सिखों के 10वें गुरु गोविंद सिंह की जयंती नानकशाही कैलेंडर के अनुसार प्रत्येक वर्ष जनवरी माह में पड़ती है. वह दुनिया के अकेले ऐसे व्यक्ति होंगे, जिनके पिता और बच्चों की उनके सामने हत्या कर दी गई. सिख समाज के लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है. इस दिन गुरु द्वारों में शब्द, प्रार्थना, लंगरों का आयोजन होता है, साथ ही उनके बलिदानों एवं उपदेशों को याद किया जाता है. गुरु गोबिद सिंह मानवता एवं त्याग के प्रतीक थे. उन्हें धर्म और मानव जाति के कल्याण हेतु अद्वितीय योगदान के लिए भी जाना जाता है. आइये जानते हैं गुरु गोबिद सिंह की जयंती के अवसर पर उनके बारे में कुछ प्रेरक और ज्ञानवर्धक प्रसंग एवं सेलिब्रेशन के बारे में.
गुरु परंपरा को खत्म कर गुरू ग्रंथ को स्थाई गुरु घोषित किया
प्रत्येक वर्ष पौष माह के शुक्ल पक्ष सप्तमी को गुरु गोबिद सिंह जयंती मनाई जाती है. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार गुरु गोबिद सिंह का जन्म 22 दिसंबर, 1666 में पटना (बिहार) में हुआ था. पिता का नाम गुरु तेग बहादुर और माता गुजरी थी. बाल्यावस्था में उन्हें गोविंद के नाम से पुकारा जाता था. गोविंद सिंह बाल्यकाल से बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. गुरु गोबिंद सिंह सिख पंथ के दसवें गुरु थे. इसके बाद उन्होंने गुरु परंपरा को खत्म कर गुरु ग्रंथ साहिब को स्थाई गुरु घोषित कर दिया. यह भी पढ़ें : Lal Bahadur Shastri Punyatithi 2024: देश के 12 प्रधानमंत्री नहीं सुलझा सके लाल बहादुर शास्त्री की ‘मृत्यु रहस्य’ की गुत्थी! जानें शंका के कुछ महत्वपूर्ण फैक्ट!
कब है गुरु गोविंद सिंह जयंती
गुरु गोबिंद सिंह जिन्हें ‘दशमेश गुरू’ भी कहते हैं की 357वीं जयंती नानक शाही कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 17 जनवरी 2024 को मनाया जायेगा. वह दुनिया के एकमात्र सिख गुरू हैं, जिन्होंने सिख धर्म की आस्था के लिए अपने सभी चारों पुत्रों का बलिदान दे दिया. सिख धर्म के अनुयायी गुरू गोबिंद सिंह की जयंती को प्रकाश पर्व के नाम से भी सेलिब्रेट करते हैं.
पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी प्रारंभ 11.57 PM (16 जनवरी 2024, मंगलवार)
पौष शुक्ल पक्ष सप्तमी समाप्तः 10.06 PM (17 जनवरी 2024, बुधवार)
उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष 17 जनवरी 2024, बुधवार को गुरू गोबिंद सिंह जयंती मनाई जाएगी.
गुरु गोविंद सिंह की त्याग गाथा
गुरु गोबिंद सिंह की तीन पत्नियां थीं. पहली पत्नी जीतो, से 3 पुत्र जुझार सिंह, जोरावर सिंह और फतेह सिंह, दूसरी पत्नी सुंदरी से अजीत सिंह, लेकिन तीसरी पत्नी साहिब देवन से कोई संतान नहीं थी. 1704 के चमकौर युद्ध में 40 बहादुर सिख योद्धाओं के साथ अजीत सिंह और जुझार सिंह सैकड़ों मुगल सैनिकों पर कहर बनकर टूट पड़े और आधी से ज्यादा सेना का सफाया कर दिया, लेकिन मुगल सेना गुरु गोबिंद सिंह की हत्या के फिराक में थी. तभी अजीत और जुझार पिता की ढाल बनकर आ गये. पिता को तो उन्होंने बचा लिया, लेकिन खुद शहीद हो गए. किसी अपनों के विश्वासघात से सरहिंद के नवाब वजीर खान ने गोबिंद सिंह के दो अन्य पुत्र जोरावर सिंह और फतेह सिंह और उनकी माता को गिरफ्तार कर लिया गया. दोनों बच्चों पर इस्लाम धर्म कबूल करने का दबाव डाला गया. इंकार करने पर दोनों को दीवार में चुनवा दिया गया. बेटों की इस नृशंस हत्या को सहन नहीं कर पाने से माता गुजरी भी शहीद हो गईं.
गुरु गोबिंद सिंह जयंती सेलिब्रेशन
इस दिन दुनिया भर में सिख समुदाय गुरु गोबिंद सिंह जयंती को बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं. भारी संख्या में सिख पुरुष, महिलाएं एवं बच्चे सुबह सवेरे प्रभात फेरियों में भाग लेते हैं. पूरे रास्ते गुरू ग्रंथ साहब का पाठ एवं भजन होता है. इसके पश्चात गुरू द्वारों में भजन, कीर्तन एवं लंगर (मुफ्त भोजन) का आयोजन किया जाता है.
कालांतर में सरहद के नवाब वजीर खां ने गुरु गोबिंद सिंह पर धोखे से प्रहार किया, जिसकी वजह से 7 अक्टूबर 1708 को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी शहादत वाले स्थान पर तख्त श्री हजूर साहिब बना है, जो वर्तमान में नांदेड़ (महाराष्ट्र) में है.