नई दिल्ली: कोरोना वायरस से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के कारण भारत में विशेषकर ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों की कमी का सामना करना पड़ रहा है और शैक्षिक संस्थानों और सामुदायिक संगठनों के बंद होने के कारण यह समस्या और बढ़ गई है.‘मेंस्ट्रुअल हेल्थ एलायंस ऑफ इंडिया’ की एक अध्यक्ष के अनुसार वैश्विक महामारी के कारण मासिक धर्म स्वच्छता से जुड़ी चीजों का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है क्योंकि कई लघु एवं मध्यम विनिर्माण इकाइयों में मजदूरों, कच्चे माल और पूंजी की कमी है.
एमएचएआई के इस अध्ययन को परोपकारी संगठन ‘दासरा’ की ‘चेंज ऑर्गनाइजेशन’ के साथ आयोजित एक ऑनलाइन कार्यशाला में जारी किया गया. एमएचएआई ने यहां भारत, अफ्रीका और अन्य राष्ट्रों में कोविड-19 के दौरान राहत कार्य में शामिल 67 संगठनों के बीच किए गए एक ऑनलाइन ‘रैपिड सर्वेक्षण’ के नतीजे भी जारी किए. यह भी पढ़े : तेलंगाना में कोरोना के 66 नए मामले दर्ज: 28 मई 2020 की बड़ी खबरें और मुख्य समाचार LIVE.
सर्वेक्षण ने चुनौतियों को समझने और राहत कार्यों के लिए सुझााव देने के लिए मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों के उत्पादन, वितरण और पहुंच की स्थिति का आकलन किया गया. अध्ययन में हिस्सा लेने वाले 62 प्रतिशित लागों ने कहा कि मासिक धर्म स्वच्छता उत्पादों तक नियमित स्रोतों के जरिये पहुंच अब चुनौतीपूर्ण हो गई है, जबकि 22 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ये उत्पाद उनकी पहुंच से पूरी तरह बाहर हैं.उसने कहा, ‘‘शैक्षिक संस्थानों और सामुदायिक संगठनों के बंद रहने के कारण इनकी आपूर्ति की समस्या और बढ़ गई है.
अध्ययन में कहा गया है कि स्कूल बंद होने की वजह से शहरी और ग्रामीण इलाकों में कई महिलाओं और लड़कियों को ‘सैनिटरी पैड’ नहीं मिल पा रहे हैं क्योंकि इनके वितरण करने का स्कूल एक प्रमुख जरिया है. एमएचएआई ने कहा कि भारत में करीब 33.6 करोड़ महिलाओं को रजस्वला होते हैं, जिनमें से केवल 12.1 करोड़ ‘सैनिटरी पैड’ का इस्तेमाल करती हैं.
‘मासिक धर्म स्वच्छता दिवस’ हर वर्ष 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के महत्व को रेखांकित करने के लिए मनाया जाता है। साथ ही यह इससे जुड़ी दकियानूसी बातों और रजस्वला के दौरान लड़कियों और महिलाओं के सामाजिक बहिष्कार के खिलाफ भी आवाज उठाता है
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