट्रांसिल्वेनिया के गवर्नर बैरन वॉन ब्रुकेंथल ने बतौर पारिवारिक चिकित्सक के साथ-साथ पुस्तकालय और सिक्का संग्रह प्रबंधन में मदद करने का दायित्व प्राप्त हुआ. डॉ सैमुअल हैनीमैन ने 10 अगस्त 1779 में एर्लायन विश्वविद्यालय से एमडी की उपाधि प्राप्त की.
भारत में सफलता और चुनौतियों के बीच होम्योपैथी चिकित्सा
भारत में होम्योपैथी चिकित्सा काफी लोकप्रिय है. यह पारंपरिक चिकित्सा में प्रमुख स्थान भी रखती है. 1973 में भारत सरकार ने होम्योपैथी को मान्यता प्राप्त चिकित्सा पद्धति के रूप में स्वीकार किया और केंद्रीय होम्योपैथी परिषद (CCH) की स्थापना की. 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना की गई, जो आयुर्वेद के साथ होम्योपैथी, और प्राकृतिक चिकित्सा को बढ़ावा हेतु कार्य करता है. आज भारत में हजारों होम्योपैथी कॉलेज, अस्पताल और रिसर्च सेंटर सक्रिय हैं. यही नहीं ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में होम्योपैथी चिकित्सा पसंदीदा इलाज माना जाता है, लेकिन व्यापक फायदे और नुकसान रहित होने के बावजूद कुछ वर्ग विशेष में होम्योपैथी के प्रति संदेह और भ्रम है, वे इसे पारंपरिक चिकित्सा पद्धति से कमतर मानते हैं. इलाज की इस पद्धति को लेकर कुछ वैज्ञानिक तर्क-वितर्क भी हैं. हालांकि आयुष मंत्रालय का होम्योपैथी को मुख्यधारा चिकित्सा पद्धति बनाने का प्रयास जारी हैं.