गणेशोत्सव का त्योहार एक बार फिर हम सभी के लिए कई सारी खुशियां और भक्तिपूर्ण वातावरण लेकर आया है. इस बार 13 सितंबर से इस त्योहार की शुरुआत होगी. ऐसे कई सारे ऐतिहासिक गणपति मंदिर है जिनकी अपनी मान्यताएं हैं और इन मंदिरों के साथ लोगों की गहरी आस्था भी जुड़ी हुई है. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जो देशभर में मशहूर है. बात कर रहे हैं पुणे में स्थित श्रीमंत दगडूशेठ हलवाई गणपति की. पुणे के बुधवार पेठ में स्थित इस मंदिर में हर साल लाखों की तादाद में भक्तगण अपनी हाजिरी लगाते हैं और बप्पा से अपनी मनोकामना मांगते हैं.
क्या है दगडूशेठ हलवाई गणपति का इतिहास?
कहा जाता है कि कर्नाटक के रहनेवाले दगडूशेठ गड़वे नामके एक व्यक्ति हुआ करते थे जो पेशे से हलवाई थे. वो कर्नाटक से पुणे आकर बस गए थे. उनका एक बेटा था जिसकी प्लेग की बिमारी के चलते मौत हो गई थी. बेटे के गुजर जाने से दगडूशेठ और उनकी पत्नी को गहरा सदमा लगा था. तब उनके आध्यात्मिक गुरु ने उन्हें मानसिक तनाव से बाहर निकालने के लिए एक गणेश मंदिर का निर्माण कराने का आदेश दिया. उस समय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक जो कि दगडूशेठ के अच्छे दोस्त भी थे उन्होंने गणेश भगवान्उ के इस मंदिर का निर्माण करवाने में मदद की. 1893 में मंदिर का कार्य पूर्ण कर लिया गया. इसी के साथ लोकमान्य तिलक ने गणेशोत्सव का त्योहार मनाने की घोषणा की. इसके बाद से ही गणेशजी के इस त्योहार को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाने लगा. इस साल दगडूशेठ हलवाई गणेश मंदिर के 125 वर्ष पूरे हो जाएंगे.
मंदिर का कार्यक्रम
ये मंदिर रोज सुबह 6 बजे दर्शन के लिए खोल दिया जाता है. 6 से 7.30 तक दर्शन किया जाता है. इसके बाद 7.30 से लेकर 7.45 तक इस मंदिर की सुप्रभातम आरती यानी सुबह की आरती होती है.
बाद में सुबह 8.15 से लेकर दोपहर 1.30 बजे तक यहां दर्शन किया जा सकता है. इसी बीच दीपहर 1 से लेकर 1.30 बजे तक नैवेद्यम आरती होती है. दोपहर 3 बजे से लेकर 3.15 बजे तक मध्यान्ह आरती की जाती है.
इसके बाद रात 8 से 9 बजे तक महामंगल आरती होती है. अंत में 10.30 से 10.45 तक शेज आरती की जाती है जिसके बाद रात 11 बजे मंदिर बंद कर दिया जाता है.
लाइव दर्शन
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उत्सव
इस मंदिर में कई सारे फेस्टिवल भी मनाए जाते हैं.
गणेशोत्सव के मुख्य त्योहार के अलावा गणेश जन्म (माघी गणेशोत्सव),गुड़ी पड़वा (इस दिन मंदिर का फाउंडेशन डे भी मनाया जाता है), अक्षय तृतीय पर आंबा महोत्सव, और वसंत पंचमी (जहां मोगरा और कई विविध प्रकार के फूलों से मंदिर को सजाया जाता है) मनाया जाता है.